Monday, August 7, 2017

जीवन दर्शन: दूसरों के लिए कुछ करने में है खुशी

अशोक वाजपेयी (कवि और आलोचक)
एक तो अपने नाम की लाज रखने के लिए खुश रहता हूं, हालांकि मेरा स्थायी भाव, कम से कम कविता में, अवसाद है। दूसरी बात, जब मैं एमए का छात्र था तो अंग्रेजी के कविता संग्रह से मुझे एक यहूदी कहावत का पता
चला: 'ईश्वर के सामने रोओे आदमी के सामने हंसो।' मैंने पाया कि यह एक अच्छा गुर है, जीने का। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हंसमुख व्यक्ति से प्रायः सभी खुश रहते हैं चाहे वह कितनी ही बकवास करे। मुझे अपनी बकवास से लोगों को खुश देखने का अनुभव कई बार हुआ है। वे लोग जो सारे जहां का दर्द अपने चेहरे पर लिए रहते हैं अक्सर अप्रिय या दयनीय लगते हैं। दुनिया में ज्यादातर लोगों को आपके सुख में तो दिलचस्पी होती है, दुख में नहीं। ऐसी शायद ही कोई महफिल होगी, जिसमें रोंदू चेहरा उत्साह या उत्सुकता जगाता हो। दुखी दिखने वाले लोग अक्सर विफल भी होते हैंः दुनिया को हंसी से जीता जा सकता है, अंासुओं से नहीं। 
ऐसी खुशियां होती हैं जो आत्मकेंद्रित होती हैं। आपको कुछ अच्छा लगता है जैसे मुझे नई पुस्तकें पढ़ना खासकर कविता की, या शास्त्रीय संगीत या कभी बिल्कुल अकेले चुपचाप बैठना, बिना किसी सोहबत के या मोबाइल को देखे-सुने। आप बहुत दिनों के सूखे के बाद एक कविता लिख पाए तो यह भी खुशी की वजह बन जाता है। कभी कोई अज्ञात व्यक्ति आपका कुछ पढ़कर उससे सहमत या असहमत होते हुए आपको फोन करे तो खुशी होती है। खुशी होती है जब कोई रसिक आपको किसी ऐसी कविता की याद दिलाए जो आपने दशकों पहले लिखी थी और जिसकी आपको याद भी नहीं रह गई है तो खुशी होती है। अंग्रेजी से बेहद नकचढ़ी होती जाती दिल्ली में आपके हिंदी वक्तव्य या व्याख्यान की कोई अंग्रेजी दां शख्सियत प्रशंसा करे तो खुशी होती है। पर ये क्षणजीवी होती हैं कविता-कला-संगीत से मिलने वाली अधिक स्थिर खुशी के सिवाय। 
असली खुशी तो दूसरों के लिए कुछ करने में है। मुझे, सौभाग्य से, अपने जीवन और कॅरिअर में ऐसे अवसर और संयोग बहुत मिले कि मैं दूसरों के लिए कुछ कर पाया। कई बार यह सोचकर थोड़ी हैरत होती है कि लगभग बारह संस्थाएं बनाईं जो साहित्य-कला संबंधी हैं और जिनका लक्ष्य हमेशा ही दूसरों के लिए कुछ कर पाना है। वहां कई क्षेत्रों के अलग-अलग लोगों से मिलने का अवसर भी मिलता है और सबके पास अपनी बातें अपने अनुभव होते हैं। देशभर में यहां वहां, अकस्मात और अप्रत्याशित ढंग से ऐसे संगीतकार, नर्तक, चित्रकार, रंगकर्मी, लोककलाकार, लेखक मिलते रहते हैं जो याद दिलाते हैं कि कब उनकी मदद हुई थी। खुशी होती है कि आप दूसरों के लिए कुछ कर पाए। खुशी, प्रार्थना की तरह, तभी फलीभूत होती है जब दूसरों को खुशी हो। 
पर इसका अर्थ यह नहीं कि खुद आपको जो खुशी मिलती है उसका महत्व कुछ कम है। नई पुस्तकें, जिन्हें मैं दिल्ली-मुंबई-कोलकाता के अलावा पेरिस-लंदन-क्राकोव-सेन फ्रांसिस्को, टोकियो, न्यूयाॅर्क, आदि सभी जगह खोजता रहा हूं, सच्ची खुशी का बायस होती हैः वे आपको अपने जीवन की कारा से मुक्त कर परकाया प्रवेश करने का अवसर और न्यौता देती है, वे आपको अपने समय के पार ले जाती है, आपके मानवीय अस्तित्व का विस्तार करती हैं। संगीत आपको समकालीनता की जकड़बंदी से छुड़ाकर एक नए घर में कुछ देर के लिए ही सही, बसा देता हैं आप सच्चाई को पिघलता-बहता महसूस करते हैं, आपका आत्म भी गलता जाता है। इनसे जो खुशी होती है वह तो अकारण है, ही अप्रत्याशितः इसमें आप की कोशिश और दूसरों का किया-धरा अनिवार्य रूप से समाया होता है। 
अच्छा भोजन, अच्छे द्रव्य और अच्छी संगत, गरमागरम बहस, भरे करेले और बैंगन भरता भी खुशी देते हैं। कारन्त जी से सीखी आदत जिसमें भात दही और अचार के साथ खाना होता है कई बार खुश कर देता है। मुझे याद है आविन्यो में एक शाम रास्ते में एक दंपति अपने शिशु को एक बच्चागाड़ी में घुमाने ले जा रहे थेः हम पास से गुजरे तो वह शिशु देर तक पलट-पलट कर देखता रहाः उससे कुछ खुशी की गरमाहट भर गई और मैंने इस घटना पर एक गद्य कविता भी लिखी। 
लगातार काम करते रहना 77 की उम्र में खुश रखता है: उसमें ऐसी फुरसत ही नहीं मिल पाती कि आप अपने पर या दूसरों पर बिसूरें। खुश रहना और दूसरों के लिए कुछ खुशी संभव कर पाना उदात्त लक्ण है। उनकी कसौटी पर पूरी तरह से खरा उतरना शायद संभव नहीं पर मैं या कोई यह नहीं कह सकता कि इसकी ईमानदार कोशिश करने में कोई कोताही की। कविता ने भक्ति काल में सीधे संगीत और नृत्य में भी प्रवेश किया। इस कविता ने ईश्वर को मंदिर-मस्जिद, पवित्र ग्रंथों की कारा से मुक्त कर एक तरह से कविता में, साधारण जन के हृदय-आत्मा-घर-पड़ोस में प्रतिष्ठित कर दिया। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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