पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुड्डुचेरी विधानसभा चुनाव के लिए बिगुल बज गया है। राज्यों में लीक से हटकर बन रहे समीकरणों और गठबंधनों की परीक्षा की शुरुआत तो अगले महीने की चार तारीख से शुरू हो जाएगी लेकिन कौन कितने पानी में इसका फैसला 19 मई को होगा। सभी राज्यों के नतीजे इकट्ठा
इसी दिन आएंगे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। शुक्रवार को चुनाव आयोग ने राज्य राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम घोषित कर दिए। 294 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में चार अप्रैल से शुरू होकर सात चरणों में मतदान होंगे तो पड़ोसी राज्य असम में दो चरणों में। इंडो-बांग्लादेश समझौते के बाद भारतीय सीमा में आए इलाकों में आखिरी चरण में मतदान पांच मई को होगा। बाकी तीनों राज्यों में एक साथ 16 मई को एक ही चरण में मतदान होगा। आयोग की पूरी तैयारी में इस बार कुछ खास बदलाव भी दिखेगा। मसलन नोटा (किसी को वोट नहीं) का चिन्ह सरल किया गया है। मतदान से पहले सभी राजनीतिक दलों के एजेंटों के सामने मॉक पोल की प्रक्रिया को थोड़ा विस्तृत किया जाएगा। जबकि इन राज्यों के 14 हजार से कुछ ज्यादा मतकेंद्रों में वीवीपैट (वोटिंग के बाद मशीन से स्लिप) की व्यवस्था होगी। दरअसल कुछ दलों की ओर से लगातार यह आशंका जताई जाती रही है कि मशीन से छेड़छाड़ होती है और इसीलिए कई मामलों में चिन्ह किसी और का होता है लेकिन वोट किसी और को पड़ता है। आयोग इसका पूरा विस्तार करना चाहता है। आयोग की ओर से यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सुरक्षा व्यवस्था अभूतपूर्व होगी। व्यवस्थित और सुरक्षित इंतजाम के लिहाज से ही हर राज्य में मतकेंद्रों की संख्या भी काफी बढ़ाई गई है। खासतौर पर पश्चिम बंगाल और असम को लेकर सतर्कता बरती जा रही है। भाजपा की ओर से भी आयोग से आग्रह किया गया है कि पश्चिम बंगाल में मतकेंद्र के आसपास की पूरी सुरक्षा अर्धसैनिक बलों के हाथ रहनी चाहिए। ध्यान रहे कि अकेले पश्चिम बंगाल में 77 हजार से ज्यादा मतकेंद्र होंगे। चुनाव आयोग की पूरी तैयारियों के बीच माना जा रहा है इस बार इन राज्यों के चुनाव काफी हद तक अलग होंगे। राजनीतिक दलों के रुख ने पहले ही इसका संकेत दे दिया है। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में जहां क्षेत्रीय दल को टक्कर देने के लिए कांग्रेस और वाम जैसे राष्ट्रीय दलों ने परोक्ष रूप से हाथ मिलाने का ऐतिहासिक फैसला ले लिया है। वहीं असम में पहली बार भाजपा ने एजीपी और दूसरे छोटे जनजातीय दलों को अपने साथ इकट्ठा कर पहली बार गंभीर चुनौती देने की तैयारी कर ली है। सूत्रों की मानी जाए तो अंदरूनी राजनीति कुछ इस कदर बदल रही है कि अल्पसंख्यकों पर पैठ रखने वाली एआइयूडीएफ को कुछ ज्यादा पसीना बहाना पड़ रहा है। ध्यान रहे कि घुसपैठ से जूझते असम की चुनावी राजनीति में कांग्रेस भी हंिदूुत्व के नरमपंथी एजेंडे पर चलती रही है। तीन साल पहले ही अलग हुई कांग्रेस और द्रमुक ने तमिलनाडु में फिर से हाथ मिला लिया है। जबकि भाजपा ने छोटे दलों का गठबंधन बनाया है। खास बात यह है कि धुरी बनते हुए नेतृत्व दूसरे के हाथ देने की तैयारी है। जबकि सत्ताधारी अन्नाद्रमुक के लिए अच्छा होगा अगर चुनाव बहुकोणीय हो। पश्चिम बंगाल में एक दूसरे के साथ परोक्ष रूप से हाथ मिलाकर चलने वाली कांग्रेस और वाम दल केरल में आमने-सामने होंगे तो भाजपा को इसी बहाने दोनों पर उंगली उठाने का मौका होगा।
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साभार: जागरण समाचार
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