Sunday, May 7, 2017

क्या कभी खुशी को तब मुस्कराते देखा है जब पुरानी यादें और हसरतें मिलती हैं

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
इस वीकेंड नासिक जाते समय मैं ट्रैफिक जाम में फंस गया और जब भी मैं इस तरह फंस जाता हूं तो मुझे सतगुरु की सलाह याद आती है, जिन्होंने कहा है, 'यदि आप अपनी कार से प्रेम करते हैं तो दूसरों पर उत्तेजित
और गुस्सा होने की बजाय यात्रा तथा आसपास के दृश्यों का आनंद लीजिए।' इसलिए मैंने आसपास का जायजा लेना शुरू कर दिया। सुबह का वक्त था पर गर्मी फिर भी ज्यादा थी और मैं धैर्यपूर्वक इंतजार करने लगा। स्कूल बस से एक बच्चा लिमोसिन देख रहा था और लिमोसिन का मालिक बस को देख रहा था। मैं चार आंखों को आदान-प्रदान करते देख रहा था- एक जोड़ी में वह कार खरीदने की हसरत थी और सफल बिज़नेसमैन की एक जोड़ी आंखें अपने स्कूल के दिनों को याद कर रही थीं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। तभी एक भिखारी ने खिड़की पर दस्तक देकर दखल दिया। मैंने उसे बिस्कुट का एक पैकेट और पानी की छोटी बोतल दी, जो मैं हमेशा लंबी यात्रा में साथ रखता हूं। उसने फुटपाथ पर बैठी अपनी अपंग बेटी की ओर इशारा करते हुए कुछ और की मांग की। चूंकि मुझे दो दिन पहले पढ़ी कहानी याद थी तो मैंने बिस्कुट के चार पैकेट और दोनों के लिए बोतलें दीं। ये चीजें लेकर वह दौड़ता हुआ अपनी बेटी के पास गया। छोटी आंखें चमक उठीं और उन छोटे हाथों ने सारी बोतलें झपट ली। पिता की आंखें बेटी के गले के नीचे उतरती पानी की हर बूंद को देख रही थीं। जब तक बेटी ने अच्छी तरह खा-पी नहीं लिया, पिता ने पानी नहीं पिया। फिर बेटी ने एक और बोतल खोल ली और पिता को सामने झुकने को कहकर अपने हाथों से खिलाने लगी, क्योंकि पोलियो प्रभावित पैरों के कारण वह खड़ी नहीं हो सकती थी। दिल को छू लेने वाला दृश्य था। मेरी आंखों में आंसू छलक अाए। वह वाकई पिता-पुत्री के बीच का प्यार चीजों को साझा करने की भावना थी। मैंने जो कहानी पढ़ी थी वह सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी अौर जो जीएमबी आकाश नामक फोटोग्राफर ने फेसबुक पर लिखी थी। 
सुमैया हर दिन अपने पिता कवसर हुसैन के साथ वहां तक आती है, जहां वे भीख मांगते हैं। जब पिता भीख मांगते हैं तो शर्म के मारे वह आंखें झुका लेती है। फिर वे उसका हाथ अपने हाथ में लेकर घर लौटते हैं। बारिश के दिनों में वे दोनों भीगकर अपने सपनों की चर्चा करना पसंद करते। किसी-किसी दिन उन्हें कुछ भी नहीं मिलता, तो वे चुपचाप घर लौटते। उन दिनों उन्हें ऐसा लगता कि मर जाना ही बेहतर है लेकिन, रात को जब उनके बच्चे उनसे गले लगकर सोते तो उन्हें लगता कि जिंदा रहना उतना बुरा भी नहीं है। 
कहानी के मुताबिक हुसैन ने दुकानदार को पांच टका नोट (बांग्लादेशी मुद्रा) के खुल्ले पैसे दिए तो दुकानदार चिल्लाया, 'क्या तुम भिखारी हो?' उनके साथ मौजूद बेटी सुमैया को यह अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ। वह रोते हुए पिता के शर्ट की खाली बांह खींचने लगी, क्योंकि दुर्घटना में हुसैन अपनी बांह खो चुके थे, जिसने उन्हें भिखारी बना दिया। हुसैन अपने दूसरे हाथ से उसके आंसू पोंछते हैं और दुकानदार से कहते हैं, 'हां मैं हूं।' वे यह पीले रंग का फ्रॉक खरीदते हैं, बेटी के लिए यह तोहफा वे दो साल तक भीख मांगने के बाद खरीद पाए हैं- क्योंकि उनकी यही बेटी तो रोज उन्हें खाना खिलाती है। वे उसे पास के बगीचे में ले जाते हैं, उन्हें वह फ्रॉक पहनाते हैं और उस मोबाइल से फोटो खींचते हैं, जो उन्होंने पत्नी को बताए बिना पड़ोसी से लिया था। परिवार का कोई फोटो नहीं था और उन्हें हमेशा लगता कि उसके बच्चों का फोटो हो और वह यादगार हमेशा पास रहे। अगली बार मैं यात्रा करूंगा तो मैं अपने साथ पोलरॉइड कैमरा रखूंगा ताकि इन भिखारियों को यादगार तोहफा दे सकूं। संभव हुआ तो वे पूरी जिंदगी इससे खुशी पाते रहेंगे। मैं जानता हूं कि सिर्फ बिस्कुट और पानी की बजाय यह उन्हें ज्यादा खुशी देगा। 
फंडा यह है कि पुरानीयादों और हसरतों में हमेशा खुशी मुस्कराती है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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