Tuesday, May 16, 2017

कुलभूषण जाधव की फांसी पर इंटरनेशनल कोर्ट का फैसला सुरक्षित, दोनों पक्षों से बातचीत के बाद सुनाया जाएगा

भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान में मिली फांसी की सजा पर सोमवार को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट (आईसीजे) ने फैसला सुरक्षित रख लिया। 11 जजों की बेंच ने कहा कि फैसला जल्द से जल्द
जारी होगा। इससे पहले सुनवाई के दौरान पाकिस्तान ने जाधव के कथित कबूलनामे वाले वीडियो को सबसे बड़ा सबूत बताते हुए कोर्ट में चलाना चाहा। लेकिन कोर्ट ने इजाजत नहीं दी। भारत ने कोर्ट में आशंका जताई कि फैसला आने से पहले जाधव को फांसी दी जा सकती है। लेकिन पाकिस्तान ने साफ किया कि जाधव 150 दिन तक अपील कर सकते हैं। अगस्त तक उन्हें फांसी नहीं होगी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। साथ ही पाकिस्तान ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कोर्ट उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा में दखल नहीं दे सकता है। बता दें कि इस अंतरराष्ट्रीय न्यायिक मंच पर भारत और पाकिस्तान 18 साल बाद आमने-सामने थे। 
भारत ने कहा कि पाक सेना ने जाधव के खिलाफ वैज्ञानिक सबूत होने का दावा किया है। कथित इकबालिया बयान के वक्त वह पाकिस्तानी सेना की हिरासत में थे। यह डॉक्टर्ड था। बाकी कोई सबूत नहीं दिखाया। सच्चाई यह है कि जाधव को ईरान से अगवा कर लाया गया था। उनकी गिरफ्तारी पाकिस्तान से दिखाई गई। दोनों देशों के रिश्ते अच्छे नहीं हैं। इसलिए बिना किसी ट्रायल उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई। भारत को तो आरोपों की कॉपी तक नहीं मिली। वहीं पाकिस्तान ने कहा कि भारत ने इसे पॉलिटिकल थिएटर बना दिया है। जाधव ने खुद कबूला है कि उसे भारत ने बेकसूरों को मारने भेजा था। उसके पास मौजूद पासपोर्ट पर मुस्लिम नाम था। हमने कमांडर जाधव के बारे में जानकारी भारत को दी थी। 23 जनवरी 2017 को भारत को जाधव के बारे में रिपोर्ट और आरोप सौंपे थे। उसके बैंक रिकॉर्ड भी दिए थे। लेकिन, भारत इस बारे में बात नहीं कर रहा है। 
भारत की टीम: सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे के साथ चार लोगों की टीम। इनमें विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव दीपक मित्तल और वीडी शर्मा, नीदरलैंड्स में भारतीय दूतावास की फर्स्ट सेक्रेटरी काजल भट्ट और जूनियर काउंसल चेतना एन रॉय शामिल थे। 
पाकिस्तान की टीम: पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल अश्तर ऑसफ अली के नेतृत्व में टीम गई। साथ में यूएई में पाक के राजदूत मोज्जम अहमद खान, डीजी सार्क मोहम्मद फैसल, नीदरलैंड्स में पाकिस्तानी काउंसलर सैयद फराज हुसैन जैदी के साथ काउंसल क्यूसी ख्वार कुरैशी, जूनियर काउंसल असद रहीम खान और लीगल असिस्टेंट जोसेफ डायक मौजूद थे। 
11 जजों की बेंच ने डेढ़-डेढ़ घंटे सुनी दोनों देशों की दलीलें: अंतरराष्ट्रीय कोर्ट की 11 जजों की बेंच की अध्यक्षता जस्टिस अब्राहम कर रहे थे। उन्होंने दोनों पक्षों को दलीलें रखने के लिए डेढ़-डेढ़ घंटे का वक्त दिया।
भारत की अपील के तीन आधार - नागरिक अधिकार, पूर्वाग्रह और न्याय को खतरा: भारत ने नागरिक के तौर पर जाधव के अधिकार, पाकिस्तान का पूर्वाग्रह और न्याय को खतरा देखते हुए फांसी पर रोक की मांग की है। केस मजबूती से रखने के लिए तीन पुराने फैसले भी गिनाए: {सबके अधिकारों का सम्मान होना चाहिए। जर्मनी के एक केस में 1998 में आईसीजे ने यही किया था। अमेरिका को वॉल्टर नाइल की सजा पर रोक का आदेश दिया था। {पूर्वाग्रह याी प्रिजुडिस के आधार पर कोई फैसला नहीं लिया जा सकता। मैक्सिको के 44 नागरिकों के मामले में भी ऐसा ही हुआ था। इन्हें अमेरिका ने अरेस्ट कर लिया था। { फिनलैंड और नीदरलैंड्स के एक मामले में न्याय को खतरे के आधार पर आईसीजे ने नीदरलैंड्स के कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। 
इंटरनेशनल कोर्ट में पाक अधिकारी ने बढ़ाया हाथ, भारतीय राजनयिक बोले - नमस्ते: जाधव मामले पर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में सुनवाई से पहले एक पाकिस्तानी अफसर ने भारतीय राजनयिक से हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो भारतीय राजनयिक ने सिर्फ नमस्ते किया। दोनों देशों के बीच रिश्तों की तल्खी भारतीय राजनयिक के अंदाज से साफ झलकती है। जब दोनों देशों के वकील और राजनयिक कोर्ट पहुंचे तो पाकिस्तानी काउंसलर मोहम्मद फैजल ने विदेश मंत्रालय के जाॅइंट सेक्रेटरी दीपक मित्तल की तरफ हाथ बढ़ाया। मित्तल ने इसे अनदेखा कर भारतीय अंदाज में सिर्फ नमस्ते कहा। खास बात यह है कि मित्तल ने कुछ दूसरे पाकिस्तानी सदस्यों से हाथ मिलाए थे। लेकिन, फैजल को ही इग्नोर किया। 
आतंकी गतिविधियों में लिप्त जासूसों पर विएना समझौते की शर्तें लागू नहीं होतीं। मोहम्मद फैसल के नाम से जाधव के पासपोर्ट पर भारत ने सफाई नहीं दी। भारत-पाक में 2008 के समझौते के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में किसी कैदी को राजनयिक पहुंच से इनकार किया जा सकता है। 
अंतरराष्ट्रीय कोर्ट राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में दखल नहीं दे सकता। जाधव को सजा के ऐलान से दो हफ्ते पहले ही पाकिस्तान ने कोर्ट को बताया था कि उसने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर कोर्ट के दखल का अधिकार वापस ले लिया है। भारत 1974 में ऐसा ऐलान कर चुका है। 
जाधव की फांसी की सजा विएना समझौते के खिलाफ है। राजनयिक पहुंच के 16 आवेदन खारिज कर दिए। जाधव को बचाव के लिए वकील तक नहीं दिया। मां को भी जाधव से नहीं मिलने दिया। दुनिया के किसी सभ्य देश में ऐसा नहीं होता। पाकिस्तान मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों की धज्जियां उड़ा रहा है। 
कोर्ट ऐसे मामलों में सीधा दखल दे सकता है। यह बताने के लिए साल्वे ने दो उदाहरण दिए। उन्होंने कहा कि बेल्जियम और बुल्गारिया केस (1931) में कोर्ट ने कहा था कि बिना स्वतंत्र सुनवाई के सजा नहीं सुनाई जा सकती। होंडुरास और निकारगुआ केस में कहा था कि विएना समझौते का पालन जरूरी है।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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