Wednesday, June 8, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: समय आ गया है कि बच्चों की कहानियां बदल दी जाएँ

एन रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
पत्नी से तकरार के बाद सीतारामन ने नाश्ते में बनी इडली खाने से इंकार कर दिया। पत्नी भी बिना खाए उठ गई। 12 साल की बच्ची ने तनाव के बीच शांति से नाश्ता पूरा किया और स्कूल के लिए निकली। पिता के साथ घर के पास स्कूल बस स्टॉप पर उसने देखा कि एक छोटी बेघर लड़की, जो उससे आधी ही उम्र की होगी, अपने
दादाजी से खाने के लिए कुछ मांग रही थी। दादाजी ने उसके सिर को थामा और सीने से लगाकर सहलाते हुए कहा, 'नहीं है बेटा, थोड़ा पानी पी लो, शायद पेट भर जाए, थोड़ी देर में कोशिश करता हूं कि तेरे खाने के लिए कुछ मिलता है कि नहीं।' यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। भूखी और नन्ही बच्ची दादाजी की सलाह पर आंसू पी गई और उसने टूटी हुई प्लास्टिक की बॉटल से पानी पी लिया। उसका सिर अभी भी दादाजी की गोदी में था और कुछ ही देर में वह सो गई। दादाजी दुखी मन से कुछ देर तक मासूम बच्चे का भोला चेहरा देखते रहे। 
फिर दादाजी गुजरने वालों से खाने के लिए कुछ मांगने लगे। किसी ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया और बस गुजर गई। लड़की भारी दिल से स्कूल पहुंची और वहां उसने यह कहानी अपनी टीचर को सुनाई। उसकी टीचर ने बच्ची की कहानी क्लास में सुनाई और साथ ही बच्चों को बताया कि दुनियाभर में किस तरह भारी मात्रा में भोजन बर्बाद हो रहा है। हर साल औद्योगिक देशों में लोग 220-230 टन भोजन बर्बाद कर देते हैं, जो कुछ अफ्रीकी देशों के पूरे फूड प्रोडक्शन के बराबर है। हर साल जितना भोजन बर्बाद किया जा रहा है, वो दुनिया में सालाना होने वाली अनाज की उपज के आधे के बराबर होता है। दुबई जैसे अमीर शहर 1000 टन भोजन हर रोज बर्बाद करते हैं। इसे आसानी से समझाने के लिए टीचर बच्चों को बताती है कि हर बार जब आप एक सेब बिना खाए छोड़ देते हैं, तो यह 4.5 बाल्टी पानी बर्बाद करने के बराबर होता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। फिर उन्होंने बच्चों से कहा कि कल्पना करो कि अनाज का हर दाना, फल, सब्जियां, अन्य प्रोडक्ट और यहां तक कि इडली, जो बच्ची के पिता ने छोड़ दी थी, की उपज में कितनी ज्यादा मात्रा में पानी, जमीन, मिट्‌टी के संसाधन लग जाते हैं। भोजन की बर्बादी के रूप में दुनिया के सामने सबसे बड़ी समस्या है और यह सब हो रहा है लापरवाही के कारण। यह कहते हुए उन्होंने अपनी बात समाप्त की। बच्चों के सामने यह स्पष्ट हो गया कि भोजन बर्बाद करना अपराध से कम नहीं है। 
अगले दिन वही दृश्य घर में फिर दोहराया गया, लेकिन आज बेटी ने झगड़ रहे माता-पिता को सबक सिखाने का फैसला कर लिया था। उसने माता-पिता का छोड़ा हुआ भोजन एक अखबार में लपेट लिया और पिता के साथ स्कूल जाते हुए रास्ते में यह भोजन उस बूढे आदमी और लड़की को दे दिया। पिता को एहसास हुआ कि भोजन बर्बाद करते समय वे कितने संवेदनहीन हो गए थे, जबकि उनके आसपास ही कई लोग भूखे रह जाते हैं। उन्होंने अपनी बेटी के सामने शपथ ली कि वे भोजन बर्बाद नहीं करेंगे और ज्यादा भोजन होने की स्थिति में जरूरतमंद को दे देंगे। उस दिन के बाद से मां थोड़ा ज्यादा नाश्ता बनाने लगी और बेटी उसे साथ ले जाती और बूढ़े और उस बच्ची को दे देती। इस कहानी का कुछ अंश एक नाटक का हिस्सा है, जो के. अरुण के निर्देशन में कोयम्बटूर के पार्क ग्राउंड में इंटरनेशनल हंगर डे पर 28 मई को मंचित किया गया। अरुण इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं। फूड बैंक कोयम्बटूर हर साल इस तरह के आयोजन करता है। जब नाटक समाप्त हुआ तो तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी और बच्चों पर इसका गहरा असर हुआ। युवा निर्देशक अरुण इन दिनों कई आधुनिक फीचर फिल्म के आइडिया पर काम कर रहे हैं और स्क्रीप्ट तैयार कर रहे हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उनकी कोशिश है कि नई पीढ़ी की सोच बदले और वे सही हैं। इससे नई पीढ़ी संवेदनशील भी बनती है और उनमें दूसरों की दुख-तकलीफ समझने की क्षमता पैदा होती है। 
फंडा यह है कि बच्चों को सुलाने के लिए सुनाई जाने वाली कहानियां बदलनी चाहिए। नई कहानियां बनाई जाएं, सुनाई जाएं और खोजी जाएं ताकि हमारे बच्चे आज की दुनिया की नई जिम्मेदारियां लेने के लिए तैयार हो सकें। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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