Friday, November 25, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: जिंदगी ठहर नहीं सकती, इसे आगे बढ़ना ही होता है

एन. रघुरामन  (मैनेजमेंटगुरु)
स्टोरी 1: 26 नवंबर की रात 9:15 का वक्त था। रायटर के मेरे एक पत्रकार मित्र सौरव मिश्रा मुंबई के कोलाबा में स्थित लियोपोल्ड कैफे में बैठे थे। एक फ्रांसीसी हवाई दल के साथ किसी हिंदी फिल्म पर गहरी चर्चा चल रही
थी। बाजू वाली टेबल पर एक स्मार्ट बंदा बैठा था। वह हॉलीवुड के किसी अभिनेता जैसा लग रहा था। फिर सेकंड से भी कम समय में वह स्मार्ट बंदा अपनी कुर्सी से उड़कर नीचे गिरा और सौरव को लगा कि यह जन्मदिन की कोई शरारत है। लेकिन गिरने वाले उस शख्स पर वे दूसरी निगाह डाल सकें उसके पहले ही कोई चीज उनसे टकराई और वे भी नीचे गिर गए। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। भीतर दिमाग ने कहा कि कुछ बहुत ही बुरा हुआ है, दौड़ों, दौड़ों…पीछे देखने की भी जरूरत नहीं है। गोलियों की आवाज के बीच सौरव दौड़ने लगे। फर्श पर चारों तरफ लोग पड़े थे। खून में नहाए सौरव सावधानी बरत रहे थे कि वे किसी पर पैर रख दें। कैफे के बाहर उन्होंने धीमी रफ्तार से जा रही एक कार का दरवाजा खोला, लेकिन कार के मालिक ने उन्हें बाहर फेंक दिया। 
उन्होंने रेस्तरां के बाहर मौजूद 19 वर्षीय हॉकर किशोर पुजारी को इशारा किया, जिसने उन्हें 300 मीटर दूर रीगल सिनेमा तक चलने में मदद की। वहां उन्हें बताया गया कि एक गोली उनकी पसलियों को चीरकर निकल गई है, लेकिन शुक्र है कि उनके फेफड़े पंक्चर होने से बच गए। फिर उनके रिश्तेदार उन्हें तत्काल सीएसटी रेलवे स्टेशन के पास स्थित सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल ले गए, जहां टीवी पर उन्हें मालूम पड़ा कि यह सुनियोजित आतंकी हमला था, जिसमें उस रेस्तरां में बैठे दस लोग मारे गए हैं, जहां वह बैठा था। आज वे एक फाइनेंशियल सर्विस कंपनी में कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन प्रोेफेशनल हैं। 
स्टोरी 2: इसी तरह वैटर सदाशिव चंद्रकांत कोलाके अपने मित्र को सीएसटी स्टेशन छोड़ने आए थे और सौरव को घायल करने वालों ने उन्हें भी गर्दन में गोली मार दी। उन्होंने भागने की कोशिश की, लेकिन स्टेशन पर ही बेहोश होकर गिर गए। उन्हें कई बार सर्जरी करवानी पड़ी, जिसके कारण सालभर वे बिस्तर पर ही रहे और सबकुछ खो बैठे- नौकरी, बचत यहां तक कि वे जहां काम करते थे उसका मालिक भी अपनी दुकान खो बैठा और उन 400 से ज्यादा दिनों में शहर चलता रहा। लेकिन अपने दो बच्चों को अच्छी परवरिश और शिक्षा देने के दृढ़संकल्प के साथ वे आजीविका कमाने के लिए मुंबई लौटे। उन्होंने वर्ली में खाने-पीने का स्टॉल खड़ा किया। आज उनका बेटा एक रहवासी स्कूल का सातवीं कक्षा का छात्र है और बेटी अपने गांव से दस किलोमीटर दूर के स्कूल में पांचवीं कक्षा की छात्रा है। वे वेटर थे, लेकिन अब स्टाल के मालिक हैं। तीन दिन पहले उन्होंने अपने बेटे की स्केटिंग क्लास के लिए लोन लिया है। 
स्टोरी 3: हिमाचल प्रदेश के सेब उगाने वाले अब अनार और अन्य वैकल्पिक फलों की ओर देख रहे हैं, जिन्हें ठंडे मौसम की अल्पावधि ही काफी हो, क्योंकि जलवायु परिवर्तन ने सेब के लिए जरूरी ठंडी परिस्थितियों में बदलाव ला दिया है। इंडियन हिमालयन क्लायमेट एडाप्टेशन प्रोग्राम जलवायु परिवर्तन के असर का अध्ययन कर रहा है। वह यह भी जानने में लगा है कि इससे हिमालय के सामाजिक-आर्थिक तंत्र कितना प्रभावित होगा। जंगलों अनुकूल जलवायु पर निर्भर रहकर आजीविका को जोखिम में डालने की बजाए स्थानीय समुदायों को सिखाया जा रहा है कि बदलाव लाकर अपनी आजीविका को स्थिर कैसे रखा जाए। इसे एक स्विस एजेंसी मदद दे रही है। कुछ बरसों बाद मुमकिन है कि हिमालय हमें सेब कम और अन्य फल अधिक दे। लेकिन किसानों को भरोसा है कि व्यापार पर उतना असर नहीं होगा। 
फंडा यह है कि हादसेके बाद जीवन को नई शैली में ढालना ही जिंदगी का फलसफा है। जिंदगी कभी ठहरी नहीं रह सकती। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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