Monday, April 13, 2015

आईडिया: गर्भ में भी दी जा सकती है बच्चे को गणित विज्ञान और भाषा की ट्रेनिंग

कभी अर्जुन पुत्र अभिमन्यु ने गर्भ में चक्रव्यूह तोड़ने की कला सीखी थी, आज मां के पेट में ही बच्चों की कोचिंग शुरू हो गई है। वे गणित और विज्ञान सीख रहे हैं। गर्भवती महिलाओं के माध्यम से विशेषज्ञ गर्भस्थ शिशु को पढ़ा रहे हैं और अलग-अलग जानकारियां दे रहे हैं ताकि पैदा होते ही वह दूसरों से बेहतर हो। गर्भवती महिलाएं भी इसे लेकर उत्साहित हैं और सेंटर्स का सहारा ले रही हैं। 
यह होती है प्रक्रिया: पढ़ने के लिए दिमाग-आंख के बीच तालमेल की जरूरत होती है। दिमाग की कोशिकाएं और
आंखें गर्भ के तीसरे महीने तक विकसित हो चुकी होती हैं। यही कारण है कि गर्भकाल के तीसरे महीने से बच्चे के ‘Visual Eye Path Way’ को उत्प्रेरित किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के तहत मां पेट पर हाथ रखकर बच्चे को शब्द लिखे हुए फ्लैश कार्ड और अलग-अलग नंबरों के डॉट कार्ड दिखाते हुए जोर से बात करते हुए उस कार्ड के बारे में बताती है। वास्तविक रूप में इसके जरिये बच्चे को कुछ सिखाया नहीं जाता बल्कि उसे शब्दों और नंबरों का एक्सपोजर दिया जाता है ताकि उसकी बुद्धि उत्प्रेरित हो।
बड़े अक्षर और आकर्षक रंग: छोटे बच्चे हर चीज को विजुवलाइज करते हैं। यही कारण है कि वे भले ही पढ़ना चार साल की उम्र के बाद से सीखें, परंतु बड़े अक्षर या विज्ञापन को आसानी से पहचान लेते हैं। इस सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए गर्भावस्था के दौरान बच्चों को अक्षर के बजाय सीधे शब्द बताए जाते हैं, जिन्हें वे विजुवलाइज करके किसी चीज से जोड़ लें। सफेद कागज पर तीन इंच से बड़े लाल रंग में लिखे अक्षर या नंबर के डॉट्स बच्चों को आसानी से आकर्षित कर लेते हैं। वैज्ञानिक शोध के अनुसार, गर्भ के तीसरे महीने से चार साल की उम्र तक बच्चों को इस तरह 10 से ज्यादा भाषाएं सिखाई जा सकती हैं।
वास्तविक दुनिया से जोड़ें: विशेषज्ञ अभिषेक पसारी गर्भवती महिलाओं को 6 हफ्तों की ट्रेनिंग के दौरान गर्भ में बच्चों को व्यवहार, विभिन्न भाषा और गणित सिखाने का तरीका बताते हैं। सीखे गए तरीके को तीन महीने के गर्भ से लेकर आठ साल के बच्चों तक पर आजमाना होता है। पसारी कहते हैं कि बच्चे को जब भी कुछ सिखाएं या बताएं तो उसे वास्तविक दुनिया से जोड़ें। अक्षरों के अपने अर्थ नहीं होते जबकि शब्दों के होते हैं। यही कारण हैं कि गर्भावस्था के दौरान पहले अक्षर सिखाने के बजाय हम सीधे शब्दों के फ्लैश कार्ड के जरिये भाषा सिखाना शुरू करते हैं। मां अपने पेट पर हाथ रखकर बच्चे से बात करते हुए यदि पंचतंत्र की कहानियां पढ़ेगी और पढ़ते समय उस लाइन पर अंगुली फेरती जाएगी तो बच्चा भी तेजी से पढ़ना सीखेगा। बड़े होने पर उसे पढ़ना पसंद होगा। आप जो करते हैं आपका बच्चा भी वही करता है। यह प्रक्रिया गर्भावस्था से ही शुरू हो जाता है। इसी तरह गणित सिखाते वक्त हम नंबरों के बजाय सीधे डॉट्स और असली वस्तुओं के जरिये सीधे जोड़-घटाना सिखाते हैं। 
भारतीय परंपरा, विदेशी शोध: भारत में गर्भ संस्कार की अवधारणा प्राचीन काल से चली आ रही है। महाभारत काल में अजरुन ने सुभद्रा को गर्भावस्था के दौरान चक्रव्यूह में प्रवेश करने की प्रक्रिया बताई थी, जिसे अभिमन्यु ने गर्भ में ही सीख लिया था। भारतीय परंपरा में गर्भावस्था के दौरान इसलिए मां को अच्छी किताबें पढ़ने और अच्छा सोचने के लिए कहा जाता है। नए संदर्भ में फिलेडेल्फिया ग्लैन डॉमेन ने इस पर रिसर्च किया।
साभार: जागरण समाचार
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