एन रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
वे मेरे हीरो थे और अंग्रेजी भाषा पर मेरी पकड़ में उनका बड़ा योगदान रहा। चार दशकों तक वे मेरे लिए इंग्लिश टीचर बने रहे। पहले तो उन्होंने मेरी मदद रेडियो पर क्रिकेट मैच देखने में की! हां, आपने बिल्कुल सहीं पढ़ा है। उन्होंने रेडियो पर मैच देखने में मेरी मदद की। उनकी आवाज, अंग्रेजी भाषा पर पकड़, विविध रंगी विवरण, खेल और उस शहर के बारे में जानकारी जहां मैच खेला जा रहा होता, इतना गहरा होता था कि मेरी तरह हर किसी को उस शहर की यात्रा पर ले जाता। 1970 में लोग ट्रांजिस्टर से चिपके रहते। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। बॉल और ओवर के बीच के समय में वे कैरेबिया के आकर्षणों के बारे में बताते और संभावित विजिटर्स का ध्यान खींचते। करंट अफेयर्स की उन्हें हमेशा पूरी जानकारी होती। मेरे पिता ने 70 के दशक के शुरू में मुझे उनकी कमेंटरी से परिचित कराया था। उनकी सलाह थी, 'अगर खेलों में रुचि है, खासकर क्रिकेट में तो उन्हें सुनो, कम से कम तुम अंग्रेजी के कुछ अच्छे शब्द ही सीख जाओगे'। वो उन्हें सुरेश सरैया, अनंत सितलवाड़, लाला अमरनाथ और विजय मर्चेंट के दर्जे का कमेंटेटर मानते थे। मुझ पर उनकी भाषा और लहजे का ऐसा नशा हो गया था कि मैं घर पर उनकी टोन में बात करता। फिर मेरे पिता मुझे नियंत्रित करते। कहते, 'यह घर है, क्रिकेट का मैदान नहीं'। दिमाग पर उनका धीरे-धीरे, लेकिन स्थायी असर होता जा रहा था और यह इस कदर बढ़ा कि मेरी क्लास के करीब 10-12 बच्चों ने मिलकर एक पैरट ग्रीन रंग का 2 X 2 का ट्रांजिस्टर एक्सपो-70 खरीद लिया। इसके लिए सभी ने पांच-पांच रुपए इकट्ठा किए थे और यह 60 रुपए में आया था। इसका एक ही नियम था कि जो भी इसे घर ले जाएगा वो एक जोड़ी नए पेंसिल सेल वापसी में साथ लाएगा।
एक बार मैं आखिरी बैंच पर बैठा था। मैंने कान हथेलियों से ढंक रखे थे, ताकि इंग्लिश की टीचर को लगे कि मैं उन्हें मगन होकर बहुत ध्यान से सुन रहा हूं। लेकिन अचानक ट्रांजिस्टर की आवाज जाने कैसे बढ़ गई और मैं पकड़ा गया। टीचर पर मेरी इस ईमानदार स्वीकारोक्ति का कोई असर नहीं हुआ कि मैं अपनी अंग्रेजी सुधारने के लिए कॉमेंट्री सुन रहा था। वो अगले दो साल तक पढ़ाई में अच्छा नहीं कर रहे छात्रों को मेरा नाम लेकर ताना देती कि रघु ने मुझसे बेहतर अंग्रेजी का टीचर तलाश लिया है। तुम लोग भी उसके साथ क्यों नहीं पढ़ते। लेकिन दिल से वह मानती थीं कि उनकी कॉमेंट्री सुनकर मैं कोई बहुत बड़ी गलती नहीं कर रहा था, लेकिन उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगी थी कि मैं क्लास में गुप्त रूप से ट्रांजिस्टर सुनता था। इस रूप में मेरे हीरो ईर्ष्या का कारण बने।
मेरे ये हीरो थे टोनी कोजियर। वेस्ट इंडीज के प्रसिद्ध कमेंटेटर, जिनका इस बुधवार को 75 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने मेरी पीढ़ी के लोगों को 54 साल तक अंग्रेजी सिखाई और यह उल्लेखनीय लंबा कॅरिअर रहा। जब मैं एक राष्ट्रीय दैनिक का संपादक बना तो अपनी अंग्रेजी की टीचर के पास सम्मान प्रकट करने पहुंचा। तब उन्होंने मुझसे एक बात कही थी, जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता, 'जाओ और टोनी को धन्यवाद कहो, क्योंकि तुमने मुझसे ज्यादा उन्हें सुना है और उन्होंने ही तुम्हारे अंग्रेजी के प्यार को बढ़ावा दिया'। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।
50 साल से ज्यादा समय तक टोनी की आवाज रेडियो और फिर टीवी के माध्यम से गूंजती रही। उन्हें अपने पैशन, अंतरदृष्टि और उत्साह के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। निर्विवाद रूप से वे अपनी सुखदायक आवाज, कटु टिप्पणियों और विचारों से एक पूरा दृश्य खड़ा कर देते थे। मैदान में घटनाक्रम से ज्यादा तेजी से उसकी कहानी बयां करने की क्षमता उनकी खासियत थी और मैं और मेरे पिता साथ बैठकर उनकी कॉमेंट्री सुनते थे। कौन जानता है कितने ही पिता-पुत्र के लिए वे आपसी जुड़ाव का एक कारण भी रहे होंगे।
फंडायह है कि कोईभी आपका हीरो बन सकता है, बशर्ते आपका कॅरिअर बनाने में उसे आपकी मदद करना चाहिए।
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साभार: भास्कर समाचार
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