Sunday, April 12, 2015

एफडी से जुडी पांच जरूरी बातें आपके लिए: ताकि न रहे रिस्क

निवेश के लिए फिक्स डिपॉजिट को बेहतर ऑप्शन के रूप में देखा जाता है। लेकिन, समय-समय पर बैंकों की ओर से ब्याज में बदलाव के चलते रिटर्न घटता-बढ़ता रहा है। ऐसे में जिस उद्देश्य के लिए निवेश किया जाता है, वह पूरा नहीं हो पाता। मैच्योरिटी से पहले एफडी तोड़ने पर बैंक जुर्माना भी वसूलते हैं। यदि आप भी फिक्स्ड डिपॉजिट में पैसा इनवेस्ट करने के बारे में सोच रहे हैं, तो हम
आपको बता रहे हैं 5 अहम बातें ताकि जोखिम कम रहे: 
  1. एफडी को न समझें पूरी तरह सेफ: एफडी दो तरह की होती हैं बैंक एफडी और कॉरपोरेट एफडी। कॉरपोरेट डिपॉजिट असुरक्षित लोन होते हैं, जिनमें कोई गारंटी नहीं होती। बैंकों के मामले में डिपॉजिट इंश्योरेंस ऐंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (डीआईसीजीसी) एक कस्टमर को अधिकतम 1 लाख रुपए की गारंटी देता है और यह नियम बैंकों की हर ब्रांच के लिए लागू है। ऐसे में अगर आपके पास 3 से 4 लाख रुपए इनवेस्ट करने के लिए हैं तो इस रकम को अलग-अलग बैंकों में तीन-चार जगह इन्वेस्ट करना बेहतर रहता है। इसके दो तरह के फायदे होंगे। पहली ये कि आपकी पूरी की पूरी रकम सुरक्षित रहेगी और दूसरा ये कि अगर एफडी कराने के बाद आपको इमरजेंसी में अपनी एफडी तोड़नी पड़ गई तो आप कोई भी एक एफडी तोड़कर काम चला सकते हैं। इससे एफडी तोड़ने की वजह से जो नुकसान होता है, वह कम होगा। यानी जो पेनल्टी लगेगी वह सिर्फ उसी एफडी पर लगेगी जिसे आप समय से पहले तोड़ रहे हैं। बाकी का पैसा उसी ब्याज दर से इन्वेस्ट रहेगा और बढ़ता रहेगा। 
  2. अलग-अलग बैंकों या एफडी में करें निवेश: अलग-अलग बैंकों में इन्वेस्टमेंट से रिस्क कम हो जाता है। एफडी में अनिश्चितता बनी रहती है क्योंकि ब्याज दरें घटती-बढ़ती रहती हैं। इससे बचने के लिए ऐसे फिक्स्ड डिपॉजिट्स करिए जिनकी अवधि अलग-अलग हो। मसलन अगर आपके पास इन्वेस्ट करने के लिए चार लाख रुपये हैं, तो इस रकम को 1-1 लाख रुपये की चार डिपॉजिट में बांट लीजिए। फिर इन्हें 1, 2, 3 और चार साल के लिए फिक्स कर दीजिए। जब 1 साल वाली एफडी मच्योर हो, तो उसे 4 साल की एफडी में दोबारा इनवेस्ट कर दीजिए। ऐसा करके कुछ निश्चित समय के बाद ब्याज दर के ऊंचा या नीचा होने का मामला संतुलित हो जाएगा। इसका एक और फायदा होगा। आपको नकदी मिलती रहेगी क्योंकि एक-एक साल के बाद आपकी एफडी मच्योर होती रहेंगी। 
  3. एफडी में टाइम मैनेजमेंट जरूरी: एफडी में इन्वेस्ट करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आपने निवेश की अवधि सही चुनी है। शुरू में ही अगर आपने लंबी अवधि के लिए इन्वेस्ट कर दिया और बीच में आपको एफडी तोड़नी पड़ गई तो बहुत कम रिटर्न मिलेगा। मान लीजिए, आपका बैंक 1 साल की एफडी पर 9 फीसदी का रिटर्न ऑफर कर रहा है और पांच साल की एफडी पर 9.5 फीसदी रिटर्न दे रहा है। ऐसे में अगर आपको लगता है कि आपको पांच साल से पहले पैसे की जरूरत पड़ सकती है तो लंबी अवधि वाली एफडी में पैसा लगाने से बचें। अगर आपने पांच साल की एफडी कराने के बाद उसे एक साल के बाद तोड़ दिया तो आपको ब्याज दर उतनी ही मिलेगी जितनी एक साल की एफडी पर मिलती है। साथ ही आप पर पेनल्टी भी लगाई जा सकती है। इसका मतलब यह होगा कि आधा पर्सेंट ज्यादा हासिल करने के चक्कर में आपको उससे भी कम ब्याज दर मिलेगी जो आपको 1 साल की एफडी पर मिल रही थी। 
  4. देना होता है टैक्स, ऐसे समझें: एफडी पर आपको जो भी ब्याज मिलेगा, वह पूरी तरह टैक्सेबल है। अगर एक साल में ब्याज की रकम 10 हजार रुपये से ज्यादा बढ़ जाती है तो बैंक या कॉर्पोरेट हाउस 10.3 फीसदी टैक्स सोर्स पर काट लेगा। रकम आपको यह टैक्स कटने के बाद ही मिलेगी। और अगर आप हायर इनकम ग्रुप में हैं (सालाना आमदनी 5 लाख से ज्यादा), तो आपको इस आमदनी पर ज्यादा टैक्स देना होगा। अगर टीडीएस नहीं भी काटा गया है तो आपको बॉन्ड्स और एफडी से होने वाली अपनी आमदनी को अपने टैक्स रिटर्न में दिखाना चाहिए। याद रखें ब्याज पर टैक्स एक्रूड आधार पर लगाया जाता है। टैक्स आपको हर साल के आधार पर अदा करना होगा। दूसरी तरफ अगर आपकी आमदनी उस आमदनी से कम है, जिस पर टैक्स नहीं लगता तो आप रिटर्न जमा करके उस रकम का रिफंड ले सकते हैं जो टीडीएस के तौर पर काटी जा चुकी है। टीडीएस से बचने का तरीका यह है कि आप फॉर्म 15 जी भरकर यह घोषणा करें कि आपकी आमदनी टैक्सेबल सीमा से कम है। 
  5. क्या है आमदनी का गणित: यदि आपने टैक्स बचाने के लिए बच्चे या जीवनसाथी के नाम से एफडी खुलवाई है, तो आप गलत हैं। यदि अपने बच्चे या जीवनसाथी को पैसा देते हैं, तो आपके ऊपर टैक्स की देनदारी नहीं बनेगी। लेकिन, इस पैसे को उनके नाम से इन्वेस्ट कर दिया गया तो उससे होने वाली आमदनी को आपकी आमदनी में जोड़ा जाएगा और तब टैक्स लगेगा। कोई व्यक्ति अपने जीवनसाथी के नाम से एफडी में पैसा जमा करता है, तो उससे होने वाली आमदनी को उसकी आमदनी के तौर पर माना जाएगा। 18 साल से कम उम्र के नाबालिग बच्चों के मामले में नियम अलग हैं। आमदनी को माता या पिता में से उसकी आमदनी में जोड़ा जाएगा जो ज्यादा कमाता है। हालांकि एक बच्चे के लिए 1500 रुपये सालाना की छूट मिलती है। 
साभार: भास्कर समाचार
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