Wednesday, November 9, 2016

मैनेजमेंट: आप खेत में भी बैठ सकते हैं 'गल्ला' लेकर

मैनेजमेंट फंडा (एन रघुरामन)
जीवन की यह सच्ची कहानी उन लोगों के लिए है, जो मानते हैं कि कृषि सालाना कमाई का माध्यम है, दैनिक नहीं। लक्ष्मण दास सुखरमानी ने 25 साल पहले अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए आइसक्रीम पार्लर शुरू किया था। किसी भी 27 साल के युवा की तरह सुखरमानी ने भी धीरे-धीरे बिज़नेस में तरक्की की और पन्ना में
इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान खोली। पन्ना मध्यप्रदेश में भोपाल से 450 किलोमीटर दूर स्थित शहर है। फिर उन्होंने पन्ना के अलावा सतना, रीवा, सीधी और छतरपुर के लिए सेमसंग का एक्सक्लूसिव शो रूम शुरू किया, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक बिज़नेस के लिए भी सागर आइसक्रीम नाम ही जारी रखा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।उन्हें बिज़नेस करते हुए 20 साल से ज्यादा हो गए हैं। 
किंतु 2014 में उन्हें लगा कि ऊर्जा खेती में लगानी चाहिए ताकि स्थायी लाभ लिया जा सके। उन्होंने अपना बिज़नेस समेटा और पास में 2.25 एकड़ जमीन ले ली। हालांकि, वे आज भी आसपास के पांच जिलों में सेमसंग होम एप्लायंस का एकमात्र सर्विस सेंटर चलाते हैं। वे चाहते थे कि उनकी जमीन से दुकान की ही तरह रोज नकद रुपए मिले। उन्होंने इस दिशा में काम किया और आज वे हर रोज 10 से 35 हजार रुपए घर ले जाते हैं। पहले उन्होंने खेत को तीन हिस्सों में बांटा और इसे एकीक्रत जैविक खेती के लिए तैयार किया। 2.25 एकड़ के खेत के एक तिहाई हिस्से को उन्होंने खेत के लिए रखा। इसे उन्होंने दो हिस्सों में बांटा। एक में ऐसे पौधे लगाए, जिन्हें सूरज की रोशनी की जरूरत होती है। दूसरे शेड वाले हिस्से में ऐसे पौधें लगाए, जिन्हें धूप की जरूरत नहीं होती। एक हिस्सा उन्होंने पशुओं के लिए रखा। उन्होंने एक गाय और एक भैस से शुरुआत की थी। आज उनके पास ऐसे एक दर्जन से ज्यादा पशु हैं, जिनके दूध से उन्हें रोजाना 5 हजार रुपए की आवक होती है। उनका बकरियों का बिज़नेस भी है और इससे अलग आय होती है। उन्होंने वॉटरटैंक भी बनाया है, जिसमें वे अजोला नाम की वनस्पती पैदा करते हैं। यह तीन दिन में बढ़ जाती है और फार्म के पशुओं के लिए प्रोटीन फूड का काम करती है। वे गेहूं, मक्का और ज्वार की भूसी खरीदते हैं और इससे पशुओं के लिए हैल्दी फूड तैयार होता है। वे फलियों की कुछ किस्में भी उगाते हैं और यह गाय और बकरियों को खिलाने के काम आती है। इससे उन्हें अधिकतम दूध हासिल होता है। 
वे खड़ी खेती की कला के माहिर हैं और अपने उपयोग के लिए सब्जियां भी उगाते हैं। साथ ही साधारण प्लास्टिक के ड्रम बेचते हैं, जो पानी स्टोर करने के काम आता है। उनके पास कड़कनाथ 'देसी' चिकन सेंटर भी है। यह आमतौर पर मध्यप्रदेश की झाबुआ में पाई जाने वाली किस्म है। इससे उन्हें अंडे और चिकन मीट मिलता है। चिकन के लिए खेत में ही भरपूर भोजन मौजूद रहता है। उनके पास विदेशी नस्ल के कुत्ते भी हैं जो खेत की रखवाली करते हैं। कुत्तों को उनकी रोज की जरूरत की प्रोटीन की खुराक अंडो और चिकन मीट से मिल जाती है। इसके अलावा डॉग्स से साल भर में 12 से 16 पप्स मिल जाते हैं, जिनकी बाजार में कीमत 10 हजार रुपए से अधिक की होती है। इससे उन्हें मासिक 15000 रुपए की आय हो जाती है। इसके अलावा उनके पास खरगोश भी हैं, मछलियां भी और बत्तख भी। ये एक अलग नकद का बिज़नेस है। वे खेत से अधिक उपज लेने के लिए और कीट-पतंगों को हटाने के लिए केमिकलकी बजाय टाइमर वाली कृत्रिम रोशनी वाले प्रोडक्ट का उपयोग इन करते हैं। फिलहाल वे स्टूडेंट ट्रेनिंग प्रोग्राम और एग्री टूरिज़्म के लिए काम कर रहे हैं, ताकि उनके पास नकद का फ्लो बढ़ सके। उन्हें मध्यप्रदेश सरकार का प्रायोजित इजराइल टूर का पुरस्कार मिला है ताकि वे खेती की नई तकनीक पर काम सकें। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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