Sunday, May 14, 2017

दुनिया के 100 देशों पर साइबर हमला; भारत भी प्रभावित, एलर्ट जारी

भारत समेत दुनियाभर के करीब 100 देशों पर बड़ा साइबर हमला हुआ है। इस हमले से पिछले 24 घंटों के दौरान सवा लाख से ज्यादा कंप्यूटर प्रभावित हुए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह हमला अमेरिकी सुरक्षा
एजेंसी (एनएसए) से चुराए हुए साइबर हथियार ‘इटर्नल ब्लू’ से किया गया है। इसे ‘वान्नाक्राइ रैनसमवेयर’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस हमले के मद्देनजर भारत सरकार की इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी) ने रिजर्व बैंक, शेयर बाजार और राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआइ) जैसे संवेदनशील संस्थानों को अलर्ट जारी किया है। इसमें इस बात का विस्तार से उल्लेख है कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है। 
खबरों के मुताबिक, इस साइबर हमले के बारे में सबसे पहले स्वीडन, ब्रिटेन और फ्रांस में पता चला। इसके बाद इसका दायरा बढ़ता चला गया। ‘कैस्परस्काई’ लैब में कार्यरत सिक्योरिटी रिसर्चर्स ने ब्रिटेन, रूस, यूक्रेन, भारत, चीन, इटली और मिस्न समेत सौ देशों में साइबर हमलों को रिकॉर्ड किया। इन हमलों से सबसे ज्यादा ब्रिटेन प्रभावित हुआ, जहां अस्पतालों और क्लीनिकों के फोन और कंप्यूटरों ने काम करना बंद कर दिया। लिहाजा अस्पतालों को मरीजों से वापस जाने का अनुरोध करना पड़ा। इसके अलावा वैश्विक कंपनी ‘शिपर फेडेक्स’ समेत कई कंपनियां भी इस हमले से खासी प्रभावित हुई हैं। रूस में भी कई बैंकों और मंत्रलयों के कंप्यूटर इस हमले का शिकार बने हैं। सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर कंपनी ‘सिमेंटेक’ में रिसर्च मैनेजर विक्रम ठाकुर ने बताया कि अमेरिकी मुख्यालय वाले कुछ ही संगठन इस साइबर हमले से प्रभावित हुए हैं क्योंकि हैकर्स ने संभवत: अपना अभियान यूरोपीय संगठनों को निशाना बनाने से शुरू किया। एशियाई देशों में भी इसका ज्यादा प्रभाव नहीं दिखा है, लेकिन इन देशों के अधिकारी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि नुकसान कितना हुआ है। भारत में आंध्र प्रदेश पुलिस के कुछ कंप्यूटर ही इस साइबर हमले की जद में आए हैं। अधिकारियों ने बताया कि चित्तूर, कृष्णा, गुंटूर, विशाखापट्टनम और श्रीकाकुलम जिलों की 18 पुलिस इकाईयां प्रभावित हुई हैं। लेकिन इससे दैनिक कामकाज प्रभावित नहीं हुआ। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि वे केंद्रीय गृह मंत्रलय के साथ संपर्क में हैं और डेटा सुरक्षित रखने के सभी एहतियाती उपाय कर रहे हैं। उधर, चीन की सरकारी समाचार एजेंसी ने शिक्षण संस्थाओं के प्रभावित होने की सूचना दी है।

‘शैडो ब्रोकर्स’ का कारनामा: इस साइबर हमले की जिम्मेदारी लेने के लिए अभी तक कोई सामने नहीं आया है, लेकिन माना जा रहा है कि इसे ‘शैडो ब्रोकर्स’ नामक ग्रुप ने अंजाम दिया है। ग्रुप ने 14 अप्रैल को ही इस मालवेयर की जानकारी ऑनलाइन कर दी थी। यह वही ग्रुप है जिसने पिछले साल दावा किया था कि उसने एनएसए का साइबर हथियार ‘इटर्नल ब्लू’ चुरा लिया है। उस वक्त लोगों ने उनके इस दावे पर संदेह व्यक्त करते हुए कहा था कि ग्रुप शायद अपने हैकिंग स्तर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है। दरअसल, ‘इटर्नल ब्लू’ को एनएसए ने आतंकियों और दुश्मनों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कंप्यूटरों में सेंध लगाने के लिए विकसित किया था। हालांकि, अमेरिका ने यह कभी स्वीकार नहीं किया कि ‘शैडो ब्रोकर्स’ द्वारा लीक किया गया मालवेयर एनएसए या अन्य किसी अमेरिकी खुफिया एजेंसी से संबंधित है, लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक पूर्व खुफिया अधिकारी के हवाले से बताया कि यह संभवत: एनएसए की ही ‘टेलर्ड एक्सेस ऑपरेशन’ यूनिट से हासिल किया गया है।

स्नोडेन ने एनएसए पर मढ़ा दोष: एडवर्ड स्नोडेन ने इस साइबर हमले को रोक पाने में विफल रहने के लिए एनएसए को जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि कई बार चेतावनी दिए जाने के बावजूद एनएसए ने इस खतरनाक हथियार का निर्माण किया और आज हम उसका परिणाम देख रहे हैं।

भारतीय मूल के डॉक्टर ने दी थी चेतावनी: लंदन में भारतीय मूल के डॉक्टर कृष्णा चिंतापल्ली ने बुधवार को ही ‘ब्रिटिश मेडिकल जर्नल’ में एक लेख के जरिये अस्पतालों पर ‘वान्नाक्राइ रैनसमवेयर’ के संभावित हमले की चेतावनी दे दी थी। अपने दावे के समर्थन में उन्होंने कैंब्रिज के नजदीक पैपवर्थ अस्पताल की घटना का उल्लेख किया था। वहां एक नर्स ने जब एक लिंक पर क्लिक किया था तो उसका कंप्यूटर संक्रमित हो गया था।

स्थिति से निपटने के लिए जुटे हैं विशेषज्ञ: संक्रमण से प्रभावित कंप्यूटरों के जरिये हैकर डिजिटल करेंसी ‘बिटक्वाइन’ में 300 से 600 अमेरिकी डॉलर की मांग कर रहे हैं। अमेरिका के आंतरिक सुरक्षा विभाग के तहत आने वाली कंप्यूटर इमरजेंसी रेडीनेस टीम (यूएससीईआरटी) ने बताया कि उसे कई देशों से ‘वान्नाक्राइ रैनसमवेयर’ संक्रमण की शिकायतें मिली हैं। फिलहाल लोगों और संगठनों को भुगतान करने के प्रति हतोत्साहित किया जा रहा है क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि भुगतान करने के बाद कंप्यूटर काम करने ही लगेगा। उधर, माइक्रोसॉफ्ट की प्रवक्ता ने बताया कि कंपनी स्थिति से निपटने के उपायों पर काम कर रही है।

एक रिसर्चर को मिला तात्कालिक समाधान1हांगकांग में एक साइबर सिक्योरिटी रिसर्चर ने एक ‘किल स्विच’ की खोज की है जो ‘वान्नाक्राइ रैनसमवेयर’ को फैलने से रोक सकता है। उन्होंने बताया कि यह खोज संयोग से हुई है, लेकिन यह तात्कालिक ही है क्योंकि हमलावर जल्द ही इसका भी तोड़ जल्द तलाश लेंगे। हमले से बचने के लिए उन्होंने लोगों को जल्द से जल्द अपना कंप्यूटर अपडेट करने की सलाह दी है।

जी-7 को नहीं पता किसने किया हमला1इटली के बारी में संपन्न जी-7 देशों के वित्तीय प्रमुखों के सम्मेलन में भी शनिवार को इस हमले को लेकर चर्चा हुई। लेकिन इस साइबर हमले के पीछे कौन लोग हैं, इस बारे में उन्होंने साफ कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। हालांकि, उन्होंने साइबर दुनिया को और सुरक्षित बनाने के अपने प्रयासों को दोगुना करने का संकल्प व्यक्त किया।

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साभार: भास्कर समाचार 
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