Saturday, November 12, 2016

बड़े नोट बन्द करने का फैसला: कैशलेस समाज बनाने की ओर बड़ा कदम

राजीव चंद्रशेखर (पूर्व राज्य सभा सांसद और पेंटियम माइक्रो प्रोसेसर बनाने वाली कोर टीम के टेक्नोलॉजिस्ट)
देश के सात दशकों के लोकतंत्र की कई कमजोर विरासतें हैं, उनमें काले धन की अर्थव्यवस्था भी है। यह हमारी राजनीतिक और सरकारी व्यवस्था में भयावह भ्रष्टाचार का कारण होने के साथ हमारे लोकतंत्र, अर्थव्यवस्था
और देश के लिए खतरा है। इस काली अर्थव्यवस्था की सफाई करने का मतलब राजनीति, चुनाव, सरकार बिज़नेस की सफाई के साथ आतंकवाद में पैसा लगाने और फर्जी करेंसी नोटों की समस्याओं से निपटना भी है।यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। सत्ता में आने के बाद बहुत जल्दी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेत दे दिया था कि वे सुनियोजित ढंग से काले धन की अर्थव्यवस्था को पुरस्कार दंड की नीति से घटाने के लिए कदम उठाएंगे। इस दिशा में पिछले दो वर्षों में उनकी सरकार ऐसी कई योजनाएं लाई हैं। इसमें काले धन पर विशेष जांच दल (एसआईटी), जनधन मुद्रा बैंकिंग और ई-भुगतान के लिए सीधे लाभ, प्रोत्साहन योजनाएं और काला धन जाहिर करने की योजना शामिल हैं। जैसा कि एक लोकप्रिय हैडलाइन में कहा गया, 'कैश इज नो लॉन्गर किंग' यानी नकदी अब सर्वप्रमुख नहीं है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने हमसे 2016 के बजट में भारतीय समाज को कैशलेस बनाने का वादा किया था, इसलिए 8 नवंबर को जब लोग यह जानने को उत्सुक थे कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन होगा तो प्रधानमंत्री ने अपने प्रयासों का अगला चरण जाहिर कर 500 और हजार के मौजूदा करेंसी नोटों को चलन से बाहर करने की घोषणा कर दी। यह सबको मालूम है कि नकदी की ज्यादातर अर्थव्यवस्था इन्हीं नोटों के सहारे चलती है। वे इसे बहुत ही सुगमता से बिना किसी लीक के सर्जिकल स्ट्राइक के अंदाज में कर पाए, वह प्रशंसनीय है। 
इस तरह के कदम कभी आसान नहीं होते और अल्पावधि में कुछ उथल-पुथल भी अपेक्षित है। बाजार में नकद की उपलब्धता के मुद्‌दे पर ध्यान देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार ने कम मात्रा में नोटों के बदलने के लिए 31 दिसंबर तक की पर्याप्त अवधि दी है। नोटों को जनता तक पहुंचाना चुनौतीपूर्ण है और कुछ नागरिक नकदी की कमी के कारण परेशानी में फंस सकते हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में लोगों से अनुरोध किया कि वे सुधार के इस बड़े कदम की खातिर कुछ दिनों की असुविधा और परेशानी को बर्दाश्त करें। अपेक्षित राजनीतिक मर्यादाओं के परे होना ही भारत में सुधार का नियम है। अर्थव्यवस्था को न्यूनतम नकदी से चलाने की प्रक्रिया में नोट वापस लेना महत्वपूर्ण और आवश्यक कदम है। यह ध्यान में रखना होगा कि भारत में काली अर्थव्यवस्था कितनी गहराई तक पैठी हुई है। जून 2016 के एक अध्ययन का अनुमान है कि यह 30 लाख करोड़ रुपए से ऊपर की है। यह कई खरबों की हमारी जीडीपी का 20 फीसदी होता है,जो थाईलैंड अर्जेंटीना जैसे छोटे देशों की अर्थव्यवस्थाओं से काफी बड़ी है। आयकर चोरी भी बड़े पैमाने पर है। रिजर्व बैंक का डेटा बताता है कि पिछले चार दशकों में भारतीयों ने सेवा सामान के रूप में 17 खरब रुपए का निर्यात किया है, लेकिन उतनी मात्रा में विदेशी मुद्रा जमा नहीं की है। ऐसी समस्या से निपटने का कोई नफासत भरा या उथल-पुथल मचाने वाला समाधान नहीं होता, जिसे दशकों तक फलने-फूलने दिया गया हो। इसी वजह से अर्थव्यवस्था में मौजूद अवैध या फर्जी नकदी को भौतिक रूप से चलन से बाहर करने की जरूरत पड़ी है। यही इस काम को करने का कारगर तरीका था। 
बेशक इस कदम से उन्हें बहुत चोट पहुंचेगी, जिन्होंने अवैध अर्थव्यवस्था में भारी निवेश किया है जैसे आतंकवाद में पैसा लगाने वाले, राजनीतिक दलाल, फर्जी नोट छापने वाले आदि। इस कदम का राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खास महत्व है, क्योंकि आतंकी हमलों और हवाला सौदा का गहरा रिश्ता रहा है। इस साल उड़ी आतंकी हमले के बाद खुफिया ब्यूरो के डायरेक्टर ने साफ कहा था कि इसमें रहे धन के प्रवाह को रोकना इसे खत्म करने की दिशा में सबसे बड़ा कदम है। खासतौर पर आतंकी गुटों द्वारा लाई जाने वाली फर्जी करेंसी को देखते हुए यह और भी मौज़ू है। वे राजनीतिक दल भी चपेट में आएंगे, जो लंबे समय से अवैध नकदी से चलते रहे हैं। इन दलों को नकद दान में बहुत बड़ी राशि मिलती है, जो एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के मुताबिक कुल पार्टी फंड का 75 फीसदी होता है। इससे चुनाव और काले धन का रिश्ता खत्म होने की शुरुआत है। आरईआरए बिल के जरिये रियल ए्टेट बिज़नेस को बदलने पर मजबूर किया जा रहा है, अब इस पर नकदी के मॉडल से हटने का दबाव और बढ़ जाएगा। इसे अन्य व्यवसायों की तरह टिकाऊ बिज़नेस मॉडल अपनाना होगा। 
इससे छोटे बिज़नेस और व्यक्तियों को औपचारिक बैंकिंग क्षेत्र में जाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। 31 दिसंबर तक जो भी नकदी जमा होगी, वह सब टैक्स के दायरे में अा जाएगी। बैंकों के कड़े केवाईसी नियमों के कारण भारी नकदी वाले लोगों के लिए नए खाते खोलकर काली कमाई को सफेद करना मुश्किल होगा। हालांकि, यह पहलू अभी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है, जैसा आधार और इसके बाद जेडीम की खामियों ने दर्शाया है, लेकिन 500 और हजार रुपए के इन पुराने नोटो की कमाई को बैंकिंग सिस्टम से सफेद करने का कोई प्रयास सुरक्षा जांच से नहीं बच सकेगा। यह महत्वपूर्ण कदम है, क्योेंकि यह काला धन उजागर करने के लिए दिए मौके की समाप्ति के बाद उठाया गया है। तब प्रधानमंत्री और सरकार ने यह साफ कर दिया था कि स्वैच्छा से काला धन उजागर करने का यह अंतिम अवसर है। इस तरह नोटों को चलन से बाहर करना काले धन के खिलाफ लड़ाई में पहला निर्णायक कदम है। यह हमारी अर्थव्यवस्था को रूपांतरित कर कारगर, पारदर्शी और स्वच्छ बनाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम है। 
काला धन हमारी अर्थव्यवस्था के लिए हमेशा से शर्म का विषय रही है, क्योंकि यह सरकार, लोकतंत्र और देश के संस्थानों के पतन का कारण बनती है। यह लंबे समय से कॉर्पोरेट अनियमितताओं, भ्रष्टाचार और सरकार नीति को पंगु बनाने का कारण रही है। नकदी को बदलने का यह कदम इस रूपांतरण की दिशा में मील का पत्थर है। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं।) 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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