प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन को स्नातक स्तर के विद्यार्थियों को पढ़ाया जाएगा। उच्च शिक्षा निदेशालय चंडीगढ़ ने सभी विश्वविद्यालयों को प्रत्येक सेमेस्टर में अनिवार्य विषय के रूप में शामिल करने के लिए निर्देशित किया है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय ने कमेटी गठित कर
पर्यावरण विषय के लिए सिलेबस तैयार कर लिया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। खास बात यह है कि एमडीयू की ओर से तैयार सिलेबस में सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के प्रमुख घटकों को एक पेपर के रूप में शामिल किया है। विश्वविद्यालयों के इस फैसले के बाद पर्यावरण विषय की लगभग डेढ़ दशक की लड़ाई अपने लक्ष्य तक पहुंची है। प्रदेश में ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2003 से लेकर अब तक पर्यावरण विषय अपने वजूद के लिए लड़ाई लड़ रहा था। सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2003 में इसको स्नातक स्तर पर अनिवार्य विषय बनाने के आदेश दिए थे। जिसके बाद से इसे पढ़ाया तो जा रहा था, लेकिन तीनों वर्षों में मात्र एक सेमेस्टर में एक पेपर ही लिया जाता था। किसी भी विश्वविद्यालय या फिर कॉलेज ने पर्यावरण के शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की। अन्य विषयों के शिक्षकों को ही एक कक्षा दी जाती थी। इस मामले में पत्र क्रमांक 18-168-2016 के तहत उच्च शिक्षा निदेशालय ने सभी विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया कि इसको अनिवार्य विषय बनाया जाए।
दशक की लड़ाई के बाद पर्यावरण विषय बना अनिवार्य: कमेटी बना कुवि और एमडीयू ने किया लागू1कुवि और एमडीयू रोहतक ने मीटिंग कर पर्यावरण विषय को लागू करने का फैसला किया है। दोनों की बनाई कमेटियों की ओर से तीनों वर्षों में हर सेमेस्टर में अनिवार्य विषय के रूप में शामिल करने का निर्णय लिया है। इसके लिए सिलेबस तैयार कर लिया गया है। प्रदेश सरकार से पर्यावरण विषय के शिक्षकों के पद सर्जित करने की मांग की है।
एमडीयू ने पेपर संख्या सात में किया स्वच्छ भारत मिशन को शामिल: एमडीयू की ओर से बनाए गए सिलेबस में पेपर संख्या सात में सोलिड एंड लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट, सेनिटेशन और हाइजिनिक व डिजास्टर को शामिल किया है। भारत सरकार की ओर से जारी स्वच्छ भारत मिशन के यही प्रमुख घटक हैं। जिन पर सरकार जोर दे रही है। कुवि के डीन ऑफ अकेडमिक अफेयर प्रो. अनिल वोहरा ने बताया कि उच्च शिक्षा निदेशालय और यूजीसी की ओर से आए निर्देशों के आधार पर निर्णय लिया है। अगर प्रदेश सरकार शिक्षकों की नियुक्ति की इजाजत देता है तो इसी वर्ष से यह लागू हो सकता है।
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साभार: जागरण समाचार
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