पंचायत राज व्यवस्था में पढ़े-लिखे लोगों की
भागीदारी बढ़ाने और युवाओं का मौका देने के राज्य सरकार के मंसूबे को पंजाब
एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने तगड़ा झटका दिया है। इस मामले में दायर की गई
याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पंचायत चुनाव में सरपंच
पद की उम्मीदवारी के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता की अनिवार्यता की शर्त
पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने सरकार व पंचायत विभाग के अतिरिक्त मुख्य
सचिव
को नोटिस जारी करते हुए 28 अगस्त तक जवाब दाखिल करने को कहा है। हिसार
के गांव मुल्कान की वेदवंती ने एडवोकेट मनजीत सिंह के माध्यम से याचिका
दायर कर आरोप लगाया है कि सरकार ने पंचायती राज एक्ट 1994 में संशोधन के
लिए अध्यादेश जारी किया है। इसके जरिये उसे और उसके जैसे अन्य कई
व्यक्तियों को सरपंच का चुनाव लड़ने से पूर्व ही इस पद के लिए अयोग्य करार
दे दिया गया है। इस अध्यादेश में पुरुष वर्ग के लिए 10वीं और महिला तथा
अनुसूचित जाति के लिए आठवीं की शैक्षणिक योग्यता निर्धारित करना गलत है।
रिप्रेजेंटेटिव ऑफ पब्लिक सर्विस एक्ट में चुनाव लड़ने की कोई न्यूनतम
शैक्षणिक योग्यता का प्रावधान नहीं है। पिछले लंबे समय से पंचायती राज एक्ट के तहत भी
ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। पंचायती राज एक्ट सभी वर्गों में समानता लाने और
पंचायतों को मजबूत करने के लिए बना है, लेकिन अभी तक महिलाओं व अनुसूचित
जातियों का प्रतिनिधित्व उतना सशक्त नहीं हो सका है। ऐसे में इस मामले में
शैक्षणिक योग्यता निर्धारण की जरूरत नहीं है, क्योंकि पहले से ही कई शर्तों
के तहत जन प्रतिनिधियों को अयोग्य करार देने का प्रावधान मौजूद है। वकील
ने पैरवी करते हुए जस्टिस एसकेमित्तल व जस्टिस एमएस चौहान की डिवीजन बेंच
के समक्ष तथ्य पेश किए कि अध्यादेश लाने से पहले विधानसभा में सभी
प्रतिनिधियों की राय लेनी चाहिए थी। खुली बहस के बाद ही ऐसा कोई फैसला लिया
जाना चाहिए था। यह भी बताया कि हरियाणा में विस चुनाव या नगर निकाय चुनाव
के लिए शैक्षणिक योग्यता का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में पंचायत, ब्लॉक
समिति व जिला परिषद में ऐसी शर्त निर्धारित करना गलत है।
क्या किया था निर्णय: राज्य
सरकार ने 11 अगस्त को कैबिनेट की बैठक में हरियाणा पंचायती राज अधिनियम
1994 को संशोधित करने का फैसला लिया था। इसके तहत पंचायती राज संस्थाओं के
सभी स्तरों के निर्वाचित प्रतिनिधियों की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता मैट्रिक
और महिलाओं और अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों का आठवीं पास होना तय किया
था। इसके अलावा प्रत्याशी ऐसे अपराध में चार्जशीटेड न हो, जिनमें कम से कम
10 साल की सजा हो सकती है, वो बैंक और विद्युत निगम का बकायादार नहीं और
उसके घर में शौचालय की अनिवार्यता भी तय की गई थी। फिलहाल कोर्ट ने शैक्षिक
योग्यता की शर्त पर ही रोक लगाई है।
बेंच की टिप्पणी, पहले एमपी तो सुधरे: हाईकोर्ट
में सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कहा कि कहीं से तो शुरुआत करनी ही
होगी। बेंच ने इस पर कहा कि पहले मध्य प्रदेश में तो सुधार हो जाए। बेंच ने
एक मुख्यमंत्री के अंडर मैट्रिक होने का हवाला भी दिया। इसके साथ ही बेंच
ने पंचायती राज एक्ट के लिए लाए गए संशोधन की उपधारा पांच, जिसमें शैक्षणिक
योग्यता निर्धारित की गई थी, पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है।
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साभार: अमर उजाला समाचार
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