सुप्रीमकोर्ट ने मेडिकल और डेंटल के पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में प्रवेश
में ओबीसी आरक्षण का लाभ देने की जाट छात्रों की अपील खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई व न्यायमूर्ति आरएफ नारिमन की पीठ ने छात्रों की
याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में फैसला दिया जा चुका है और अब
जाट छात्रों का कोई निहित अधिकार नहीं रह गया है। कोर्ट ने कोई भी राहत
देने से
इन्कार करते हुए जाट मेडिकल छात्रों की याचिका खारिज कर दी। इससे
पहले छात्रों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण ने कहा कि इन छात्रों
ने ओबीसी श्रेणी के तहत पीजी कोर्स में प्रवेश के लिए आवेदन किया था। ऑल
इंडिया काउंसलिंग के समय इनका नाम ओबीसी श्रेणी में ही था लेकिन इन्होंने
दिल्ली के राज्य कोटे में बेहतर सीट पाने की उम्मीद में ऑल इंडिया
काउंसलिंग को छोड़ दिया था और राज्य काउंसलिंग का इंतजार कर रहे थे। लेकिन
इस बीच सुप्रीमकोर्ट का फैसला आ गया और अब इनका नाम सूची में सामान्य
श्रेणी के छात्रों में आ रहा है। उन्होंने इन छात्रों को ओबीसी आरक्षण का
लाभ देने का अनुरोध करते हुए कहा कि जिन लोगों ने ओबीसी श्रेणी के तहत
आवेदन किया था उन्हें उसका लाभ मिलना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो इन निदरेष
छात्रों का बड़ा नुकसान होगा जो कि दोनों जगह से बाहर हो गए हैं। उन्होंने
यह भी कहा कि कुछ छात्रों को इस श्रेणी में प्रवेश मिल चुका है। पीठ ने
कोई भी राहत देने से इन्कार करते हुए कहा कि फैसला आने के बाद उनका कोई
अधिकार नहीं रह जाता। अब उन्हें राहत नहीं दी जा सकती। मालूम हो कि
सुप्रीमकोर्ट ने गत 17 मार्च को सुनाए गए अपने फैसले में जाटों का आरक्षण
रद कर दिया था। कोर्ट ने दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित नौ राज्यों
के जाटों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने वाली 4 मार्च 2014 की
अधिसूचना रद कर दी थी। सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद इन राज्यों के जाटों
को केंद्रीय नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में किसी तरह का आरक्षण नहीं
मिलेगा।
साभार: जागरण समाचार