Saturday, August 12, 2017

अवश्य पढ़ें: अच्छाई बड़ी हो तो पोस्टल एड्रेस छोटा हो जाता है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु) 
जो बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, आम तौर पर गरीब पृष्ठभूमि के परिवारों से आते हैं और उनके लिए घर में या बाहर एकेडमिक सामग्री के अलावा किताबें नहीं होती। उनके लिए निश्चित रूप से लाइब्रेरी ही ज्ञान और
रचनात्मकता तक पहुंचने की खिड़की होती है। हाल ही में अपनी दिल्ली की यात्रा के दौरान मैं एनजीओ प्रथम के एक स्वयंसेवक से मिला। एनजीओ दिल्ली के 200 सरकारी स्कूलों में लाइब्रेरी चलाता है और हर लाइब्रेरी में 200 से 300 किताबें हैं। 2003 में शुरुआत करने के बाद पिछले 14 साल से वह इन्हें चला रहा है, लेकिन अब चाहता है कि ये अपने स्तर पर चले। इनसे करीब 50 हजार बच्चों को फायदा हो रहा है। उस समय महाराष्ट्र के पुणे में प्रदीप लोखंडे का काम चर्चा में आया। वे कई ग्रामीण पुस्तकालय चलाते हैं। प्रदीप रुरल रिलेशंस के फाउंडर हैं और यह ग्रामीण भारत के छात्रों के लिए क्रांतिकारी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। प्रदीप महाराष्ट्र के सतारा जिले के वाई गांव से हैं। वे कॉमर्स ग्रेजुएट हैं और मार्केटिंग में डिप्लोमा किया है। जॉन्सन एंड जॉन्सन जैसी कंपनियों में काम कर चुके हैं। मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के कई गांवों में काम के सिलसिले में घूम चुके हैं। काम के दौरान उन्होंने और उनकी टीम ने कई तरह के डेटा जुटाए। जैसे दुकानों की संख्या, क्या बिक रहा है, कितने टेलीविजन सेट हैं, गांव में इंटरनेट कनेक्टिविटी है या नहीं आदी। ताकि पता चले कि ग्राहकों का व्यवहार क्या है और बाजार में क्या खरीदा जाता है। इससे उनका विश्वास बना कि गांव के लोगों का ज्ञान बढ़ाने के लिए कुछ करना चाहिए और उन्होंने 'ज्ञान-की इनिशिएटिव' के तहत गांवों में सेकंडरी स्कूलों में लाइब्रेरी बनवाना शुरू किया। 2001 में इसकी शुरूआत हुई। यह एक विशेष तरह की लाइब्रेरी है। हर लाइब्रेरी एक छात्रा मैनेज करती है, जिसे ज्ञान-की मॉनीटर कहा जाता है। 2001 से ही उन्हें लोगों और कंपनियों की ओर से इस्तेमाल किए हुए कंप्यूटर मिलने लगे थे और उन्हें गांव के स्कूलों में बुलाया जाने लगा। 2009 तक महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, अांध्रप्रदेश और कर्नाटक के 20 हजार गावों में 28 हजार डोनेटेड कंप्यूटर लगाए गए। अब वे या तो नए कंम्यूटर खरीद रहे हैं या आईटी कंपनियों से पुरानेे कंप्यूटर हासिल कर रहे हैं। 
आज तक ग्रामीण सेंकडरी स्कूलों में 3600 ज्ञान की लाइब्रेरी स्थापित की जा चुकी हैं। वह भी 1390 कार्यशील दिनों में। इनसे 8.5 लाख बच्चों को फायदा हो रहा है। हर लाइब्रेरी में कई विषयों की 180 से 200 तक किताबें हैं। करीब 6,25,000 किताबें इन लाइब्रेरियों को दी गई हैं। इनकी कीमत है करीब 1.56 करोड़ रुपए। इन पुस्तकालयों में मैनेजमेंट, डिजास्टर मैनेजमेंट, फिजिकल ट्रेनिंग, भारतीय संविधान, नाटक, संगीत, सामाजिक और यहां तक कि सेक्स एजुकेशन की किताबें भी हैं। लोखंडे को नियमित रूप से आईआईएम और दुनिया भर के अन्य मैनेजमेंट स्कूलों से प्रेक्टिकल मार्केटिंग स्ट्रेटजी पर बात करने के लिए बुलाया जाता है। 
लाइब्रेरी स्थापित करने के लिए डोनर को 6,700 रुपए का एक चैक पब्लिशर के नाम लिखना होता है, जो सीधे किताबें पहुंचा देता है। और छात्रों को प्रदीप की टीम ट्रेनिंग देती है। छात्र किताब पढ़ सकते हैं और फिर सीधे डोनर को या उन्हें पोस्टकार्ड लिखते हैं। जब मैंने 54 साल के इस आंत्रप्रेन्योर से संपर्क करने के बारे में पूछा तो मुझे बताया गया कि मैं भी उन्हें एक सिंपल पोस्टकार्ड लिख सकता हूं, जिस पर पता लिखना होगा- प्रदीप लोखंडे, पुणे-13, यह उन तक पहुंच जाएगा। 

फंडा यह है कि जब सामाजिक कामों में योगदान बढ़ जाता है तो पोस्टल एड्रेस छोटा हो जाता है। इससे आपके काम का महत्व पता चलता है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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