Thursday, May 12, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: कुछ अज्ञात सफलताएं देती हैं जीवन के सबक

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
जानी-पहचानी सफलता: बुधवार को पूरा देश यह जानकर उल्लासित था कि नई दिल्ली की 21 साल की टीना डाबी ने सिविल सर्विसेस एक्जाम (सीएसई) 2015 में टॉप किया है। वह भी पहले ही प्रयास में। आईएएस, आईपीएस और आईएफएस जैसी उत्कृष्ट सरकारी सेवाओं में नियुक्ति के लिए आयोजित सीएसई के परिणामों
में दूसरा स्थान जम्मू-कश्मीर मूल के अतहर आमिर उल शफी खान को मिला, जबकि तीसरा स्थान दिल्ली के जसमीत सिंह संधु को। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। संभवत: टीना सिविल सर्विसेस में टॉप करने वाले सबसे कम उम्र के प्रत्याशियों में से हैं और साथ ही लगातार दूसरे साल दिल्ली से टॉप करने वाली लड़की हैं। पिछले साल ईरा त्रिवेदी ने टॉप किया था। 
अल्पज्ञात सफलता: पश्चिम बंगाल में किराना दुकान व्यापारी की 29 साल की उस बेटी को यह बताते हुए गर्व होता है कि कैसे माता-पिता ने गरीबी के बावजूद उन्हें पढ़ाई की बेहतर से बेहतर सुविधाएं दीं। सिविल सर्विसेस एक्जाम में 19वां स्थान लाकर उसने आईएएस अधिकारी बनने का अपना सपना पूरा किया है। श्वेता अग्रवाल ने पिछले साल आईपीएस के लिए क्वालिफाई किया था और फिलहाल हैदराबाद की नेशनल पुलिस अकादमी में ट्रेनिंग ले रही हैं। वहीं उन्हें यह खबर मिली। यह दोहरी खुशी और दुविधा वाला दिन था। बंगाल से इतने वर्षों में इस परीक्षा में शामिल प्रत्याशियों में उनकी रेंक सबसे ऊपर है। भयावह गरीबी के बावजूद माता-पिता ने श्रेष्ठ संभव शिक्षा सुविधा दी। श्वेता ने कोलकाता के सेंट जोसेफ स्कूल, ऑक्ज़ीलियम कॉन्वेंट और सेंट जेवियर्स कॉलेज में पढ़ाई की और पूरी यूनिवर्सिटी में प्रथम रहीं। माता-पिता हिन्दी मीडियम स्कूल में पढ़े, लेकिन सुनिश्चित किया कि बेटी अंग्रेजी सीखे। और अपने क्षेत्र से वे पहली आईएएस अधिकारी हैं। माता-पिता ने कभी अपनी इकलौती संतान की बहुत जल्दी शादी करने की नहीं सोची। 
अज्ञात सफलता: हर महीने के पहले रविवार को बेंगलुरू के बसावानगर के टाटा शेरवुड अपार्टमेंट के बच्चे 400 घरों से अखबार इकट्‌ठा करते हैं। कई लोगों के लिए यह कोई नया आइडिया नहीं है। रद्‌दी के इस ढेर को बेचकर पैसा बना लेना भी कोई नई बात नहीं है, लेकिन नई बात यह है कि यह राशि कॉलोनी में काम करने वाली 150 मेड, ड्राइवरों और अन्य सेवाएं देने वालों के बच्चों के स्कूल की फीस भरने, किताबें खरीदने और पत्र-पत्रिकाएं खरीदने पर खर्च की जाती है। इसका असर यह है कि पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की संख्या शून्य हो गई है। इस विचार पर तीन साल पहले अमल शुरू हुआ था, लेकिन फिर भी पढ़ाई में बच्चों का प्रदर्शन अच्छा नहीं हो रहा था, इसलिए लोगों ने अब एक कदम और बढ़ाया है। अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स के स्वयंसेवी इन बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने के लिए रोजाना क्लासेस चला रहे हैं। इस कार्यक्रम को नाम दिया गया है एसईई और आईटी, एचआर, मार्केटिंग पृष्ठभूमि के स्वयंसेवी कक्षा 6 से 10 तक के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। 
इसे शुरू करने का विचार 2014 में आया था। एक घर में काम करने वाला कुक अचानक बीमार पड़ गया और उसकी सर्जरी के लिए 5 लाख रुपए की जरूरत थी। सिर्फ 96 घंटों में ही रहवासियों ने यह रुपए जुटा लिए, लेकिन बाद में जब अस्पताल को उनके इस अच्छे काम का पता चला तो वहां से भी रियायत मिल गई। और इस तरह उनके पास काफी राशि बच गई। इस बचे हुए पैसे को वापस लोगों में बांट देने की बजाय सदस्यों ने इस योजना पर काम शुरू किया। इसे हमेशा जारी रखने के लिए अखबारों की रद्‌दी का विचार बाद में सामने आया। पिछले साल जुलाई में रहवासियों ने टाटा शेरवुड क्लब हाउस में हर रविवार को दो घंटे की क्लास शुरू करने का फैसला किया। धीरे-धीरे यह क्लास नियमित हो गई। पहले तो स्वयंसेवी अंग्रेजी और गणित पढ़ाते थे, लेकिन अब इसमें विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के विषय भी जुड़ गए हैं। इस साल इसका परिणाम यह हुआ कि कोई भी फेल नहीं हुआ। उन लोगों में बच्चों का फेल होना 90 प्रतिशत अंक पाने के ही समान है। 
फंडा यह है कि सभी सफलताएं शानदार होती हैं, लेकिन ऐसी कुछ अज्ञात सफलताएं शानदार सबक दे जाती हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.