एक देश, एक टैक्स का सपना अब हकीकत बनने जा रहा है। दशक भर से अधिक के इंतजार के बाद आखिरकार संसद से जीएसटी लागू करने को आवश्यक संविधान संशोधन विधेयक पारित हो गया। अल्पमत के कारण सरकार के लिए सबसे बड़ी अड़चन बनी राज्यसभा ने भी दो-तिहाई ही नहीं बल्कि सर्वसम्मति के साथ इस पर
मुहर लगा दी। सभी जरूरी संशोधन भी सर्वसम्मति से ही पारित हुए। अब इस विधेयक को कानून बनने से पहले कम से कम 15 राज्यों के विधानमंडलों की मंजूरी लेनी होगी। इसके साथ ही पहली अप्रैल 2017 से देश में जीएसटी लागू करने की पहली बाधा सरकार ने पार कर ली है। माहौल कुछ ऐसा बना कि विरोध में खड़े अन्नाद्रमुक ने भी औपचारिक विरोध से बचते हुए वाकआउट कर विधेयक पारित कराने की राह आसान कर दी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। राज्यसभा में इस विधेयक पर करीब आठ घंटे तक चली चर्चा में कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने जीएसटी की अधिकतम दर 18 फीसद रखने की वकालत की ताकि आम जनता की जेब पर अधिक बोझ न पड़े। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चर्चा के जवाब में स्वीकार भी किया टैक्स की दर नीची रहनी चाहिए और केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेगी कि राज्यों के साथ एक उचित दर सहमति बने। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि टैक्स की दर तय करने का काम जीएसटी काउंसिल को करना है जिसमें राज्यों के साथ साथ केंद्र की भी हिस्सेदारी होगी और इस काउंसिल में सभी राज्यों और सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि होंगे लिहाजा कोई आवश्यकता से अधिक ऊंची दर रखकर जनता की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहेगा। जेटली ने आश्वस्त किया कि जीएसटी लागू होने पर महंगाई नहीं बढ़ेगी। उन्होंने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा महंगाई दर का उदाहरण देते हुए कहा कि जिन वस्तुओं और सेवाओं के आधार पर यह महंगाई दर तय होती है उनमें से 54 प्रतिशत पर जीएसटी नहीं लगेगा जबकि 32 प्रतिशत वस्तुओं पर जीएसटी की निम्नतम दर लगेगी। वहीं शेष 15 प्रतिशत पर जीएसटी की स्टेंडर्ड दर लागू होगी। विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्ष इसके स्वरूप को लेकर काफी गहमागहमी रही। विपक्ष ने भविष्य में संसद में आने वाले केंद्रीय जीएसटी और आइजीएसटी विधेयक को मनी बिल के तौर पर न लाने का आश्वासन वित्त मंत्री से मांगा जिसे वित्त मंत्री ने पूर्व में कोई ऐसी परंपरा न होने का हवाला देकर अस्वीकार कर दिया। वित्त मंत्री ने साफ कहा कि जो बिल आज की तारीख में केवल प्रस्तावित ही हैं उनके बारे में अभी यह कैसे कहा जा सकता है कि वे मनी बिल नहीं होंगे। वित्त मंत्री ने अपने जवाब में चर्चा के दौरान उठे तमाम सवालों का जवाब दिया। जेटली ने कहा कि जीएसटी के दायरे में कौन सी वस्तुएं आएंगी और किन्हें जीएसटी से मुक्त रखा जाएगा उसका फैसला भी जीएसटी काउंसिल में चर्चा के बाद ही होगा। काउंसिल में विवाद की स्थिति में दो तिहाई भार राज्यों के पास होगा और एक तिहाई केंद्र के पास रहेगा। साथ ही वोटिंग के वक्त काउंसिल के सदस्यों की कुल संख्या का तीन चौथाई उपस्थित होना आवश्यक होगा। जेटली ने कहा कि यह व्यवस्था इसीलिए बनाई गई है ताकि केंद्र या राज्यों पर मनमानी का आरोप न लगे।
पांच साल तक राजस्व की क्षतिपूर्ति: राज्य सभा में जिन महत्वपूर्ण बदलावों को जीएसटी से संबंधित संविधान संशोधन कानून का हिस्सा बनाया गया है उनमें जीएसटी लागू होने पर राज्यों को होने वाली राजस्व हानि की पांच साल तक भरपाई सुनिश्चित करने को वैधानिक प्रावधान शामिल हैं। इससे पूर्व पहले तीन साल तक शत प्रतिशत भरपाई का प्रस्ताव किया गया था। दूसरे सरकार ने राज्यसभा में रखे विधेयक में मैन्यूफैक्चरिंग करने वाले राज्यों को एक फीसदी अतिरिक्त कर की दर का प्रस्ताव भी वापस ले लिया है। जीएसटी लाने का एलान सबसे पहले साल 2006-07 के आम बजट में हुआ था। उस वक्त इसे पहली अप्रैल 2010 से लागू करने का लक्ष्य तय हुआ था। सरकार ने फिलहाल इसे एक अप्रैल 2017 से लागू करने का लक्ष्य रखा है।
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साभार: भास्कर समाचार
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