जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर न्यायपालिका और केंद्र सरकार के बीच शनिवार को दिनभर तकरार चली। सुबह कैट की कॉन्फ्रेंस में चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा कि हाईकोर्ट्स में जजों के 500 पद खाली हैं। ट्रिब्यूनल्स को भी सुविधाएं नहीं मिल रहीं। इसे नकारते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद बोले कि इसी साल 120 जज
लगााए हैं। इसी बीच अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने एक कार्यक्रम में न्यायपालिका को 'लक्ष्मण रेखा' की याद दिला दी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।इसका जवाब चीफ जस्टिस ने संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट के लॉन में आयोजित कार्यक्रम में दिया। कहा, 'न्यायपालिका को यह निगरानी करने का अधिकार है कि कोई भी संस्था सीमा पार करे।' इसके बाद कानून मंत्री का बयान आया। उन्होंने कहा, 'आपातकाल के दौर में सुप्रीम कोर्ट असफल साबित हुआ था।'
आपातकाल में तो सुप्रीम कोर्ट नाकाम रहा: अदालतें सरकार के फैसले और कानून खारिज कर सकती हैं। आपातकाल के दौर में हाईकोर्ट्स ने बड़ा साहस और संकल्प दिखाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट उस समय असफल साबित हुआ था। -रविशंकरप्रसाद
कोर्ट देखती है कि कोई रेखा पार करे: सरकार के किसी भी अंग को लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए। यह निगरानी करना न्यायपालिका का अधिकार है। संसद से पारित कोई कानून अगर संविधान के विपरीत है तो कोर्ट उसे रद्द कर सकता है। -टी एस ठाकुर
अटॉर्नी जनरल ने बताई लक्ष्मण रेखा: न्यायपालिका सहित सभी संस्थाओं को अपनी लक्ष्मण रेखा में रहना चाहिए। जितनी ज्यादा पावर आपके पास है, उतना ही ज्यादा आपको आत्मावलोकन की जरूरत होती है। -मुकुल रोहतगी, अटॉर्नी जनरल
- इस साल 120 जज नियुक्त किए। 1990 के बाद दूसरी सबसे बड़ी नियुक्ति है। इससे पहले वर्ष 2013 में 121 जज नियुक्त हुए थे।
- निचली अदालतों में 5000 से भी ज्यादा पद खाली हैं। इन्हें तो न्यायपालिका को ही भरना है। इनका सरकार से लेना-देना नहीं।
- सुविधाएं इन्फ्रास्ट्रक्चर सतत प्रक्रिया है। देश में कई अदालतें ट्रिब्यूनल हैं। हमें समझना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के हर रिटायर्ड जज को एक जैसा बंगला नहीं दिया जा सकता। जमीन की बंदिशें हैं तो बंगलों का साइज भी अलग-अलग होगा।
- हाईकोर्ट्स में जजों के 500 पद खाली पड़े हैं। देशभर में आज कोर्ट रूम तो बहुत हैं, लेकिन इनमें जज नहीं हैं। सरकार को कई प्रस्ताव भेजे गए, मगर वह लंबित पड़े हैं। उम्मीद है कि सरकार इस संकट में हस्तक्षेप करेगी।
- ट्रिब्यूनल्स को सरकार कोई सुविधा नहीं देना चाहती। इंफ्रास्ट्रक्चर है और ही पूरे पद भरे हैं। पेंडेंसी 5-7 साल बढ़ रही है। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज ट्रिब्यूनल के मुखिया बनने को तैयार नहीं हैं। क्योंकि सरकार उन्हें न्यूनतम सुविधा के तौर पर आवास तक मुहैया नहीं करवा रही है। अपने रिटायर्ड साथियों को वहां भेजने में मुझे पीड़ा होती है। -रविशंकर प्रसाद, कानून मंत्री
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साभार: भास्कर समाचार
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