एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
वह किसी मेट्रो शहर में नहीं रहती है, लेकिन मध्यमग्राम के सेंट जूड जैसे एक अच्छे स्कूल में पढ़ती है। यह जगह कोलकाता से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। उसके पिता साधारण प्रायमरी स्कूल के टीचर हैं और उसकी पूरी उम्मीदें सिर्फ अच्छी पढ़ाई पर ही टिकी हुई है। और वह भी खुद पढ़ाई करने के बल पर, क्योंकि परिवार के पास इतना पैसा नहीं है कि कंप्यूटर खरीद सके और कोई ट्यूटर रख सके, जिससे वह विज्ञान और गणित जैसे विषयों को बेहतर तरीके से समझ सके। अंग्रेजी घर में बोलचाल की भाषा नहीं है, इसलिए यह भाषा उसके लिए मुश्किल है। हालांकि, यह बात वह अच्छी तरह जानती है कि शिक्षा ही एकमात्र उम्मीद है, जिसके जरिये वह जीवन की उथलपुथलि भरी नदी पार कर सकती है। खासकर उसके जैसे परिवार के लिए जहां पैसों की कमी स्थायी समस्या है, लेकिन वह हमेशा स्पष्ट विचारों वाली रही है। बहुत से पैसों वाली अच्छी नौकरी पाना कभी उसके एजेंडे में शामिल नहीं था, जिसके जरिये वह अपने परिवार को गरीबी से बाहर निकाल सके। वह खुद को चूहा दौड़ में शामिल करने के लिए पढ़ाई नहीं करना चाहती थी, बल्कि उनके दिमाग में लक्ष्य एकदम साफ थे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। अंदर से वह जानती थी कि उसकी आगे की पढ़ाई अंग्रेजी और विज्ञान पर ही निर्भर करेगी, इसलिए उसने इन विषयों पर अधिक ध्यान दिया और 'बारंग' नाम के एक संगठन के संपर्क में आई, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के स्कूली बच्चों को मुफ्त ट्यूशन की सुविधा देता है। उसके दिमाग में यह बात साफ थी और पक्का भरोसा भी था कि यही दो विषय उसका भविष्य होंगे। एक उन्हें अपने आसपास हो रही हर घटना को वैज्ञानिक तरीके से समझने और आंकने का मौका देगा, जबकि दूसरा अपनी उस समझ को व्यक्त करने का और 18 साल की सतपर्णा मुखर्जी अपनी शिक्षा से यही चाहती थी। उसका लक्ष्य था लोगों और समाज में वैज्ञानिक सोच तथा तर्क को बढ़ावा मिले, कि किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी या सरकारी संगठन की नौकरी पाना। उसका ध्यान तब भी नहीं भटका जब उसके पिता प्रदीप मुखर्जी स्थानीय राजनीतिक पार्टी कमदुनी प्रतिबादी मंच में शामिल हो गए। यह पार्टी बारासात डेरोजिओ कॉलेज की छात्रा के साथ सामूहिक दुराचार और हत्या के विरोध में बनाई गई थी। वह प्रदीप की भी छात्रा थी।
जब इस मंच को शासक दल की ओर से धमकियां मिलने लगीं तो कई लोगों ने प्रदीप को सलाह दी कि वह खुद को इस आंदोलन से अलग कर लें, लेकिन सतपर्णा बार-बार पिता को कहती रही कि उन्हें एक शिक्षक के रूप में विरोध से पीछे नहीं हटना चाहिए, क्योंकि पीड़ित सिर्फ उनकी छात्रा थी, बल्कि उनकी बेटी की तरह भी थी। इन सबके बीच सतपर्णा इस सोमवार को जब कक्षा 12वीं की बोर्ड की परीक्षा में शामिल हुई तो थोड़े तनाव में दिखी, लेकिन उसके तनाव का कारण परीक्षा नहीं था, बल्कि उसके तनाव का कारण नासा था। हां आपने यह सही पढ़ा है। यह है नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन, जिसे आमतौर पर नासा के नाम से जाना जाता है। वह नासा द्वारा प्रतिष्ठित गोडार्ड इंटर्नशिप प्रोग्राम के लिए चुने गए पांच लोगों में से एक थी और इसलिए वह थोड़े तनाव में थी। आईएससी परीक्षा के बाद वह इस अगस्त से ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जाएगी और ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और डॉक्टरल थीसिस नासा फेकल्टी के तौर पर पूरा करेगी। रहने और खाने सहित उसके सभी खर्च गोर्डाड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज (जीआईएसएस) उठाएगी। सतपर्णा के लिए यह बड़ा अवसर स्कूल के कंप्यूटर से नासा की वेबसाइट पर 'ब्लेक होल थ्योरी' पर अपनी राय जाहिर करने के बाद आया और वहां के वैज्ञानिकों ने इसे नोटिस किया। उसे पिछले साल अगस्त में स्कॉलरशिप का प्रस्ताव मिला था, लेकिन उसने इसे स्वीकार नहीं किया, क्योंकि उसका परिवार वहां रहने और खाने का खर्च वहन नहीं कर सकता था। बाद में नासा ने यह खर्च वहन करने का निर्णय लिया।
फंडायह है कि सिर्फशिक्षा पर फोकस कीजिए, जॉब देने वाले आपको तलाश लेंगे।
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साभार: अमर उजाला समाचार
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