एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
इस बार क्रिसमस का दिन रविवार को आया और न्यू ईयर भी रविवार को ही है। इसलिए हमारे पूरे परिवार ने काम से पूरी तरह ब्रेक लेकर क्रिसमस का आनंद लिया। मैंने सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर दोस्तों को देखने का
फैसला किया। अपना मोबाइल हाथ में थामे बैठा ही था कि शिमला से कई लाइव वीडियोज सामने आने लगे। इस हिल स्टेशन पर इस सीजन की पहली बर्फबारी हुई थी। 25 साल में पहली बार क्रिसमस पर बर्फबारी हुई थी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दोस्त शिमला में बर्फबारी का आनंद ले रहे थे। मुख्य माल रोड पर होटल्स में कृत्रिम क्रिसमस ट्री बर्फ से बचाने के लिए शेड में ले जाए जा रहे थे। बच्चे बर्फ जमा करने की असफल कोशिश कर रहे थे। मुझे टीवी से पहले वहां की खबरें मिलने लगी थीं। पैरेंट्स बच्चों के उन यादगार पलों को रिकॉर्ड करते हुए खुशी का अनुभव कर रहे थे। बच्चों ने बर्फ को पहली बार महसूस किया था, जिसके बारे में उन्होंने सिर्फ कहानियों और स्कूल की किताबों में पढ़ा था। माता-पिता के कमेंट्स टीवी और अखबारों से अलग थे। यह मुझे पुरानी यादों की तरफ ले गया।
जब मैंने नीचे स्क्रॉल किया तो देखा कि आठ साल का एक बच्चा 15 रेलवे स्टेशन के बोर्ड्स के सामने अलग-अलग पोज में तस्वीरों में नजर रहा है। अजमेर का कक्षा तीन का छात्र गुरुबख्श सिंह अपने पिता राजेंद्र सिंह के साथ यात्रा पर था। पिता रेलवे अजमेर में अकाउंट्स विभाग में कर्मचारी हैं और वे दस दिन की छुट्टियों पर मरुसागर साप्ताहिक एक्सप्रेस ट्रेन से राजस्थान से केरल के एरनाकुलम की यात्रा पर थे। 45 घंटे की 2,555 किलोमीटर की यात्रा में 30 ठहराव थे। ट्रेन के नाम के अनुसार ही यह यात्रियों को सूखे यानी रेगिस्तानी (मरू) प्रदेश से पानी (सागर) के प्रदेश केरल ले जा रही थी। मेरी दिलचस्पी इसमें इसलिए हुई, क्योंकि इस पोस्ट में यात्रा के इस बदलाव को रिकॉर्ड किया गया। ऐसा इन दिनों दुर्लभ है। पिता ने यात्रा के हर पल को रिकॉर्ड किया। हर स्टेशन के बोर्ड के आगे बेटे की तस्वीर खींची। तस्वीरों को स्टेशन की विशेषताओं के साथ फेसबुक पर पोस्ट किया। मेरा बचपन भी ऐसा ही था। हर स्टेशन पर मेरे पिता उसकी खासियत के बारे में मुझे बताते। जैसे सोलापुर चादरों के लिए जाना जाता है। गुरबख्श सिंह की यात्रा की तस्वीरों ने मुझे अपनी उन यात्राओं की याद दिला दी।
हालांकि हम सभी को अपनी शुरुआती ट्रेन यात्रा के कुछ अनुभव याद रहते हैं, लेकिन अपने बचपन की इन यादों को मैं कभी नहीं भूला। भांप का इंजन काले धुएं के बादल उड़ाता आगे बढ़ता, ग्रिल लगे डिब्बों में लटकती चेन। छोटे बच्चे पूरा दृश्य देखने के लिए खिड़कियों पर एक-दूसरे होड़ करते। खासकर तब जब ट्रेन किसी मोड़ पर होती। हम सब अपनी पूरी आवाज खोलकर चिल्ला पड़ते- मम्मी मैंने गार्ड और इंजन दोनों देखे। अब लगता है उस समय अगर मोबाइल और कैमरा होता तो ये दृश्य कैद कर लेता। इसके पहले पोस्टों में राजेन्द्र सिंह ने अपने बेटे के हर पल को तस्वीरों में दिखाया है। जैसे एक दिन मेमने के साथ, एक दिन रबर फैक्टरी में और फिर सब्जियों के खेत में। फिर मैंने राजेंद्र सिंह को एक मैसेज फेसबुक पर करके पूछा कि वे अपने बेटे को क्या बनते देखना चाहते हैं और उनका जवाब आया 'मैं उसे एक किसान देखना चाहता हूं, जिसके पास बहुत सी यादें हों कि बचपन से बड़े होने की उसकी यात्रा कैसी रही, इसलिए मैं भविष्य के लिए उसके जीवन को रोज रिकॉर्ड करता हूं।'
फंडा यह है कि उम्रके शीर्ष पढ़ाव पर एहसास होता है कि असली आनंद यात्रा में ही है। यह मंजिल पर पहुंचने से कहीं अधिक होता है।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार
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