एन रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
महीनों पहले महाराष्ट्र के सोलापुर की अक्कलकोट तहसील के बावकारवाड़ी गांव में किराना दुकान चलाने वाले 40 साल के बाबासाहब माने के साथ एक नई समस्या हो गई। उनके तीनों बेटे अक्सर बीमार रहने लगे, जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। वे जो भी खाते, उल्टी कर देते और रात के समय तेज बुखार जाता। माने सहित
गांव के कई लोग एक स्थानीय डॉक्टर केजी उटागे के पास पहुंचने लगे, लेकिन डिस्पेंसरी के सामने 20 से ज्यादा परिवारों के करीब-करीब सभी सदस्य कतार में खड़े थे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। ऐसा तो गांव में बरसों में देखा नहीं गया था। बावकारवाड़ी अक्कलकोट उप-जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर की दूरी पर है और सोलापुर जिला मुख्यालय से यह 55 किलोमीटर दूर है। पास में चपलगांव नाम का गांव है। दोनों गांवों का भूभाग मिलाकर 500 हेक्टेयर से ज्यादा नहीं है। दोनों गांव में 200 से ज्यादा घर नहीं है और आबादी 700 से 800 के बीच होगी।
पानी के लिए सभी लोग गांव के कुओं पर निर्भर हैं। कुओं की संख्या भी कम नहीं है। नज़दीक के ही कुरनूर बांध के कारण कुछ साल पहले तक यहां पानी की कोई कमी थी भी नहीं, लेकिन लगातार तीन साल से मानसून खराब रहने के कारण छह महीने पहले यहां के कूप पूरी तरह सूख गए। फिर लोगों के लिए बांध का पानी लाया गया, लेकिन माने जैसे परिवारों के लिए यह कटू अनुभव साबित हुआ। ये लोग पहले की तुलना में ज्यादा बीमार रहने लगे। जल स्तर घटने से स्थानीय लोगों को गंदा, दलदली पानी पीने पर मजबूर होना पड़ा। इसका सीधा असर यह हुआ कि टाइफाइड, उल्टी, पेचिश और हैजे के मामलों में जबरदस्त वृद्धि हुई। इन बीमारियों का ज्यादा असर बच्चों या गर्भवती महिलाओं पर हुआ।
बांध का गंदा पानी इस्तेमाल करने से हो रही बीमारियों का पता चलने के बाद गांव वालों के सामने और भी बड़ी समस्या गई। वे यह भी जानते थे कि उनके पास बांध के पानी को स्वच्छ करने के संसाधन नहीं थे, इसलिए उन्होंने पानी को स्वच्छ बनाने की कोशिशें शुरू कीं। उन्होंने अपना खुद का वाटर एटीएम बनाया और लगाया। इस कन्सेप्ट को उन्होंने गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र के ही कुछ स्थानों पर देखकर कॉपी किया। इसकी लागत है 12 लाख रुपए। उन्होंने तीन महीने के भीतर यह प्रोजेक्ट पूरा कर इसे अमल में ला दिया। वाटर फिल्टर एटीएम हर घंटे 5000 लीटर पानी स्वच्छ कर सकता है।
अब सीधे मई 2016 में जाते हैं। गांव का एक व्यक्ति स्कूटर के दोनों ओर 20 लीटर की दो खाली केन लटकाता है और 5 लाख रुपए की लागत से बने वाटर एटीएम पर पानी लेने जाता है। वह अपना एटीएम कार्ड इलेक्ट्रॉनिक रीडर के सामने प्रेस करता है, बेलेंस सामने आता है। ग्रामीण के चेहरे पर मुस्कान जाती है। वह 18 लीटर के लिए बटन दबाता है। मशीन उसके खाते से 6 रुपए काट लेती है और इस तरह दो मिनट में वह पीने का पानी लेकर चला जाता है। चार लोगों के परिवार के लिए 18 से 20 लीटर पानी की केन पीने और खाना बनाने के लिए पर्याप्त होती है। कुछ रिक्शा रोज यहां आते हैं और चपलगांव की ट्रिप लगाते हैं। ये लोग ट्रेवल खर्च जोड़कर पानी की केन वहां बेच देते हैं। गांव वालों ने अपनी क्षमता के अनुसार 12 लाख रुपए के इस पूरे प्रोजेक्ट में योगदान दिया है। इसमें 7 लाख रुपए का फिल्ट्रेशन प्लांट है, जिसमें दो पॉलीगैस प्रेशर सिलेंडर और कूलिंग टैंक आदि शामिल हैं। गांव वालों की सक्रियता से उठाए गए इस कदम के कारण उनका दवाओं और इलाज का खर्च बच गया, जो उन्हें गंदे पानी से हो रही बीमारियों पर करना पड़ रहा था।
फंडायह है कि कभीभी अस्थायी हल की ओर मत जाइए। बेहतर है कि तुरंत सक्रियता दिखाई जाए और ऐसा कदम उठाएं जो भविष्य में होने वाली समस्याओं को स्थायी रूप से हल कर दे। ऐसा ही इन दो गांवों में भी हुआ, जहां शिक्षित लोगों का प्रतिशत कई बड़े शहरों और कस्बों से काफी कम है।
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साभार: भास्कर समाचार
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