Friday, February 6, 2015

स्वास्थ्य बीमा लें मगर सोच समझ कर

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कुछ बीमारियां या दुर्घटना जिसमें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ी है, किसी व्यक्ति की वित्तीय स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। स्वास्थ्य बीमा न केवल बढ़ते हेल्थकेयर से आपकी सुरक्षा करता है बल्कि अप्रत्याशित रूप से हॉस्पिटलाइज होने की दशा में होने होने वाले अतिरिक्त खर्च से भी आपको सुरक्षित रखता है। आम तौर पर स्वास्थ्य
बीमा का चयन और खरीदारी करते वक्त कुछ भूल कर बैठते हैं और वक्त आने पर इसका खामियाजा भी उन्हें अतिरिक्त खर्च के साथ-साथ असुविधा के तौर पर भुगतना होता है। आज हम स्वास्थ्य बीमा खरीदारी से जुड़ी आम गलतियों पर एक नजर डालते हैं। 
  • जरूरत से कम बीमा कवर की खरीदारी: लंबे समय तक किसी बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल में रहने की जरूरत होने पर कितने पैसे खर्च होंगे, इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल होता है। इसलिए, बीमा कवर की राशि निर्धारित करते समय आपको हमेशा ही पर्याप्त बीमा कवर का चयन करना चाहिए। केवल, उतना ही प्रीमियम देकर हेल्थ इंश्योरेंस न खरीदें जो आपकी टैक्‍स सेविंग में मददगार हो और पॉलिसी चुनते समय केवल कम प्रीमियम को ही तरजीह न दें, भविष्‍य में यह भारी पड़ सकता है। वास्तविकता यह है कि बड़ी बीमारियां या दुर्घटना के इलाज में खर्च होने वाले पैसों से किसी भी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति चरमरा सकती है। किसी बड़े अस्पताल में अगर गंभीर बीमारी का लंबे समय तक इलाज कराया जाए तो खर्च 10 लाख रुपये तक का भी हो सकता है। इसलिए, हेल्थ इंश्योरेंस कवर की योजना बनाते समय बीमा कवर को तरजीह देना चाहिए। व्यक्तिगत परिस्थितियां, आय, पहले से मौजूद बीमारियां या पारिवार में रोग के इतिहास के अलावा हेल्थकेयर के संभावित खर्चों पर गौर किया जाना महत्वपूर्ण है। यह स्थान और उन अस्पतालों पर निर्भर करता है जहां जरूरत पड़ने पर इलाज के लिए जाना पड़ सकता है। सरकारी और निजी अस्पतालों तथा नर्सिंग होम के खर्चों में भारी अंतर होता है। 
  • प्रीमियम के आधार पर न लें निर्णय: प्रीमियम की तुलना करना अच्छी बात है लेकिन केवल प्रीमियम की तुलना करने की जगह वैल्यू फॉर मनी के लिए निम्‍नलिखित सुविधाओं की भी तुलना करनी चाहिए।
  • कैशलेस हॉस्पिटलाइजेशन: इस सुविधा के तहत नेटवर्क हॉस्पिटल में बिना पैसे दिए इलाज कराया जा सकता है। इलाज पर होने वाले खर्चों का निपटान सीधे बीमा कंपनियों के साथ किया जाता है। आपको पॉलिसी लेने से पहले प्रत्येक बीमा कंपनी के नेटवर्क हॉस्पिटल की तुलना कर लेनी चाहिए।  
  • एक्सक्लूजन पीरियड: इस पर भी गौर फरमाना चाहिए। यह खास बीमारियों और मेडिकल कंडीशंस के लिए 2-4 साल होता है। अगर, कोई व्यक्ति जीवन की शुरुआती अवस्था में ही हेल्थ इंश्योरेंस लेता है तो बाद के चरण में उसे स्वास्थ्य बीमा के जरिये ऐसी बीमारियों के इलाज में कोई दिक्कत नहीं आएगी।  
  • कम्‍युलेटिव बोनस या प्रीमियम पर छूट: कुछ बीमा पॉलिसियां दावा रहित वर्षों के लिए इंसेंटिव देती हैं जो या तो बिना अतिरिक्त प्रीमियम दिए बढ़े हुए सम एश्योर्ड के रूप में प्राप्त होता है या फिर घटे हुए प्रीमियम के रूप में।  
  • एक्सक्लूजंस: प्रत्येक प्रोडक्ट की एक्सक्लूजन सूची की तुलना करें। समान प्रीमियम वाले उस प्रोडक्ट का चयन करें जिसमें एक्सक्लूजंस सबसे कम हैं। वैकल्पिक तौर पर आप उस विशेष मेडिकल कंडीशन के लिए भी कवर लेना चाहेंगे जो आपके प्रोडक्ट में नहीं है।  
  • रिन्यूअल की अधिकतम उम्र: यह वह उम्र होती है जब तक कंपनी आपको हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम के एवज में कवर देती रहती है। आपको ऐसे प्रोडक्ट का चयन करना चाहिए जो अधिकतम उम्र तक रिन्यूअल की सुविधा उपलब्ध कराता हो।  
  • अन्य लाभ: आपको कुछ अन्य लाभों जैसे एंबुलेंस के खर्च, डे-केयर प्रोसीजर का कवरेज आदि की भी तुलना प्रोडक्ट चुनते समय करनी चाहिए।  
  • नियोक्ता के हेल्थ इंश्योरेंस पर ही न रहें निर्भर: आपका नियोक्ता तभी तक आपके मेडिकल खर्चों को कवर करेगा जब तक आप वहां अपनी सेवाएं देते रहते हैं। हो सकता है आपको अपनी नौकरी बदलनी पड़े या आप रिटायर हो जाएं या अपने कारोबार की शुरुआत करें। इन सभी मामलों में अगर कोई मेडिकल इमर्जेंसी आती है तो आपकी वित्तीय स्थिति प्रभावित होगी। अलग से एक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेना न केवल नियोक्ता वाली पॉलिसी का पूरक होगा बल्कि ऐसी परिस्थितियों में आपका बड़ा सहारा भी होगा। पर्सनल हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने में आप जितनी देर करेंगे आपका प्रीमियम, एक्सक्लूजंस और वेटिंग पीरियड भी उतना ही बढ़ता जाएगा।  
  • क्रिटिकल इलनेस कवर को न करें नजरअंदाज: क्रिटिकल इलनेस या गंभीर बीमारियों का कवर एक ऐसा बीमा है जो खास बीमारियों के डायग्‍नोसिस होने पर काम आता है। ऐसी योजनाओं के तहत कवर की जाने वाली गंभीर बीमारियों की संख्या प्रत्येक कंपनियों की अलग-अलग होती हैं। आम तौर पर क्रिटिकल इलनेस के तहत कैंसर, बाइपास सर्जरी, किडनी फैल्योर, ऑर्गन ट्रांसप्‍लांट मल्टिपल स्क्लेरोसिस आदि शामिल होते हैं। ऐसी बीमारियों पर होने वाले खर्च आपकी बचत का सफाया कर सकते हैं। इनके खर्च केवल अस्पताल में भर्ती होने तक ही सीमित नहीं रहते हैं। ऐसी बीमरियों के फलस्वरूप जीवनशैली में आने वाला बदलाव, अस्पताल से छूटने के बाद चलने वाला इलाज साथ ही नियमित आय की क्षति से भी आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है। हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियां प्राथमिक तौर पर केवल मेडिकल और हॉस्पिटलाइजेशन के खर्च कवर करती है और आम तौर पर अस्पताल से छूटने के बाद एक खास समय-सीमा के बाद दवाई पर होने वाले खर्च को कवर नहीं करती हैं। क्रिटिकल इलनेस कवर के लाभ का भुगतान एकमुश्त किया जाता है जिससे आप बिना अपनी बचत राशि को हाथ लगाए अपनी अतिरिक्त जरूरतें पूरी कर सकते हैं। सबसे अच्छा रहेगा कि एक हेल्थ इंश्योरेंस प्लान के साथ आप क्रिटिकल इलनेस प्लान भी लें। इससे आप आम बीमारियों के अतिरिक्त गंभीर बीमारियों पर होने वाले बड़े खर्च से सुरक्षित रहेंगे।

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साभार: भास्कर समाचार
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