पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जज परमजीत सिंह ने सीडीएलयू में
प्राध्यापकों के बीच हुए विवाद की सीबीआई जांच के आदेश दिए है। हाइकोर्ट ने
मामले को काफी गंभीर बताया है। जांच एजेंसी को 6 जुलाई तक बंद लिफाफे में
अपनी रिपोर्ट देने को
कहा है। दरअसल सीडीएलयू में कुछ प्राध्यापकों के बीच झगड़ा हुआ था।
शिक्षकों ने एक दूसरे पर संबंधित पुलिस चौकी में भी मामला दर्ज है। सिरसा
के एसपी
को भी शिकायत दिया जा चुकाहैं। फिलहाल यह मामला सिरसा कोर्ट में चल
रहा है। जिसमें प्रोफेसर राजेश मलिक व डॉ. मुकेश गर्ग ने एक दूसरे के
खिलाफ मारपीट का आरोप लगाया हुआ है। डॉ. मुकेश गर्ग की शिकायत पर तीन
प्राध्यापकों पर मामला दर्ज हुआ। दूसरे पक्ष ने पुलिस पर कार्रवाई न करने
का आरोप लगाया और अदालत में याचिका दायर कर दी। इस याचिका पर सिरसा कोर्ट
ने डॉ. मुकेश गर्ग पक्ष को पेश होने के आदेश दिए । जिसके बाद डॉ. मुकेश
गर्ग ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
ये लगाया गया था आरोप: मुकेश गर्ग
ने हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल करते हुए अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को खारिज
करने की मांग की हुई है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि विधि विभाग के छात्र
रोहित बोरा ने कुछ प्राध्यापकों से संबंधित आरटीआई के तहत सूचना मांगी थी।
इसके लिए विधि विभाग के चेंबर में बैठक बुलाई गई थी। जिसमें प्राध्यापकों
ने उनपर आरोप लगाते हुए कहा कि यह आरटीआई उनके इशारे में लगाई गई है। इसी
बात को लेकर एक प्राध्यापक ने उनपर कुर्सी मार दी। साथ ही उन्होंने कोर्ट
को बताया कि 14 अगस्त 2014 को वह सीडीएलयू प्रागंण में सैर कर रहा था तो
कुछ प्राध्यापकों ने परिसर के अंदर उनके साथ मारपीट की गई।यह मानना होगा कि
शिकायतें और मुकदमें दोनों पार्टी के बीच में लंबित हैं। यह सारी
कारगुजारी यूनिवर्सिटी कैंपस में हुई है। यूनिवर्सिटी प्राध्यापको से यह
अपेक्षा की जाती है कि उन्होंने व्यवसायिक कार्यकुशलता हासिल कर ली है।
जिससे की वह अपना बहुत बढ़ियां व्यवसायिक चरित्र प्रदर्शित कर सके।
प्राध्यापकों से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने चालचलन का नेक स्तर बनाए
रखें। वह सहयोगी, ज्ञानवान और एक सुलझा हुआ इंसान होना चाहिए। क्योंकि उनके
पास विद्यार्थी सबकुछ सीखने के लिए जाते हैं और अपना चरित्र निर्माण के
लिए जाते हैं ताकि वह समाज की बेहतर ढंग से सेवा कर सके। इस काम के लिए एक
अध्यापक बाध्य होता है। यहां यह भी लिखने योग्य है कि विधि विभाग जो इस
यूनिवर्सिटी मे चल रहा है उसमें बारहवीं पास किशोर दाखिला लेते हैं ऐसे ही
छात्रों ने अपने अध्यापकों के खिलाफ शिकायतें लिखी है जो मुङो निजी सुनवाई
के दौरान वादी-प्रतिवादी ने दिखाई है। इनमें बड़े गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
अध्यापक से कम से कम यह तो अपेक्षा की ही जाती है कि उनकी इमानदारी उनकी
प्रतिष्ठा व बच्चों के साथ व्यवहार अच्छा होना चाहिए ताकि कोई विद्यार्थी
आपने आप को शारीरिक,समाजिक और पारंपरिक तौर पर सुरक्षित व सुखद महसूस कर
सके। प्राध्यापकों की लड़ाई को देखते हुए यह अदालत इस नतीजे पर पहुंचती है
कि इन अध्यापकों को व अन्य को सही किया जाना चाहिए। इस अदालत की केवल यहीं
चिंता नहीं है कि वादी प्रतिवादियों द्वारा डाली गई याचिकाओं का समाधान
किया जाए परंतु अदालत की यह भी जिम्मेवारी बनती है कि यूनिवर्सिटी में
सुशासन हो।
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साभार: जागरण समाचार
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