एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: सभी अच्छे स्कूल पीटीएम- पैरेंट टीचर्स मीटिंग करते हैं और निर्णय करने की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए पीटीए -पैरेंट टीचर्स एसोसिएशन की इजाजत देते हैं। लेकिन, केरल के तिरुवनंतपुरम से 8 किलोमीटर
दूर अटुकल में 1932 में स्थापित प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूल के हैडमास्टर के भुआरी मानते हैं कि इतना पर्याप्त नहीं है। वे अगले स्तर पर जाना चाहते हैं- बहुत अच्छा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। एक आम आदमी की नज़र से देखेंगे तो आठवीं कक्षा से ऊपर सभी 555 छात्र एक जैसी यूनिफॉर्म में नज़र आते हैं लेकिन, भुआरी ने इस यूनिफॉर्म के पीछे भी कुछ देखा। उन्होंने एक योजना शुरू की जिसे मलयालम में कहा जाता है- कनिवू- ओरू स्नेहस्पर्शम। इसका मतलब है- अच्छाई- एक दोस्ताना अहसास। इसका उद्देश्य था, संस्थान और छात्रों के पैरेंट्स को नज़दीक लाना। इस कार्यक्रम के तहत पहला कदम यह तय किया गया कि सभी 555 छात्रों के घर जाकर उनके परिवारों से मिला जाए ताकि उनके उनके रहन-सहन को समझा जा सके।
जो उन्होंने देखा वह चौंकाने वाला था। वे नहीं जानते थे कि उन मुस्कुराते यूनिफॉर्म पहने चेहरों के पीछे कुछ अभावग्रस्त परिवार कितनी मुश्किल परिस्थितियों रहते हैं। एक छात्र का परिवार तिरपाल से बनी छत के नीचे रहता था। तीन अन्य बच्चों की परवरिश उनकी बूढ़ी दादी कर रही थी, क्योंकि उनकी मां ने उन्हें छोड़ दिया था और पिता हमेशा नशे में रहते थे। एक बच्चे के पिता की मौत कैंसर से हो गई थी और मां मुश्किल से गुजारा कर रही थी। इसी तरह की कई अन्य दुखभरी कहानियां थी। पीटीए के साथ चर्चा के बाद तय किया गया कि इन परिवारों की समस्याओं के समाधान का प्रयास किया जाए और सभी बच्चों को, जहां तक खुशी की बात है, एक स्तर पर लाने की कोशिश हो लेकिन, इस लक्ष्य में सबसे बड़ी बाधा थी- भूख। इसलिए कमेटी ने दिसंबर 2016 में एक और प्रोग्राम शुरू करने का फैसला किया- स्मॉल टिन्स। इसमें सभी 555 छात्रों को एक छोटा डिब्बा दिया गया, जिसके उन्हें रोज 2 रुपए जुटाने थे या इतना कॉन्ट्रिब्यूशन देना था। सबसे ज्यादा पैसा जुटाने वाले बच्चे के लिए पुरस्कार भी रखा गया। 25 मार्च को जब बच्चों से डिब्बे फिर कलेक्ट किए गए तो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के 555 बच्चों ने 1.8 लाख रुपए जुटा लिए थे। एक छात्र ने 100 दिन में 4,087 रुपए जमा किए थे। सूची पीटीए ने जरूरतमंद दस परिवारों की बनाई और बच्चों की शिक्षा और भोजन की पूरे साल की जरूरतों को पूरा करने के लिए उनकी मदद का फैसला किया। जब इस बात का प्रचार हुआ तो मदद कई जगह से आने लगी, ताकि प्रोजेक्ट को पूरे साल सफलता से चलाया जा सके।
स्टोरी 2: अहमदाबाद-पुरी एक्सप्रेस जब नागपुर से 60 किलोमीटर पहले अचानक रुकी तो विपिन खड़से को नहीं पता था कि उनके काम की इतनी अहमियत होगी। वे नागपुर के गवर्नमेंट कॉलेज और हॉस्पिटल से इंटर्नशिप कर रहे हैं। वे अधिकृत रूप से डॉक्टर नहीं बने हैं। जब टिकट कलेक्टर और गार्ड किसी डॉक्टर को खोजते हुए आए तो इस 24 साल के युवा ने खुद को इंटर्न के रूप में परिचित कराया। शुक्रवार को इसी ट्रेन के दूसरे कपार्टमेंट में 24 साल की चित्रलेखा लेबर पेन से गुजर रही थी। प्रसव जटिल हो गया था, क्योंकि बच्चे का सिर नहीं, शोल्डर नजर रहा था। स्थिति गंभीर थी लेकिन, ट्रेन में मौजूद दाई की मदद से विपिन ने डॉक्टर्स के व्हाटसएप ग्रुप पर फोटो अपलोड किए। सीनियर रेसिडेंट डॉक्टर शिखा मलिक ने फोन पर ही डिलिवरी के लिए गाइड किया और इस तरह उसने दोनों को सुरक्षित बचा लिया।
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साभार: भास्कर समाचार
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