इस प्राथमिक स्कूल में बच्चे विद्यार्थी भी हैं और टीचर भी। पहले वे छोटी क्लास के बच्चों को पढ़ाते हैं और उसके बाद खुद भी पढ़ते हैं। यह सिलसिला लंबे समय से गारियावास गांव में चल रहा है। क्योंकि स्कूल में एक ही शिक्षक हैं। गांव राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में है। ग्रामीणों का कहना है कि बच्चे रोज स्कूल आते, लेकिन
शिक्षक एक होने से पढ़ाई बाधित होती है। इस पर बच्चों ने खुद समस्या का हल निकाला। सीनियर बच्चों ने छोटी क्लास के बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा लिया। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। बड़ी क्लास के बच्चे खुद की पढ़ाई के साथ छोटी कक्षाओं में पढ़ाने पहुंच जाते हैं। ब्लैक बोर्ड पर सवाल लिखते हैं और छोटे बच्चे उनका जवाब देते हैं। बड़ी क्लास के बच्चे रोजाना घर पर छोटी क्लास के बच्चों को पढ़ाने के लिए तैयारी करते हैं। इन पर दोहरी जिम्मेदारी है। एक तो उन्हें स्वयं अपनी तैयारी करना होती है वहीं छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए घर पर तैयारी करते हैं। पांचवीं कक्षा के छात्र श्रवण कुमार सुथार, विक्रम सिंह चूंडावत, कन्हैयालाल गर्ग तथा कक्षा चौथी की छात्रा साेनू सुथार छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं। यह बच्चे तीन महीने से पढ़ा रहे हैं। इस स्कूल के बच्चों का जज्बा देखिए, पढ़ाई के साथ स्कूल परिसर को हराभरा बनाने के लिए पौधरोपण भी किया। अब रोजाना पौधों को पानी देना भी नहीं भूलते हैं। छुट्टी के दिन भी बच्चे पौधों को पानी देने पहुंच जाते हैं। स्कूल परिसर में कचरा नहीं डालते हैं और नहीं किसी को डालने देते हैं। छोटे बच्चे कचरा फैलाते हैं तो उसे सीनियर बच्चे स्कूल की चारदीवारी के बाहर डालकर आते हैं।
स्कूल में मैं अकेली हूं और पांच कक्षाएं हैं। ऐसे में बच्चों को होमवर्क देकर कमरों में चक्कर लगाती रहती हूं। बच्चे शोर करें, इसके लिए बच्चों को ही कक्षाएं संभालनी पड़ रही हैं। शिक्षक लगाने के लिए उच्चाधिकारियों को बता रखा है। -सुशीला राणावत, प्रधानाध्यापिका, राप्रावि गाडरियावास
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साभार: भास्कर समाचार
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