सोमवार को 2016 की ठंड ने पहली बार अपना कठोर रूप दिखाया। श्रीनगर पूरी तरह धुंध से ढंक गया। एयरपोर्ट से सारी उड़ानें रद्द हो गईं। संभवत: यह इस बात का संकेत है कि आने वाले दिनों में ठंड कैसी पड़ने वाली है।
आठ दिन पहले श्रीनगर से कहीं दूर पुणे में कड़ाके की ठंड का अनुमान लगाकर 18 से 25 के आयुवर्ग के 15 युवक बेघर और निराश्रित लोगों को ठंड से बचाने के लिए गर्म कपड़े मुहैया कराने की पहल पर चर्चा कर रहे थे। उन्होंने इसके लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बनाया और दान के लिए पता दिया पुणे के व्यस्त दांडेकर ब्रिज का। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस पर उन्होंने पेंटिंग की और लोगों से अपील की कि वे अपने अनुपयोगी, विशेष रूप से सर्दियों के कपड़े डोनेशन के रूप में यहां टांग सकते हैं। ग्रुप ने अपनी जान-पहचान के लोगों से भी कपड़े एकत्र किए और काम शुरू कर दिया।
इस प्रयास को मिली सफलता से प्रेरित होकर अब इस आइडिया को शहर के अन्य कॉर्नर्स पर आजमाने की योजना है। विशेष रूप से ऐसे स्थानों पर जहां भिखारियों की संख्या ज्यादा है। सामाजिक कामों के लिए पुणे के स्वप्रेरित कुछ लोग मिलकर कटराज, वारजी, कोंधवा, जांगली, महाराज रोड और शिवाजी नगर में गुडनेस वॉल बना रहे हैं। इन स्थानों के अलावा कलेक्शन बूथ बनाए गए हैं, जहां लोग अपने कपड़े दान कर सकते हैं। ये बूथ कॉलेज और निजी कंपनियों के स्वयंसेवक चला रहे हैं। इन्हें लगता है कि चूंकि ठंड नजदीक है, इसलिए शहर में जरूरतमंदों को इस पहल से काफी राहत मिलेगी। तय किया गया है कि इस पहल के दूसरे चरण में स्टेशनरी डोनेट करेंगे। इसके लिए स्कूलों में डोनेशन बूथ बनाए जाएंगे, जहां बच्चे अपनी किताबें दे सकते हैं। लेकिन किताबों के दान पर काम ठंड के बाद शुरू होगा।
इस बारे में पुणेकरों के सोचने के बहुत पहले ग्वालियर-भिंड रेलवे ट्रेक के दतिया-भिंड रोड की सेवादा तहसील में 12-14 युवा पेशेवरों ने मिलकर इस दिशा में कदम उठाया था। इस शहर को मुख्यधारा के बड़े शहरों की तरह कम ही तवज्जों मिलती है, जैसा कि भोपाल के नजदीक के अन्य शहरों को मिलती है, क्योंकि यह उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर बसा है। इस शहर की आबादी 30 हजार है और इस तरह की पहल यहां काफी महत्व रखती है। पहल शुरू हुई गांधी पुस्तकालय से। रामशंकर नागरिया, सुरेश पटेल, कमलेश शर्मा, डॉ दिनेश अग्रवाल, इसार खान, राम ठाकुर सहित कई लोगों ने मिलकर इसकी शुरुआत की।
इन लोगों ने लायब्रेरी की बाहरी दीवार को गुडनेस वॉल के रूप में इस्तेमाल कर इस अच्छे काम की शुरुआत की। यहां लोग अपने गर्मियों और सर्दियों के कपड़े दान कर सकते हैं, बल्कि अपने घरों की अतिरिक्त और अनुपयोगी चीजें भी दे सकते हैं। उन्होंने शुरुआत की भी नहीं और कई लोगों ने कपड़ों के अलावा स्कूल बैग तथा किचन के उपयोगी सामान देना शुरू कर दिया था। जरूरतमंद बड़ी संख्या में यहां पहुंचने लगे। चूंकि गरीब और जरूरतमंद यहां से दूर रहते थे, इसलिए युवकों ने तय किया कि गुडनेस वॉल को ऐसी जगह ले जाया जाए, जहां इस तरह के लोग ज्यादा हों। एक धर्मशाला की दीवार को अब गुडनेस वॉल बनाया गया है। स्वयं से पूछिए कि क्या आपके शहर में गुडनेस वॉल या नेकी की दीवार है, अगर नहीं है तो बनाइए, क्योंकि आपके ऊनी कपड़े कुछ लोगों को ठंड से बचा सकते हैं। गुडनेस वॉल अमूल्य पहल है।
इस बारे में पुणेकरों के सोचने के बहुत पहले ग्वालियर-भिंड रेलवे ट्रेक के दतिया-भिंड रोड की सेवादा तहसील में 12-14 युवा पेशेवरों ने मिलकर इस दिशा में कदम उठाया था। इस शहर को मुख्यधारा के बड़े शहरों की तरह कम ही तवज्जों मिलती है, जैसा कि भोपाल के नजदीक के अन्य शहरों को मिलती है, क्योंकि यह उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर बसा है। इस शहर की आबादी 30 हजार है और इस तरह की पहल यहां काफी महत्व रखती है। पहल शुरू हुई गांधी पुस्तकालय से। रामशंकर नागरिया, सुरेश पटेल, कमलेश शर्मा, डॉ दिनेश अग्रवाल, इसार खान, राम ठाकुर सहित कई लोगों ने मिलकर इसकी शुरुआत की।
इन लोगों ने लायब्रेरी की बाहरी दीवार को गुडनेस वॉल के रूप में इस्तेमाल कर इस अच्छे काम की शुरुआत की। यहां लोग अपने गर्मियों और सर्दियों के कपड़े दान कर सकते हैं, बल्कि अपने घरों की अतिरिक्त और अनुपयोगी चीजें भी दे सकते हैं। उन्होंने शुरुआत की भी नहीं और कई लोगों ने कपड़ों के अलावा स्कूल बैग तथा किचन के उपयोगी सामान देना शुरू कर दिया था। जरूरतमंद बड़ी संख्या में यहां पहुंचने लगे। चूंकि गरीब और जरूरतमंद यहां से दूर रहते थे, इसलिए युवकों ने तय किया कि गुडनेस वॉल को ऐसी जगह ले जाया जाए, जहां इस तरह के लोग ज्यादा हों। एक धर्मशाला की दीवार को अब गुडनेस वॉल बनाया गया है। स्वयं से पूछिए कि क्या आपके शहर में गुडनेस वॉल या नेकी की दीवार है, अगर नहीं है तो बनाइए, क्योंकि आपके ऊनी कपड़े कुछ लोगों को ठंड से बचा सकते हैं। गुडनेस वॉल अमूल्य पहल है।
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साभार: भास्कर समाचार
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