ऑफिस में कई तरह की अालाेचनाएं और समीक्षाएं होती हैं। लेकिन असल में एेसी हर गतिविधि का उद्देश्य काम का स्तर सुधारना ही होना चाहिए। इस बार हार्वर्डबिजनेस रिव्यू सेजानते हैं, कैसी हो आलोचना और क्या हैं
किसी विवाद से निकलने का अच्छा तरीका। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।
रचनात्मक आलोचना कर्मचारियों के काम का स्तर भी सुधार सकती है और उनमें भरोसा भी बढ़ा सकती है। बशर्ते ये क्रिटिसिज्म प्रासंगिक हो और उनकी मदद करने के उद्देश्य से हो। अपने कर्मचारियों में कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए उनसे किसी समस्या पर सीधे बात करना बेहतर होता है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी कर्मचारी को ऐसा लगता हो कि सीनियर होने के नाते साथियों का सम्मान उसे पर्याप्त नहीं मिल रहा है। लेकिन उसे मीटिंग में 10 मिनट लेट आने की आदत हो तो उसे स्पष्ट शब्दों में बताया जा सकता है कि सम्मान पाने के लिए आपको पहले अपनी इस आदत को बदलना होगा। आप उनसे पूछ सकते हैं कि क्या आपको पता है कि देर से आने से आपके साथियों पर इसका क्या असर होता है। आपको ही इसका समाधान खोजना होगा।
(स्रोत: हाऊ टू डिलिवर क्रिटिसिज्म सो इम्प्लायी पे अटेन्शन। डेबोराह ब्राइट)
काम के बारे में सही सवाल पूछकर भी टीम की मदद की जा सकती है। ऐसा एक सवाल हो सकता है आप आज क्या कर रहे हैं। यह सवाल ध्यान इस बात पर ले आएगा कि आज के लिए के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम क्या है। दूसरा सवाल है- जो काम कर रहे हो वो क्यों कर रहे हो? इससे यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि क्या महत्वपूर्ण है और टीम के लिहाज से ये कितना जरूरी है। तीसरा सवाल है- जो काम आप कर रहे हैं वो भविष्य में किस तरह काम सकता है। अगर ऐसा लगे कि टीम ऐसे काम में लगी है, जो कंपनी के बड़े लक्ष्यों से बहुत ताल्लुक नहीं रखते हैं तो इस पर फिर से विचार करने की जरूरत है। इसके अलावा एक और सवाल पूछा जा सकता है इसके अलावा और क्या काम है जो हम अपने काम को सुधारने के लिए कर सकते हैं।
(स्रोत: बीइंग स्ट्रैटजिक लीडर इज अबाउट आस्किंग राइट क्वेश्चन। लीजा़ लाई)
जब कोई निराश या नाराज हो तो उसका किसी तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल होता है। जैसे किसी कलीग से किसी मामले में विवाद हो गया हो और उस समय कोई निर्णय करना मुश्किल हो जाता है? उस समय क्या जवाब दिया जाए या क्या किया जाए यह महत्वपूर्ण होता है। आवेश का एक वाक्य बात को काफी हद तक बढ़ा सकता है। उसी समय किसी फैसले पर पहुंचने के स्थान पर इसे बाद के लिए छोड़ देना बेहतर होता है। आप चाहें तो अपने कलीग से यह भी कह सकते हैं कि मैं कुछ देर बाद आपसे इस पर बात करता हूं। अगर फिर भी बात बढ़ती ही जाए तो आप वहां से जा सकते हैं। रूम से बाहर कुछ देर टहलने जाया जा सकता है,ताकि आवेश से बाहर निकल सकें। बाद में जब लगे कि अब अच्छी तरह से सोच-विचार के बाद किसी निर्णय पर पहुंचने की स्थिति में है तो इसका समाधान खोजना चाहिए।
(स्रोत: एचबीआर गाइड टू डीलिंग विथ कॉननफ्लिक्ट। एमी गालो)
(स्रोत: एचबीआर गाइड टू डीलिंग विथ कॉननफ्लिक्ट। एमी गालो)
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साभार: भास्कर समाचार
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