सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें पहली जनवरी 2016 से राज्य में लागू होनी हैं, जिसका कर्मचारी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकार ने छठे वेतन आयोग की विसंगतियों को ही दूर नहीं किया है। जी माधवन की अध्यक्षता में गठित वेतन विसंगतियां आयोग कर्मचारियों की सुनवाई की प्रक्रिया तो चलाए हुए है
लेकिन इसकी गति काफी धीमी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। प्रदेश के कुल सरकारी कर्मचारियों के 50 प्रतिशत कर्मी विश्वविद्यालयों, बोर्डों, निगमों, नगर निगमों, परिषदों व नगर पालिकाओं में काम करते हैं, लेकिन आयोग के अधिकार क्षेत्र में इनमें कार्यरत कर्मचारियों की विसंगतियां सुनना शामिल नहीं है। वर्ष 2009 में हरियाणा सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों के वेतनमानों में विद्यमान विगंतियों के निपटान के बारे में एक कमेटी का गठन किया गया था। वह कमेटी भी उक्त संस्थानों में कार्यरत वेतनमानों में विद्यमान विसंगतियों को सुनने अथवा उनका प्रतिवेदन मांगने की दिशा में कोई काम नहीं कर रही है। सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा ने 25 नवंबर को करनाल में होने वाली राज्य स्तरीय चेतावनी रैली में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने का ऐलान किया है। संघ ने सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में कार्यरत कर्मचारियों की वेतन विसंगतियां न सुनने पर कड़ी नाराजगी प्रकट की है। संघ के महासचिव सुभाष लांबा ने बताया कि मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर शीघ्र इन कर्मचारियों की वेतन विसंगतियां सुनकर दूर करने का आग्रह किया गया है। अगर छठे वेतन आयोग की विसंगतियां दूर किए बिना सातवें वेतन आयोग की सिफरिशों को लागू किया गया तो कर्मचारियों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा, जिसका खमियाजा उन्हें रिटायरमेंट के बाद कम पेंशन के रूप में चुकाना पड़ेगा। लांबा के अनुसार संघ शीघ्र ही एक प्रतिवेदन सरकार को देकर सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें सभी सरकारी विभागों, बोर्ड तथा निगम, विश्वविद्यालयों, नगर निगमों और नगर परिषदों में प्रदेश की आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार एक जनवरी 2016 से लागू करना सुनिश्चित करने की मांग करेगा। सभी विभागों की छठे वेतन आयोग की विसंगतियां 30 नवंबर से पहले दूर करने का आग्रह किया जाएगा। इसके अलावा ठेका आधार पर लगे कर्मचारियों को पद का प्रारंभिक वेतनमान देने की मांग भी उठाएंगे।
लेकिन इसकी गति काफी धीमी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। प्रदेश के कुल सरकारी कर्मचारियों के 50 प्रतिशत कर्मी विश्वविद्यालयों, बोर्डों, निगमों, नगर निगमों, परिषदों व नगर पालिकाओं में काम करते हैं, लेकिन आयोग के अधिकार क्षेत्र में इनमें कार्यरत कर्मचारियों की विसंगतियां सुनना शामिल नहीं है। वर्ष 2009 में हरियाणा सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों के वेतनमानों में विद्यमान विगंतियों के निपटान के बारे में एक कमेटी का गठन किया गया था। वह कमेटी भी उक्त संस्थानों में कार्यरत वेतनमानों में विद्यमान विसंगतियों को सुनने अथवा उनका प्रतिवेदन मांगने की दिशा में कोई काम नहीं कर रही है। सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा ने 25 नवंबर को करनाल में होने वाली राज्य स्तरीय चेतावनी रैली में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने का ऐलान किया है। संघ ने सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में कार्यरत कर्मचारियों की वेतन विसंगतियां न सुनने पर कड़ी नाराजगी प्रकट की है। संघ के महासचिव सुभाष लांबा ने बताया कि मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर शीघ्र इन कर्मचारियों की वेतन विसंगतियां सुनकर दूर करने का आग्रह किया गया है। अगर छठे वेतन आयोग की विसंगतियां दूर किए बिना सातवें वेतन आयोग की सिफरिशों को लागू किया गया तो कर्मचारियों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा, जिसका खमियाजा उन्हें रिटायरमेंट के बाद कम पेंशन के रूप में चुकाना पड़ेगा। लांबा के अनुसार संघ शीघ्र ही एक प्रतिवेदन सरकार को देकर सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें सभी सरकारी विभागों, बोर्ड तथा निगम, विश्वविद्यालयों, नगर निगमों और नगर परिषदों में प्रदेश की आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार एक जनवरी 2016 से लागू करना सुनिश्चित करने की मांग करेगा। सभी विभागों की छठे वेतन आयोग की विसंगतियां 30 नवंबर से पहले दूर करने का आग्रह किया जाएगा। इसके अलावा ठेका आधार पर लगे कर्मचारियों को पद का प्रारंभिक वेतनमान देने की मांग भी उठाएंगे।
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साभार: जागरण समाचार
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