हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा की जांच करने वाले पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की रिपोर्ट का अब अधिकारियों में कोई खौफ नहीं रह गया है। कमेटी की 415 पेज की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद राज्य सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों ने जिस तरह से इस पर सवाल खड़े किए, उसके मद्देनजर सरकार दागी
अफसरों पर अब न तो कार्रवाई करने का साहस कर पा रही है और न ही अधिकारी इस रिपोर्ट को गंभीरता से ले रहे हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। प्रकाश सिंह ने अपनी रिपोर्ट में 90 पुलिस, प्रशासनिक व फायर अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए थे। पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी इस रिपोर्ट से बुरी तरह डरे हुए थे। सरकार भी इस रिपोर्ट पर कार्रवाई करने का डर दिखाकर बार-बार अधिकारियों को अपने ढंग से चलाने का संकेत दे रही थी। मगर रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद राज्य सरकार के मंत्रियों ने जब इस पर उंगली उठाई तो अधिकारियों का खौफ भी गायब हो गया। कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने झज्जर की डीसी अनीता यादव को गलत फंसाने पर आक्षेप खड़ा किया तो स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने प्रकाश सिंह की रिपोर्ट को गीता या रामायण नहीं होने की बात कहकर यह गुंजाइश छोड़ दी कि इस रिपोर्ट में जो भी कुछ लिखा है, वह सौ फीसदी सत्य नहीं हो सकता। विज ने स्पष्ट संकेत दे दिया था कि सरकार रिपोर्ट के हिसाब से कार्रवाई नहीं करेगी। धनखड़ और विज के प्रकाश कमेटी पर उठाए गए सवालों ने खौफजदा अधिकारियों के लिए आक्सीजन का काम किया है। वहीं राज्य सरकार को भी यह आभास हो गया था कि यदि एक साथ 90 अधिकारियों पर कार्रवाई कर दी गई तो प्रदेश की प्रशासनिक मशीनरी को लकवा मार सकता है। लिहाजा कार्रवाई करने की औपचारिकता भर पूरी की गई। अभी तक किसी आइएएस और आइपीएस अधिकारी के विरुद्ध सरकार ने तबादले से अधिक कोई कार्रवाई नहीं की है। कुछ अधिकारियों से स्पष्टीकरण जरूर मांगा गया है।
तीन में से दो सदस्यों के रिपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं: प्रकाश सिंह कमेटी की रिपोर्ट के विरुद्ध कई अधिकारी कानूनी कार्रवाई करने की तैयारी में थे। राज्य सरकार ने जब यह कमेटी बनाई थी, तब इसमें प्रकाश सिंह के अलावा डा. केपी सिंह और विजयवर्धन समेत तीन अधिकारी शामिल किए गए, लेकिन रिपोर्ट पर हस्ताक्षर सिर्फ प्रकाश सिंह के हैं। तकनीकी और कानूनी तौर पर अगर देखें तो तीन में से दो अधिकारियों ने खुद को इस रिपोर्ट से अलग कर लिया। इसका मतलब यह हुआ कि केपी सिंह और विजयवर्धन रिपोर्ट में दिए गए तथ्यों से सहमत नहीं हैं। दंगों में दागी बताए जा रहे अधिकारियों के पास अपने बचाव में यह सबसे बड़ा आधार बन सकता है। कार्रवाई होने की स्थिति में रिपोर्ट पर तीन में से दो सदस्यों के हस्ताक्षर नहीं होने को आधार बनाकर अधिकारी अदालत में चुनौती देने की तैयारी में हैं।
इसलिए भी गायब हुआ खौफ: प्रकाश सिंह की रिपोर्ट सार्वजनिक होने से पहले जाट आरक्षण आंदोलन में सरकार की भूमिका पर भी लगातार सवाल उठाए जा रहे थे। विपक्ष की ओर से गृह मंत्रलय, सीआइडी व विजिलेंस सभी विभाग मुख्यमंत्री के पास होने की बात कहते हुए सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए। मगर प्रकाश सिंह ने रिपोर्ट में जिस तरह से एक पेज नंबर 415 जोड़कर सीएमओ को क्लीन चिट दी, उससे भी अधिकारियों का हौसला बढ़ गया। उन्हें यह कहने का मौका मिल गया कि यदि सीएमओ की भूमिका इस पूरे मामले में सही थी तो फिर अधिकारियों की खराब कैसे रह सकती है, क्योंकि अधिकारी वही कर रहे थे, जो सीएमओ कह रहा था।
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साभार: जागरण समाचार
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