एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
गुरुवार सुबह मैं 9डब्ल्यू375 फ्लाइट से रायपुर रवाना हुआ। एक दिन पहले ही मुझे एसएमएस मिला था कि सुविधाजनक यात्रा के लिए मैं एयरपोर्ट पर 90 मिनट पहले पहुंच जाऊं। कई लोग इन निर्देशों को गंभीरता से
नहीं लेते लेकिन, मैं परिस्थिति के अनुसार उन पर गौर करता हूं। मुझे पता था कि मुंबई एयरपोर्ट पर हैंड बैग के लिए नो बैगेज टैग का 7 दिवसीय प्रयोग किया जा रहा है। इससे स्टैंपिंग की जरूरत नहीं रहेगी और यात्रियों को सुरक्षा जांच पर सर्पीली कतारों से कुछ राहत मिलेगी। किंतु अन्य सारे यात्रियों की कड़ी जांच की जा रही है, इसलिए पहले से अधिक समय लग रहा है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। चूंकि, मैं पुरानी पद्धतियों का अनुसरण करने वाला और नियमित यात्री भी हूं तो मैं इन निर्देशों का काफी हद तक पालन करता हूं। यह मुझे किसी वीवीआईपी मूवमेंट की जानकारी की तरह लगातार मिल रही खबरों पर निर्भर होता है। सेल्फ प्रिंटेड बोर्डिंग पास होने और चेक-इन के लिए कोई सामान होने के बावजूद मैं काफी पहले एयरपोर्ट पहुंच गया और शांतिपूर्वक सुरक्षा जांच प्रक्रिया पूरी कर ली। मेरे डिपार्चर के 32 मिनट पहले एक और एसएमएस मेरे मोबाइल पर प्रकट हुआ कि बोर्डिंग गेट निर्धारित समय से 25 मिनट पहले बंद कर दिया जाएगा। मैंने 31वें मिनट पर विमान में प्रवेश किया और मेरे पीछे 13 और यात्री विमान में आए, गेट बंद होने की 25 मिनट की अवधि पूरी होने के कुछ सेकंड पहले। चूंकि मैं पहली कतार में बैठा था तो मेरी जिज्ञासा जागृत हुई कि देखें ठीक 25 मिनट बाद क्या होता है। कुछ भी नहीं हुआ। फिर अचानक विमान के भीतर 10 सीट पर बैठे नीरज अग्रवाल जोर-जोर से चिल्लाने लगे, क्योंकि उनकेे चार साथियों को भीतर नहीं आने दिया जा रहा था। उन्होंने चालक दल और कॉकपिट सदस्यों से याचना की, क्योंकि विमान को रन-वे पर ले जाने के िलए पर्याप्त समय था। चालक दल के सदस्यों ने नीरज को बताने की कोशिश की कि वे उनके मित्रों की मदद नहीं कर सकते, क्योंकि सबकुछ डिजिटलाइज्ड है। नीरज को यह जवाब स्वीकार नहीं था और प्रवेश द्वार पर जोर-जोर से चिल्लाकर उन्होंने अंतिम प्रयास किया। प्रवेश द्वार पर खड़े रहकर उन्हें समझ में नहीं अा रहा था कि गेट खुला होने के बावजूद उनके मित्र भीतर क्यों नहीं सकते।
इस बीच, सेकंड से भी कम समय में उनके चार सहयोगियों का वन चेक-इन बैगेज रिमोट सेंसर ने पहचान लिया, इसे लगैज होल्ड से हटा लिया गया और विमान का प्रवेश द्वार बंद हो गया। नीरज जो बात समझ नहीं सकें वह यह थी कि मशीनें इस तरह काम करने के लिए डिज़ाइन की गई है कि वे किसी की मदद नहीं कर सकतीं, क्योंकि उनमें सहानुभूति नहीं होती। फिर चाहे स्टॉफ नीरज की मदद करना चाहता था। बोर्डिंग गेट के ठीक पहले आमदनी लाने वाले चार यात्रियों को खोना किसी भी वायुसेवा के लिए भी बड़ा नुकसान है। लेकिन, हमें यह समझने की जरूरत है कि चाहे जितना हम कहें 'चलता है' या 'हेल्प कर देंगे' या 'एक मिनट ही तो देर हुई है' पर ये जुमले मशीन को बंद हो चुका सिस्टम खोलने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। कोई कर्मचारी मानवीय हाथों से इसे नहीं खोलेगा, क्योंकि बाद में उसे जवाब देना होगा। आखिरकार उन चार यात्रियों के बिना ही विमान ने उड़ान भरी, जिन्हें हो सकता है रायपुर में कोई महत्वपूर्ण काम हो।
चूंकि हम सब डिजिटल दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं, जो एक हृदयहीन दुनिया है और जिसमें मानव की बजाय मशीनें ही ज्यादातर काम करेंगी, कई सेवाओं के उपयोगकर्ता के रूप में हमें अनुशासित होकर मशीन से आने वाले निर्देशों को उनकी टाइम लाइन के अनुसार मानना चाहिए।
फंडा यह है कि 2017 के अधिक डिजिटल विश्व में हमें 'एडजस्ट हो जाएगा' वाली संस्कृति छोड़नी होगी और निर्देशों का पालन करना होगा।
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साभार: भास्कर समाचार
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