बैंकों में इन दिनों बैंकिंग की बजाय म्यूचुअल फंड और इंश्योरेंस के अन्य प्रोडक्ट बेचने पर ज्यादा जोर दिया जाता है। अधिकांशत: बैंकों के नियमित कस्टमर ही इसकी चपेट में आते हैं। बैंकरों के खिलाफ इसकी शिकायत के बाद रिजर्व बैंक ने इसके नियम जारी किए हैं। जानिए वस्तुस्थिति-
हम अपने बैंक पर पूरा भरोसा करते हैं। यह जाहिर-सी बात है कि बैंकों को अपने कस्टमर के बैलेंस, फिक्स्ड
डिपॉजिट आदि सभी कीजानकारी रहती है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। कई बार बैंक ही अपने बड़े कस्टमर को ऐसे गलत फाइनेंशियल प्रोडक्ट दे देते हंै कि वे परेशान होते हैं। खासतौर पर वरिष्ठ नागरिक यह पूछते रहते हैं कि मैं कहां पैसा लगाऊं। कौन-से प्रोडक्ट सुरक्षित हैं? बैंक इस तरह के कस्टमर को निशाना बनाती है, जो बेपरवाह होते हैं। बैंकों के अधिकारियों पर ऊपर बैठे अधिकारियों का खासा दबाव रहता है। वे किसी भी हालत में अपने प्रोडक्ट लोगों को बेचना चाहते हैं। इसमें वे किसी को नहीं छोड़ते, चाहे वह गोल्ड लोन लेने वाला हो या फिर पर्सनल लोन लेने वाला या कोई रिटायर्ड व्यक्ति। एक बार प्रोडक्ट बेचने के बाद वे इस बात की चिंता नहीं करते हैं कि कस्टमर का क्या होगा। ही वे कस्टमर को कोई सलाह देते हैं। दरअसल बैंक थर्ड पार्टी प्रोडक्ट के कारण मूल बैंकिंग गतिविधियां भूल चुके हैं। यह बैंकों में एनपीए अधिक होने का बहुत बड़ा कारण है।
फाइनेंशियल एडवाइजर के बतौर बैंकों में कुछ कर्मचारी रहते हैं। उनको वेतन बैंक से मिलता है। वे हमेशा बैंक के पक्ष में ही काम करते हैं, ताकि ज्यादा कमीशन पा सके। यदि यह जानना है कि आपके बैंक का रिलेशनशिप मैनेजर ठीक सलाह दे रहा है या नहीं तो उससे कुछ सवाल पूछने चाहिए।
निवेशक की जरूरत और उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक अच्छा फाइनेंशियल सलाहकार निवेशक के उद्देश्यों का आकलन करता है। कहां उसे जोखिम हो सकता है, उसे देखता है। यदि वह यह सब नहीं बता रहा है तो फिर उसकी सलाह पर निवेशकों को विश्वास नहीं करना चाहिए।
आमतौर पर लोग यह मानते हैं कि बैंकों में फाइनेंशियल एडवाइजर अधिक विश्वसनीय होते हैं या फिर एक ही स्थान पर सब सुविधा मिलने के कारण इन प्रोडक्ट को लेना आसान होता है। निवेशक को देखना यह चाहिए कि क्या वह प्रोडक्ट उसकी जरूरतों को पूरा कर पा रहा है या नहीं। यदि आप फाइनेंशियल एडवाइजर से संपर्क करते हैं तो आप सभी विकल्प पर चिंतन करेंगे कि एक ही प्रोडक्ट देखेंगे। जरूरी है कि निवेशक प्रोडक्ट और उसके मुनाफे के बारे में सीधे-सीधे समझें।
इस बात को दिमाग से निकाल देना चाहिए कि यह आपका बैंक है तो आपका हितैषी होगा। इस मामले में व्यवहारिक दृष्टिकोण बेहतर है कि आपके पैसे का आपको कितना रिटर्न मिल पा रहा है। भले ही जहां आपका खाता है, वहां के कर्मचारी आपकी सहायता करते हो, लेकिन फिर भी सजगता रखनी चाहिए।
हाल ही में एक सर्वे में पता चला है कि 76.3 फीसदी बैंकर यह मानते हैं कि उन पर प्रोडक्ट बेचकर लक्ष्य पूरा करने का दबाव रहता है। इसके अलावा 67 फीसदी कंज्यूमर ऐसे हैं जो यह महसूस करते हैं कि बैंक के स्टाफ ने इंसेंटिव्स के चक्कर में उन्हें प्रोडक्ट के बारे में गलत जानकारी दी।
रिजर्व बैंक ने हाल ही में बैंकों द्वारा थर्ड पार्टी प्रोडक्ट बेचने पर लगाम लगाई है। जिस तरह से बैंक म्यूचुअल फंड्स और इंश्योरेंस स्कीमें बेचते हैं, उसमें रिजर्व बैंक ने खासे बदलाव किए हैं। बैंक इंवेस्टमेंट एडवाइजरी सेवा अपनी शाखा में नहीं दे सकते। इसके लिए उन्हें अलग से कार्यालय खोलने होंगे। गलत तरह से प्रोडक्ट बेचने के कई मामलों की शिकायत की गई है। इसमें बैंक कर्मचारियों को भारी इंसेंटिव्स मिले जो इंश्योरेंस, म्यूचुअल फंड आदि प्रोडक्ट पर थे। रिजर्व बैंक ने अब यह अनिवार्य कर दिया है कि बैंकों को सेबी में रजिस्टर्ड इंवेस्टमेंट एडवाइजर (आरआईए) मानकों में पंजीकृत होना पड़ेगा। रिजर्व बैंक ने यह अच्छा कदम लिया है, लेकिन इस पर अमल कितना हो सकेगा, इसे लेकर संदेह है। रिजर्व बैंक ने बैंकों से कहा है कि वे तीन साल में इन मानकों का पालन करें। देखना होगा कि इतनी लंबी अवधि में क्या होता है।
सुरेश नरूला
सदस्य,फाइनेंशियल प्लानर्स गिल्ड ऑफ इंडिया
बेल्जियम की केबीसी असेट मैनेजमेंट पिछले वर्ष म्यूचुअल फंड कारोबार यूनियन बैंक को इसलिए बेच गई, क्योंकि उसे संभावना नहीं लगी।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार
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