एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
स्टोरी 1: यह उनके परिवार में पहली शादी थी, वह भी उनकी बेटी की। इसलिए पूरा परिवार एक साल पहले इस आयोजन को भव्य और यादगार बनाने के लिए जुटा था। शादी फरवरी 2018 में होने वाली थी। जगह तय हो गई
थी और शॉपिंग शुरू ही होने वाली थी। फिर अचानक बड़ी बाढ़ आई और पूरा दक्षिण गुजरात इसकी चपेट में गया। इससे जान और माल का बड़ा नुकसान हुआ। नुकसान देखकर सूरत की दुल्हन ए. तुशारिका की पूरानी यादें उभर आईं, जब 2006 में बाढ़ में पूरा परिवार प्रभावित हुआ था और उबरने सामान्य जीवन में लौटने में लंबा समय लगा था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। तुशारिका ने शादी में होने वाले पूरे खर्च को दान करने और कुछ नज़दीकी रिश्तेदारों के सामने कोर्ट में शादी करने का फैसला किया। दूल्हे और परिवार को राजी करने में कुछ समय लगा,लेकिन बाद में उन्होंने प्रस्ताव मान लिया। जीवन में एक ही बार होने वाले इस इवेंट को रद्द करना और पूरा पैसा जरूरतमंदों के लिए देना आसान फैसला नहीं होता। युवा तुशारिका का फैसला प्रशंसनीय है।
स्टोरी 2: राजस्थान की बिचिवाड़ा पंचायत में महिपालपुरा स्कूल 25 साल पुराना है। इसमें छह कमरे हैं और कक्षा एक से आठ तक 187 बच्चे पढ़ते हैं। लेकिन एक कमरे का इस्तेमाल पंचायत ऑफिस के लिए होता है। इस मानसून के मौसम में तीन कमरों की छत से पानी इस तरह टपक रहा है कि किसी भी समय छत गिर सकती है। इससे छात्रों की जान को भी खतरा है। एक ही स्पष्ट विकल्प था कि जब तक इसे सुरक्षित बना दिया जाए तब तक इसे बंद रखें और पढ़ाई में नुकसान की फिक्र किसे थी? लेकिन टीचर मगनलाल नारथ चिंतित थे। उन्होंने अपना दिल और स्कूल के सामने सड़क की दूसरी ओर स्थित घर बच्चों के लिए खोल दिया और बच्चों को पढ़ाने लगे। अन्य शिक्षकों ने भी उनका साथ दिया और बच्चों को पढ़ाना जारी रखा, ताकि बच्चों का नुकसान हो। भाग्य से उनके घर में तीन अतिरिक्त कमरे थे और इस तरह पूरा स्कूल उनके घर में गया।
स्टोरी 3: कभी बच्चों के खेल और हंसी से गूंजने वाले स्कूल के कमरे भारी बाढ़ के कारण शांत, जर्जर हो गए हैं। कम से कम 19 प्राथमिक स्कूल तो पूरी तरह गायब हो गए हैं, जबकि 3000 स्कूल आंशिक रूप से असम के कई हिस्सों में क्षतिग्रस्त हुए हैं। जो स्कूल क्षतिग्रस्त हुए हैं उन्हें सरकार की ओर से दुरुस्त करने या फिर से बनाए जाने का इंतजार करना होगा। इस बीच कक्षा किसी और बिल्डिंग में शिफ्ट कर दी जाएगी लेकिन, गुवाहाटी से 300 किलोमीटर दूर स्थित गोहपुर गांव के लोगों ने यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। उन्होंने कलमाऊ गुरी लोअर प्राइमरी स्कूल और नॉर्थ कलमाऊ गुरी गांव के राजीव गांधी मीडिल इंग्लिश स्कूल की मिट्टी हटाने और दीवारों को साफ करने का काम शुरू किया। गोहपुर से 15 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव सिर्फ दो दिन में क्लास शुरू करने में सफल रहा। लोग अपने बच्चों को बारिश के कारण तीन दिन भी स्कूल से दूर नहीं रखना चाहते थे।
इस साल बाढ़ ने 83 लोगों की जान ली है, इसमें से 30 की उम्र 14 साल से भी कम थी। असम के 4000 गांव में 25 लाख लोग इससे प्रभावित हुए हैं। 1.36 लाख लोग बेघर हो गए हैं। इन्होंने 363 राहत शिविरों में शरण ली है। बाढ़ ने 2.09 लाख हैक्टेयर कृषि भूमि को खराब कर दिया है और किसानों की रोजी-रोटी प्रभावित की है। चूंकि गांव वाले सरकार की प्राथमिकताएं जानते हैं, इसलिए उन्होंने स्कूल को ठीक करने का काम खुद पर ले लिया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप महिला हैं या पुरुष अथवा समुदाय हैं। यह आप पर है कि आपदा के समय आप किस तरह अलग कदम उठाते हैं।
फंडा यह है कि इंसानियतकिसी काल को अच्छा या बुरा बनाती है, कलयुग सिर्फ एक नाम है जो हमारे कामों के अनुरूप दिया गया है।
फंडा यह है कि इंसानियतकिसी काल को अच्छा या बुरा बनाती है, कलयुग सिर्फ एक नाम है जो हमारे कामों के अनुरूप दिया गया है।
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साभार: भास्कर समाचार
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