Thursday, August 18, 2016

बात मुद्दे की: 'गुरु बिन ज्ञान' देने की धक्काशाही

देश के भविष्य को संस्कारों के सांचे में ढालने का प्रथम सोपान अर्थात प्राथमिक शिक्षा नीतिगत सहारे की प्रतीक्षा में है। कारण कि करीब दो साल से सतत प्रयोग शिक्षा की ठोस नीति नहीं दे पाया है। नतीजा, शिक्षा की नीति नदारद तो लाखों नौनिहालों का भविष्य एकल शिक्षक के हवाले। यहां एकल का सीधा-सा तात्पर्य, एक
स्कूल में एक ही शिक्षक के हाथों में पहली से पांचवीं तक के विद्यार्थियों को प्राथमिक शिक्षा देने की जिम्मेदारी। है न विडंबना, मगर यही दुखद हकीकत। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यह एकाध स्कूल से जुड़ी सच्चाई नहीं अपितु प्रदेश के सकल प्राथमिक स्कूलों में से 10 फीसद की वास्तविकता है। इनमें हर आम ओ खास शामिल हैं। आलम तो यह कि प्रदेश सरकार के वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यु जैसे कैबिनेट स्तर के मंत्री के गांव में चपरासी के हवाले प्राथमिक शिक्षा चल रही तो सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला के गांव बढ़ईखेड़ा के नौनिहाल भी प्रतिनियुक्ति अर्थात डेपुटेशन वाले मास्टर साहब से ही संस्कारों के प्रथम सोपान पार करने को विवश हैं।
अगर यकीन न हो तो हम आपको जमीनी हकीकत के लिए गांव बढ़ईखेड़ा लिये चलते हैं।
सुबह के करीब 11 बजे हैं। यहां के प्राथमिक स्कूल में पांचवीं कक्षा के बच्चे-राजेश, मोनू, मुकेश, सोनी, देवेश 5 मजदूर किसी काम को तीन दिन में कर लेते हैं तो दो मजदूर उसी काम को कितने दिन में कर लेंगे, इस उधेड़बुन में जुटा है। पहली कक्षा के बच्चे दो दूनी चार का पहाड़ा जोर-जोर से पढ़ रहे हैं। बेशक, उनकी आवाज नीति-निर्माताओं तक नहीं पहुंच पा रही हो मगर ये बच्चे शायद यही कह रहे-हे सरकार, कम से कम एक दूनी दो अर्थात एक स्कूल पर दो गुरुजी तो दे दो? 
प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर रहे इन बच्चों को डेपुटेशन पर पढ़ा रहे जूनियर बेसिक टीचर पूरनचंद बीच-बीच में टोकते हैं। कहते हैं-पढ़ाई जारी रखो। चंद्रकलां प्राइमरी स्कूल से आए पूरन भी अधूरी व्यवस्था से खुश नहीं हैं, लेकिन संभवत: सरकारी सेवा की वजह से खामोश रहना ही बेहतर समझते हैं। सो, बोलें भी तो क्या? कारण कि 30-35 बच्चों में से 13 तो अब अनुपस्थित ही रहने लगे हैं। वे कहीं और शिक्षा पा रहे हैं। वहां जहां गुरुजी उपलब्ध हैं। 
ऐसा भी नहीं है कि एकल शिक्षक के कारण केवल बच्चे ही स्कूल से गैरहाजिर हो रहे हैं। हैरत की बात तो यह कि तबादला नीति में उलझी शिक्षा की वजह से करीब 400 स्कूल इसलिए बंद हो गए क्योंकि वहां या तो बच्चे नहीं थे या फिर शिक्षक नदारद। बहरहाल, यहां कई सवाल एक साथ उठते हैं जो संवेदनाशून्य सरकार से सीधे तौर पर जुड़ जाते हैं।
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साभारजागरण समाचार 
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