भारत एकऐसी बैलगाड़ी है जो एक जेट इंजन से बंधी है। एक तरफ जहां हमारी सरकारी प्रक्रियाएं, कानून व्यवस्था और प्रशासनिक ढांचे की रफ्तार बहुत धीमी है, वहीं दूसरी ओर हम एक बेहद तेज रफ्तार वाली ताकतवर डिजिटाइज्ड इकोनॉमी भी बन गए हैं। हमारे यहां एक अरब से ज्यादा मोबाइल फोन, एक अरब से
ज्यादा 'आधार' नंबर और 30 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट यूजर हैं। 22 करोड़ से ज्यादा जन-धन बैंक खाते खोलकर देश के लगभग हर परिवार को बैकिंग सुविधा के दायरे में लाया जा चुका है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यह दुनिया का सबसे अत्याधुनिक पेमेंट सिस्टम है जो आगे चलकर आपके स्मार्टफोन को बैंक में बदल देगा। रिजर्व बैंक द्वारा स्वीकृत यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) से ज्यादातर लेनदेन मोबाइल फोन से करना संभव है। यूपीआई आपकी पहचान को डिजिटली प्रमाणित करता है। इससे सिर्फ आप टेलीफोन, बिजली, पानी आदि के बिल मोबाइल फोन से जमा कर पाएंगे, बल्कि एक से दूसरे व्यक्ति को पैसे ट्रांसफर भी किए जा सकेंगे। मसलन, आप अपने पान वाले या टैक्सी वाले को भी मोबाइल से पैसे चुका सकेंगे।
हो सकता है अगले पांच या दस साल बाद आपको एटीएम, क्रेडिट-डेबिट कार्ड और चेक बुक की जरूरत ही पड़े, यहां तक कि कैश की भी। सभी तरह के लेनदेन मोबाइल फोन से किए जा सकेंगे। इसके लिए सभी बड़ी टेलीकॉम कंपनियों को पेमेंट बैंक का लाइसेंस मिला है। वे एक से दूसरे व्यक्ति को डिजिटल मनी ट्रांसफर करने के लिए अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करने जा रही हैं।
एक ओर जहां भारत की अर्थव्यवस्था बैलगाड़ी है, वहीं देश की डिजिटल इकोनॉमी एक जेट इंजन है जो बाकी दुनिया से कहीं आगे है। इसका मतलब यह है कि भले हमारी 25 से 30 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा से नीचे है, लेकिन इनमें से कई लोगों के पास जीवनयापन की न्यूनतम सुविधाओं से पहले स्मार्टफोन होंगे।
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) कानून बनने के बाद आईटी सिस्टम इसकी रीढ़ होगा, जो जीएसटी नेटवर्क कहलाएगा। यह पूरी तरह डिजिटल होगा। इसमें भारत का हर कारोबारी-उद्योग टैक्स अदा रहा होगा, बिल अपलोड कर रहा होगा और इलेक्ट्रॉनिकली इनडायरेक्ट टैक्स रिटर्न दाखिल कर रहा होगा। इसमें पेपर वर्क नहीं होगा।
डिजिटल जेट इंजन रोजगार-नौकरियों के ऐसे अवसर पैदा करेगा जिनके बारे में पहले कभी सोचा नहीं होगा। एक समय सरकारी नौकरी, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक या किसी बड़ी कंपनी में नौकरी आम आदमी का सपना हुआ करती थी। बीस साल पहले आईटी सेक्टर में बूम आने के साथ यह अभिलाषा बदली। इसके बाद एक ऐसा साॅफ्टवेयर इंजीनियर बनना 'ड्रीम जाॅब' बन गया जिसे अमेरिका पहुंचकर वहां क्लाइंट के परिसर में काम करने का मौका मिले। लेकिन अमेरिका अन्य पश्चिमी देशों में आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार मंद पड़ने के साथ, ऐसी नौकरी के विकल्प कम हुए हैं। वहीं, भारतीय आईटी कंपनियों पर ज्यादा नौकरियों को ऑटोमेट करने और वहां स्थानीय सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को नौकरी पर रखने का दबाव बढ़ा है जो विदेशी होंगे।
लेकिन डिजिटाइज्ड इकोनॉमी घरेलू सेवाओं में नौकरियों के नए अवसर भी पैदा कर रही है। मसलन, ओला और उबर को ही लें। टैक्सी कैब की सुविधा मुहैया कराने वाले इन मोबाइल एप ने हजारों लोगों को टैक्सी ड्राइवर बनाया है। वे इस एप के जुड़ने के बाद और ज्यादा कमाने लगे हैं। इंटरनेट और मोबाइल फोन आधारित खाने-पीने की चीजें और सामान की डिलीवरी के कारोबार ने भी हजारों नौकरी के अवसर पैदा किए हैं। यह नौकरियां मिनी ट्रक और दोपहिया वाहन उपयोग करने वाली डिलीवरी चेन में निकली हैं। लॉजिस्टिक्स सेक्टर में बैक एंड पर काम करने वाली कई कंपनियां सामान को फैक्ट्री से वेयरहाउस और वेयरहाउस से रिटेल मॉल और घरों तक पहुंचा रही हैं।
फैक्ट्रियां लंबे समय तक ज्यादा नौकरियां उपलब्ध नहीं करा सकतीं, लेकिन सप्लाई चेन लंबे समय तक ऐसा कर सकते हैं। फैक्ट्रियों में रोबोट और ऑटोमेटेड मशीनरी का इस्तेमाल होगा। लेकिन चाहे कार हो, या फ्रिज या कोई कस्टमर प्रोडक्ट, डीलरशिप, रिपेयर और सर्विस शॉप्स, कस्टमर सपोर्ट सर्विस ऐसे क्षेत्र हैं जहां नौकरियों के नए अवसर पैदा हो रहे हैं।
आधार यूनिक आइडेंटिटी सिस्टम बनाने वाले इन्फोसिस के पूर्व चेयरमैन, नंदन नीलेकणी का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का भविष्य मैन्युफैक्चरिंग नहीं, बल्कि वह सेवाएं होंगी जिनका जिक्र ऊपर किया जा चुका है। उनके मुताबिक, निर्यात तेजी से नहीं बढ़ पाएगा, इसमें मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि दुनिया संरक्षणवादी होती जा रही है। वह स्थानीय नौकरियों को बचाने के लिए सामान और सेवओं का आयात घटाने को तरजीह दे रहीं हैं। इसका मतलब यह भी है कि भारत को राेजगार-नौकरियों के अवसर उपलब्ध कराने के लिए घरेलू ग्रोथ पर भरोसा करना होगा। नीलेकणी का मानना है कि बड़ी कंपनियां नहीं, बल्कि ओला, उबर, फ्लिपकार्ट, अमेजन, टेलीकॉम नेटवर्क आदि डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़े छोटे बिजनेस रोजगार/नौकरियों के अवसर मुहैया कराएंगे। इस तरह, डिजिटल भारत, आज के भारत से अलग और बेहतर होगा।
- लेखक आर्थिक मामलों के वरिष्ठ पत्रकार,'डीएनए' के एडिटर रह चुके हैं।
एक ओर जहां भारत की अर्थव्यवस्था बैलगाड़ी है, वहीं देश की डिजिटल इकोनॉमी एक जेट इंजन है जो बाकी दुनिया से कहीं आगे है। इसका मतलब यह है कि भले हमारी 25 से 30 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा से नीचे है, लेकिन इनमें से कई लोगों के पास जीवनयापन की न्यूनतम सुविधाओं से पहले स्मार्टफोन होंगे।
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) कानून बनने के बाद आईटी सिस्टम इसकी रीढ़ होगा, जो जीएसटी नेटवर्क कहलाएगा। यह पूरी तरह डिजिटल होगा। इसमें भारत का हर कारोबारी-उद्योग टैक्स अदा रहा होगा, बिल अपलोड कर रहा होगा और इलेक्ट्रॉनिकली इनडायरेक्ट टैक्स रिटर्न दाखिल कर रहा होगा। इसमें पेपर वर्क नहीं होगा।
डिजिटल जेट इंजन रोजगार-नौकरियों के ऐसे अवसर पैदा करेगा जिनके बारे में पहले कभी सोचा नहीं होगा। एक समय सरकारी नौकरी, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक या किसी बड़ी कंपनी में नौकरी आम आदमी का सपना हुआ करती थी। बीस साल पहले आईटी सेक्टर में बूम आने के साथ यह अभिलाषा बदली। इसके बाद एक ऐसा साॅफ्टवेयर इंजीनियर बनना 'ड्रीम जाॅब' बन गया जिसे अमेरिका पहुंचकर वहां क्लाइंट के परिसर में काम करने का मौका मिले। लेकिन अमेरिका अन्य पश्चिमी देशों में आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार मंद पड़ने के साथ, ऐसी नौकरी के विकल्प कम हुए हैं। वहीं, भारतीय आईटी कंपनियों पर ज्यादा नौकरियों को ऑटोमेट करने और वहां स्थानीय सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को नौकरी पर रखने का दबाव बढ़ा है जो विदेशी होंगे।
लेकिन डिजिटाइज्ड इकोनॉमी घरेलू सेवाओं में नौकरियों के नए अवसर भी पैदा कर रही है। मसलन, ओला और उबर को ही लें। टैक्सी कैब की सुविधा मुहैया कराने वाले इन मोबाइल एप ने हजारों लोगों को टैक्सी ड्राइवर बनाया है। वे इस एप के जुड़ने के बाद और ज्यादा कमाने लगे हैं। इंटरनेट और मोबाइल फोन आधारित खाने-पीने की चीजें और सामान की डिलीवरी के कारोबार ने भी हजारों नौकरी के अवसर पैदा किए हैं। यह नौकरियां मिनी ट्रक और दोपहिया वाहन उपयोग करने वाली डिलीवरी चेन में निकली हैं। लॉजिस्टिक्स सेक्टर में बैक एंड पर काम करने वाली कई कंपनियां सामान को फैक्ट्री से वेयरहाउस और वेयरहाउस से रिटेल मॉल और घरों तक पहुंचा रही हैं।
फैक्ट्रियां लंबे समय तक ज्यादा नौकरियां उपलब्ध नहीं करा सकतीं, लेकिन सप्लाई चेन लंबे समय तक ऐसा कर सकते हैं। फैक्ट्रियों में रोबोट और ऑटोमेटेड मशीनरी का इस्तेमाल होगा। लेकिन चाहे कार हो, या फ्रिज या कोई कस्टमर प्रोडक्ट, डीलरशिप, रिपेयर और सर्विस शॉप्स, कस्टमर सपोर्ट सर्विस ऐसे क्षेत्र हैं जहां नौकरियों के नए अवसर पैदा हो रहे हैं।
आधार यूनिक आइडेंटिटी सिस्टम बनाने वाले इन्फोसिस के पूर्व चेयरमैन, नंदन नीलेकणी का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का भविष्य मैन्युफैक्चरिंग नहीं, बल्कि वह सेवाएं होंगी जिनका जिक्र ऊपर किया जा चुका है। उनके मुताबिक, निर्यात तेजी से नहीं बढ़ पाएगा, इसमें मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि दुनिया संरक्षणवादी होती जा रही है। वह स्थानीय नौकरियों को बचाने के लिए सामान और सेवओं का आयात घटाने को तरजीह दे रहीं हैं। इसका मतलब यह भी है कि भारत को राेजगार-नौकरियों के अवसर उपलब्ध कराने के लिए घरेलू ग्रोथ पर भरोसा करना होगा। नीलेकणी का मानना है कि बड़ी कंपनियां नहीं, बल्कि ओला, उबर, फ्लिपकार्ट, अमेजन, टेलीकॉम नेटवर्क आदि डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़े छोटे बिजनेस रोजगार/नौकरियों के अवसर मुहैया कराएंगे। इस तरह, डिजिटल भारत, आज के भारत से अलग और बेहतर होगा।
- लेखक आर्थिक मामलों के वरिष्ठ पत्रकार,'डीएनए' के एडिटर रह चुके हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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