Monday, April 13, 2015

सरकार और निजी स्कूलों की जंग में पिसेंगे गरीब बच्चे

हरियाणा के मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों में गरीब बच्चों की मुफ्त पढ़ाई का सपना अधूरा रह सकता है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के आदेशों के बाद भाजपा सरकार गरीब बच्चों को मुफ्त दाखिले दिलाने में जुट गई है, जबकि मान्यता प्राप्त निजी स्कूल हाईकोर्ट के आदेशों को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। विवाद बच्चों की फीस को लेकर है, जिस पर न तो राज्य सरकार स्पष्ट है और न ही मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों को कोई राह दिखाई पड़ रही है। निजी स्कूलों और सरकार की इस लड़ाई में गरीब बच्चों के दाखिले अधर में लटक सकते हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों को पहली कक्षा में 25 प्रतिशत सीटों पर और बाकी कक्षाओं में दस प्रतिशत सीटों पर मुफ्त दाखिले देने के निर्देश दिए हैं। हुडा की
जमीन पर बने निजी स्कूलों में 20 प्रतिशत सीटों पर रिजर्वेशन का प्रावधान है। राज्य सरकार को फीस की भरपाई करने के आदेश देते हुए हाईकोर्ट ने यह भी प्रावधान कर दिया कि यदि सरकार ऐसा नहीं करती, तब भी निजी स्कूलों को दाखिला हर सूरत में देना होगा। राज्य सरकार ने फीस की भरपाई के मामले में स्थिति साफ नहीं की है, लेकिन शिक्षा विभाग को दाखिला प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश जरूर जारी कर दिए हैं। दो जमा पांच मुद्दे जन आंदोलन के संयोजक सत्यवीर सिंह हुड्डा दो लाख रुपये तक की आमदनी वाले गरीब अभिभावकों को निजी स्कूलों में बच्चों के दाखिले कराने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने गांव दर गांव प्रयास शुरू कर दिए और गरीब अभिभावकों में पंफलेट बांटे जा रहे हैं। हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद स्कूल शिक्षा विभाग के महानिदेशक ने तीन चरणों में दाखिलों का मैकेनिज्म जारी कर दिया है। फार्म 20 अप्रैल तक भरे जा सकेंगे। पहला ड्रा पहली मई को, दूसरा 8 मई और तीसरा ड्रा 15 मई को निकाला जाएगा, जिसके आधार पर स्कूलों में दाखिले होंगे। दूसरी तरफ फेडरेशन आफ प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा का कहना है कि हाईकोर्ट के आदेशों में स्थिति साफ नहीं है। पहली कक्षा में शिक्षा का अधिकार कानून के तहत 25 प्रतिशत सीटों पर दाखिले की व्यवस्था कर दी गई और उसके बाद की कक्षाओं में 10 प्रतिशत आरक्षण है। यानि पहली कक्षा से दूसरी कक्षा में आने वाले 15 बच्चे मुफ्त दाखिले के अधिकारी नहीं होंगे। यह बड़ा असमंजस है। कुलभूषण शर्मा के अनुसार निजी स्कूल स्वयं फीस नहीं चाहते। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत राज्य सरकार को 2011 से अब तक कई अरब रुपये मिल चुके हैं। राज्य सरकार श्वेत पत्र जारी कर बताए कि यह राशि कहां खर्च की गई। उन्होंने कहा कि निजी स्कूलों में मुफ्त पढ़ने वाले बच्चों के खातों में यह राशि डाली जाए, ताकि वे एक सिस्टम से अपनी फीस का भुगतान कर सकें। इसमें निजी स्कूलों का कोई लालच नहीं है। हम इन्हीं बिंदुओं के आधार पर दोबारा हाईकोर्ट जाएंगे। वहां सुनवाई नहीं हुई तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।दो जमा पांच मुद्दे जन आंदोलन के संयोजक सत्यवीर सिंह हुड्डा का कहना है कि पांच साल में हाईकोर्ट ने नियम 134 ए को लागू कराने के लिए 18 आर्डर पास किए। 1 अप्रैल 2015 को हाईकोर्ट ने आखिरी आर्डर पास कर दिया। अब प्राइवेट स्कूल वालों के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा बंद हो गया है। नियम 134 ए को लागू करने के अलावा प्राइवेट स्कूलों के पास कोई चारा नहीं है। हर जिले के ब्लॉक शिक्षा अधिकारी को फ ार्म भर कर जमा करवाना है। अगर किसी गरीब परिवार को परेशानी आती है तो हमें बताएं। हम अवमानना याचिका दायर करेंगे।हरियाणा प्राइवेट स्कूल संघ के अध्यक्ष सत्यवान कुंडू ने कहा कि चुनाव से पूर्व भाजपा ने वादा किया था कि सरकार बनते ही शिक्षा नियमावली 2007 का सरलीकरण किया जाएगा। साथ ही धारा 134ए के तहत गरीब बच्चों का खर्च सरकार वहन करेगी, लेकिन अब सरकार अपने वादे से मुकर रही है। उन्होंने कहा कि प्राइवेट स्कूल धारा 134ए के तहत गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए तैयार हैं, लेकिन उसका खर्च सरकार वहन करे। इन सभी मामलों को लेकर जल्द शिक्षा मंत्री से मुलाकात की जाएगी।
मासूम बच्चों की वोट नहीं, इसलिए सरकार चुप: कुलभूषण शर्मा के अनुसार मासूम बच्चों की वोट नहीं है। इसलिए सरकार उनकी पढ़ाई को लेकर चिंतित नहीं है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले सभी छात्रों को फुल रिबेट मिलती है, क्योंकि उनकी वोट है। सरकारी कर्मचारियों को शिक्षा भत्ता बंद कर उन्हें अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए प्रेरित करने चाहिए और सरकार इस भत्ते की राशि को निजी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को दे। 
साभार: जागरण समाचार
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