पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की कमेटी की रिपोर्ट में पेज नंबर 251 पर रोहतक के आठ न्यायाधीशों के बयान हैं। ये सभी न्यायाधीश, जिला जज अश्वनी मेहता के नेतृत्व में पांच मार्च को केनाल रेस्ट हाउस में पहुंचे। यहां पर सभी न्यायाधीशों ने अपना बयान दिया और कहा कि रोहतक में 18 फरवरी से 22 फरवरी तक प्रशासन नाम का
कोई व्यक्ति नहीं था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उपद्रवी लोगों की संपत्ति को जला रहे थे। लोगों को मार रहे थे। अफसर मांद में छिपे हुए बैठे थे। यहां तक की जजों ने अपने परिवारों के लिए सुरक्षा मांगी, लेकिन जजों को भी सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई। एक न्यायाधीश के बच्चे एक पार्क में फंस गए, उन्हें निकालने तक के लिए फोर्स तक नहीं भेजी गई। जजों के बयान में कहा गया है कि ऐसा मंजर था कि जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। डीआइजी व डीसी पर खड़े किए सवाल 417 पन्नों की प्रकाश सिंह की रिपोर्ट में न्यायाधीशों के बयानों में कहा गया है कि हिंसा के समय डीआइजी सौरभ सिंह के हाथ में पुलिस की कमान थी। 20 और 21 फरवरी को डीआइजी सौरभ सिंह खुद गायब थे। सभी न्यायाधीशों ने मांग की है कि डीआइजी सौरभ सिंह की 20 और 21 फरवरी दो दिनों की मोबाइल की कॉल डिटेल निकलवाई जाए। उनकी सीडीआर रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए। ताकि जनता को पता चल सके कि वह हिंसा के दौरान कहां पर छिपे हुए थे। इस दौरान सभी अफसरों ने अपने मोबाइल फोन भी बंद कर लिए थे।
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साभार: जागरण समाचार
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