Friday, June 10, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: मदद समय पर की जाए तभी सार्थक

स्टोरी 1: 34 साल के मोहनीश यादव, अपने छोटे भाई प्रताप, मां तिलोत्तमा और छह साल की बेटी वैशाली के साथ महाराष्ट्र के पुणे के हडपसर में एक कमरे के घर में रहते हैं। कुछ वर्षों पहले तक यह एक सुखी किसान परिवार था, जो मोहनीश और प्रताप के दिवंगत पिता के इलाज के लिए अपनी कृषि भूमि बेचकर पुणे गया था।
इसके बाद उनका जीवन पूरी तरह उलट-पलट हो गया। वैशाली के जन्म के छह महीने बाद मोहनीश की पत्नी उन्हें छोड़कर चली गईं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दोनों भाई मिलकर दीवारों पर पेंटिंग के काम से नौ से दस हजार रुपए महीना कमा लेते हैं। पिछली दीवाली पर परिवार को विधि के विधान का एक और झटका लगा, जब पता चला कि बच्ची को जन्म से ही दिल से संबंधित बीमारी एट्रियल सेप्टल डिसीज (एएसडी) है। दिल के अपर चैम्बर्स के बीच 33 मिलीमीटर का छेद था। वे कई महीनों तक एक स्थान से दूसरे स्थान पर बच्ची के इलाज के लिए भागते रहे। जो कुछ बेच सकते थे, बेच दिया। जिस दिन बच्ची की साइकिल 90 रुपए में बेची, बच्ची ने विरोध नहीं किया, लेकिन उसकी नम आंखें देखकर घर में सभी को आंसू गए। किंतु बच्ची की जिंदगी साइकिल से ज्यादा महत्वपूर्ण थी। वे काफी दुखी थे कि किसी भी चैरिटबल हॉस्पिटल ने मदद नहीं की। इसमें बेंगलुरू के कुछ अस्पताल भी शामिल थे। परिवार हताश हो गया था और आगे क्या किया जाए इस पर विचार कर रहा था। 
13 मई को उस बच्ची के दिमाग में एक विचार आया। उसने टीवी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देखा था। उसने कहा कि वह प्रधानमंत्री को मदद के लिए पत्र लिखेगी। उसने अपनी नोटबुक से एक पन्ना फाड़ा और स्थिति स्पष्ट की। पत्र इस पंचलाइन से शुरू हुआ, 'मोदी सरकार माला मदद पाहिजे'। परिवार का कोई प्रॉपर पोस्टल एड्रेस नहीं था, इसलिए उसने स्कूल के टीचर की मदद से स्कूल के आईडी की फोटोकॉपी कराई और पत्र के साथ लगाकर भेज दी। ठीक पांच दिन बाद कलेक्टर और जिला स्वास्थ्य अधिकारी वैशाली को खोजते हुए आए। उन्हें पीएमओ से पत्र मिला था, जिसमें लिखा था, 'आवश्यकता अनुसार लड़की की मदद की जाए'। कई अस्पतालों के प्रतिनिधियों के साथ एक मीटिंग तुरंत बुलाई गई और फिर स्थानीय रूबी हॉल क्लीनिक को मदद के लिए चुना गया और तुरंत सर्जरी कर दी गई। मंगलवार को उसे अस्पताल से छुट्‌टी मिल गई और इसकी रिपोर्ट भी पीएमओ को भेज दी गई। वैशाली को पूरी तरह ठीक होने तक आराम की सलाह दी गई है। 
स्टोरी 2: जया एन्थोनी की हाल ही में शादी हुई हैं। वे अपने स्वास्थ्य के प्रति बहुत सजग रहती हैं, इसलिए नहीं कि स्वास्थ्य के लिए जोखिम को उन्होंनें हौवा बना रखा है, बल्कि उन्हें इंजेक्शन की सुई से बहुत ज्यादा डर लगता है। किंतु जब पता चला कि दस साल की लिफ्जा परवीन रेअर एनिमया से पीड़ित है और उसे जीवित रहने के लिए बी निगेटिव प्लेटलेट्स की सख्त जरूरत है तो वे खुद को रोक नहीं सकीं। सीधे अस्पताल जा पहुंची। लिफ्जा को खतरनाक एप्लास्टिक एनिमिआ है। इस बीमारी में बोन मेरो में स्टेम सेल्स परिपक्व ब्लड सेल्स नहीं बना पाते। इससे बहुत ज्यादा थकान हो जाती है और दिल की धड़कन अनियमित रहती है। मीडिया में खबर आने के बाद लोगों में उसके प्रति दया उपजी और जया, सिमडेगा जिले के तीन पुलिस जवान और कुछ अन्य लोग इस छोटी बच्ची को प्लेटलेट डोनेट करने अस्पताल पहुंचे। वो डोरंडा के बंगला स्कूल में कक्षा चार की छात्रा है। इससे लिफ्जा और उनके परिवार को एक नई उम्मीद बंध गई। लिफ्जा के पिता अनिस खान मंगलवार को अपनी बेचैनी छुपाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन बुधवार को आंसू रोक नहीं सके, क्योंकि जरूरत के समय मदद मिल गई थी। 
फंडा यह है कि अगर आप मदद करना चाहते हैं तो तुरंत कीजिए, अन्यथा मदद का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा और कभी-कभी तो इसमें बहुत ज्यादा देर भी हो जाती है।

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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