Thursday, May 4, 2017

लाइफ मैनेजमेंट: अच्छी कहानियां कभी भी पुरानी नहीं होती

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
कल रात बुकर पुरस्कार विजेता ब्रिटिश लेखक जूलियन बार्न्स का एक प्रसिद्ध कोट मुझे याद गया। यह उनके 746 कोट्स में से हैं। 'बचपन की यादें वे सपने हैं, जो नींद से जागने के बाद भी आपके साथ बने रहते हैं'। ये कोट
मुझे इसलिए याद आया, क्योंकि हर बार जब भी मेरी बेटी कोई चीज देखती है, वह मुझसे पूछ लेती है- डैड आपको याद है वह कहानी, आपने मुझे सुनाई थी। फिर वह मुझसे उसी कहानी का कम से कम एक हिस्सा दोहराने को कहती। ठीक ऐसा ही हुआ मंगलवार शाम को। मैं आईपीएल मैच देख रहा था। मेरी बेटी काम से लौटी थी। उसने रवि शास्त्री को टीवी स्क्रीन पर देखा और कहा- याद है आपने मुझे इनकी कार वाली कहानी सुनाई थी, जब कई साल पहले वर्ली में इन्होंने हमें क्रॉस किया था? यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हां, मुझे 1999 को वह दिन याद है। रविवार का दिन था और हम लोग मुंबई में वर्ली सी फेस रोड पर खड़े थे और समुद्र की लहरे हमारे चेहरे से टकरा रही थीं। अचानक हमारे पीछे एक लिमोसिन-ऑडी 100 सेडान आकर खड़ी हो गई। नंबर प्लेट पर लिखा था एमएफए 1। मैंने अपनी बेटी से कहा यह रवि शास्त्री की होनी चाहिए। वह बच्ची थी, उसने मुझे पूछा आपको इस बारे में कैसे पता? फिर मैंने उसे वह कहानी सुनाई जो मैं ही नहीं हर उस भारतीय को याद होगी, जिसने 1985 में ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट वर्ल्ड चैम्पियनशिप देखी थी। यह कार शास्त्री को चैम्पियन ऑफ चैम्पियन घोषित होने पर उपहार में मिली थी। उन्होंने पांच मैचों में 182 रन बनाए थे और आठ विकेट लिए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें कस्टम और इम्पोर्ट ड्यूटी में छूट दी थी। दिलचस्प बात यह है कि उसे याद था कि कैसे रवि शास्त्री ने उपहार में मिलने के तुरंत बाद इस कार को 10 हजार लोगों के सामने चलाया था, जबकि उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं था और कार में बैठे टीम के सारे सदस्य उन्हें चीयर कर रहे थे। जब मैंने यही कहानी उसे फिर सुनाई तो उसने इसे पूरे ध्यान से सुना, जबकि क्रिकेट में उसकी रुचि जीरो है। 
मुझे लगता है कि कहानी सुनाने के अपने फायदे हैं और हमें इस कला-विज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए पुनर्जीवीत करने की जरूरत है, क्योंकि यह पीढ़ी शायद ही कभी कहती है कि दादी प्लीज एक कहानी सुनाओ और फुर्सत के समय हमेशा टीवी के सामने या मोबाइल में व्यस्त रहती है। जब मैंने बुधवार को सुबह अपने एक दोस्त को इस विचार के बारे में बताया तो उन्होंने मुझे बेंगलुरू के सीनियर सीटिजन्स के एक प्लेटफॉर्म के बारे में बताया, जिसे वे पेंशनर्स पेराडाइज कहते हैं। उनके पिता इसके सदस्य हैं। इस प्लेटफॉर्म का नाम है- कगक्का गुबक्का ( कन्नड़ भाषा में इसका मतलब है- कौआ और गौरेया।) यह पहल की है फाइनल ईयर के इंजीनियरिंग की छात्र स्मृति हार्टीस ने। उन्होंने बच्चों को श्रोताओं के रूप में और पूरे शहर के पेंशनर्स को पंचतंत्र, तेनालीराम, अकबर बीरबल, महाभारत और रामायण की कहानियां सुनाने के लिए एक साथ लाने की पहल की है। ये कहानियां और इनकी सीख हमने कोख से सुनना शुरू की, लेकिन इसे अगली पीढ़ी तक नहीं पहुंचा सके। 
कुछ ही महीनों पुराना यह संगठन इतना प्रसिद्ध हो गया है कि यह विचार अब छोटी-छोटी कॉलोनियों तक फैल गया है और लोगों ने अपने नुक्कड़ बना लिए हैं, जहां बुजुर्ग कॉलोनी के बच्चों को कहानियां सुनाते हैं। कई पेरेंट्स, खास तौर पर आईटी पृष्ठभूमि वाले, चाहते हैं कि उनके बच्चों को संयुक्त परिवार के फायदे मिलें। इसलिए वे अपने बच्चों को रोज की इस सभा में लाते हैं। बच्चे यहां अपने हमउम्रों से मिलते हैं और अलग-अलग दादा-दादी, नाना-नानी से कहानियां सुनते हैं, जो अपनी भूमिका निभाते हैं। 
फंडा यह है कि छुटि्टयों में बच्चोंको जुटाएं और कहानियां साझा करें, क्योंकि कोई भी शानदार कहानी पुरानी नहीं होती। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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