Thursday, May 19, 2016

बात क़ानून की: कार्यस्थल पर महिलाओं के उत्पीड़न पर क्या है दण्ड के प्रावधान

वंदना शाह (अधिवक्ता,फैमिली कोर्ट, हाईकोर्ट, मुंबई)
दफ्तरों में महिलाओं के साथ प्रताड़ना की कई शिकायतें इन दिनों सामने रही हैं। हाल ही में डॉ आर.के. पचौरी के खिलाफ भी इस तरह की शिकायतों के बाद आरोप-पत्र दाखिल किया गया है। इसके लिए लंबे समय से महिला
समूह लगे थे, लेकिन 2013 में जाकर इस तरह की प्रताड़ना के खिलाफ कानून बन सका- 
हाल ही में डॉ. आर. के पचौरी का मामला सामने आया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उन पर गंभीर आरोप उनके साथ काम करने वाली पूर्व सहयोगियों ने लगाए हैं, जो उत्पीड़न के हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हो चुके पचौरी के खिलाफ इस तरह की शिकायतों का अंबार लग गया और अब आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है। 
काम के दौरान यदि किसी महिला के साथ किसी भी तरह की प्रताड़ना या उत्पीड़न होता है तो उसके लिए हमारे देश में कानून है, जिसे कार्यस्थल पर यौन प्रताड़ना (संरक्षण, निषेध और निवारण) कानून 2013 कहा जाता है। इसी कानून की धारा 2 की उपधारा एन में यह स्पष्ट है कि किन हालातों में महिलाओं को शिकायत करनी चाहिए- 
  • कोई यदि शारीरिक संपर्क करे या संपर्क करने के िए आगे बढ़े 
  • संबंध बनाने की मांग करे या फिर उसके लिए गुहार करे
  • भद्‌दी टिप्पणियां करे
  • कुछ अश्लील साहित्य अथवा कोई अन्य सामग्री दिखाने की कोशिश करे
  • कोई ऐसा शारीरिक, शाब्दिक या संकेतों में पहल करे, जो महिला को मान्य नहीं हो 
यह जानना जरूरी है कि इस तरह की कोई भी हरकत प्रताड़ना के दर्जे में आती है या फिर इस तरह का कोई भी कार्य जो महिला की आबरू की सुरक्षा के लिए खतरा हो, वह इस तरह का उत्पीड़न कहलाता है। इस तरह की हरकत को लेकर पीड़ित के मस्तिष्क में यह भी आशंका रहती है कि यदि वह सामने वाले की इस पहल का विरोध करती है या फिर उसकी शिकायत करती है तो उसकी नौकरी खतरे में पड़ सकती है। यह कानून राजस्थान सरकार और भारत सरकार के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका के बाद बना है। यह याचिका इसलिए दाखिल की गई थी ताकि कामकाजी महिलाओं के मौलिक अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 में शामिल किए जा सके। यह मामला राजस्थान की भंवरीदेवी का था। यह याचिका बाद में विशाखा गाइडलाइन के रूप में मशहूर हुई। 
1997 में जस्टिस वर्मा, सुजाता मनोहर और बी.एन. कृपाल की खंडपीठ ने कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाली प्रताड़ना पर दिशा-निर्देश जारी किए थे। यह महिलाओं के समूहों के लिए कानूनी जीत थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रस्तावित दिशा-निर्देशों के कारण 1997 में इस तरह की प्रताड़ना की समस्या को उभारा गया और 2013 में इस पर कानून बन गया। कानूनन यह जिम्मेदारी नियोक्ता की होती है कि वह अपने यहां के लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखे। कानून यह भी सुनिश्चित करता है कि इस संबंध में सुरक्षात्मक कदम उठाकर ऐसे मामलों को कंपनी के स्तर पर भी हल करने का प्रयास किया जाए। अधिकांश कंपनियों ने कानून द्वारा आंतरिक शिकायत समिति के नियम का अनुपालन किया है। इसमें कुछ बातों का पालन जरूरी है, जिनमें ये प्रमुख हैं- 

  • प्रत्येक नियोक्ता आंतरिक शिकायत समिति बनाएगा। 
  • इसमें एक प्रीसाइडिंग अफसर कोई वरिष्ठ महिला कर्मचारी होगी। 
  • यदि कोई वरिष्ठ महिला नहीं है तो किसी अन्य दफ्तर की महिला को लिया जा सकता है। 
  • इस समिति में प्रीसाइडिंग अफसर और अन्य सदस्यों की अवधि मनोनीत होने के बाद तीन साल तक की होगी। 
जहां तक दंड की बात है तो यह केवल वित्तीय नहीं होगा। आईपीसी की धाराओं के तहत मुकदमा चलेगा। दंड के रूप में सामाजिक रूप से बहिष्कृत किए जाने का भी प्रावधान है। भले ही डॉ. पचौरी ने देश के लिए उल्लेखनीय कार्य किए हो, लेकिन उन्हें पद से हटाया गया और उनकी बेइज्जती हुई। देश में बन रहे नए कानूनों में यह कानून अच्छा उदाहरण है। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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