Friday, May 19, 2017

कानून के तहत नहीं आता तीन तलाक कानून ही इसका उपाय - चीफ जस्टिस; पढ़िए छठे दिन की पूरी बहस

तीन तलाक की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई पूरी कर ली। इस दौरान चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा, 'तीन तलाक किसी भी कानूनी विधान के तहत नहीं आता है। इसे कानून के जरिये निपटाना
ही एकमात्र उपाय है।' चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। तीन तलाक समर्थकों की दलीलों पर कोर्ट ने दो टूक कहा, 'अल्लाह और आपके धर्मग्रंथ तीन तलाक को पाप मानते हैं। ऐसे में इसे आस्था का रंग नहीं दे सकते। आस्था का विषय क्या है और क्या नहीं, यह कोर्ट तय करेगा।'  
सुनवाई के छठे और अंतिम दिन सुप्रीम कोर्ट में हुई बहस पढ़िए लाइव:
सिब्बल बोले- महिलाएं भी हैं तीन तलाक के समर्थन में
तभी महिलाएं चिल्लाईं- हम समर्थन में नहीं 
बहस की शुरुआत मुख्य याचिकाकर्ता शायरा के वकील अमित चड्‌ढा ने की। 
अमितचड्‌ढा: पर्सनललॉ बोर्ड तीन तलाक को आस्था बताता है। जिस चीज में खुदा की मर्जी नहीं, वह पाप है। इस्लाम की कोई भी विचारधारा इसे मान्यता नहीं देती। 
जस्टिसकुरियन जोसेफ: हां,3 तलाक अनचाही प्रथा है। 
अमितचड्‌ढा: अबसुप्रीम कोर्ट से उम्मीद है। सदियां बीत गईं, मगर किसी ने कुछ नहीं किया। आप ही कुछ कीजिए। इस्लाम महिला-पुरुष में अंतर नहीं करता। तीन तलाक करता है। यह इस्लाम का मूल हिस्सा नहीं है।
जस्टिसआरएफ नरीमन: तीनतलाक धर्म का हिस्सा नहीं है। ही धर्म का कोई अभिन्न अंग है। 
शायराबानो: कोईकहता है कि संसद से कानून बनवाने की मांग करो। मुझे इंसाफ कैसे मिलेगा? 
जस्टिसनरीमन: शरीयतकानून 1937 का मकसद शरीयत कानून को मान्यता देना और लागू करना था। 
चीफजस्टिस जेएस खेहर: हमेंविधान के अनुसार ही काम करना चाहिए। तीन तलाक किसी कानूनी विधान के तहत नहीं है। ऐसे में हमारे पास एकमात्र उपाय यही है कि इसे कानून के जरिए निपटाएं।
जस्टिसनरीमन: तीन तलाक में दो प्रक्रियाएं हैं। एक रीति-रिवाज और दूसरा मान्यताएं। जब हम कानून का प्रयोग करते हैं, तभी कानून का प्रयोग होता है। यही कानून की सही परिभाषा है। 
चंद्रा राजन (मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड): तीन तलाक का मामला अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक नहीं है। यह मुस्लिम समुदाय की आपसी लड़ाई है। यह धर्म से जुड़ा नहीं, बल्कि सिविल अधिकारों का मामला है। बहुत से तीन तलाक विवादित रहे हैं। 
चीफ जस्टिस: हम इससे सहमत हैं कि बहुत से तीन तलाक के मामले विवादित रहे हैं। अपनी दलीलें लिखित में दायर कर दें। 
सलमान खुर्शीद: निकाह भी स्पेशल मैरिज एक्ट की तरह पंजीकृत करवाया जा सकता है। 
जस्टिस जोसेफ: ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड क्यों गठित किया गया? 
सलमान खुर्शीद: महिलाओं को न्याय नहीं मिल रहा था। इस्लाम पहला धर्म है, जिसमें महिला एवं पुरुषों को बराबरी का हक है। 
चीफ जस्टिस: लेकिन तीन तलाक तो एकतरफा है। इसे वापस भी नहीं ले सकते। मैं आपकी दलील से सहमत नहीं हूं। आपका सिस्टम खुद इसे पाप बता रहा है। 1400 साल में दुनिया बहुत बदल गई, मगर यह नहीं बदला। (कपिल सिब्बल की तरफ इशारा करते हुए) मिस्टर खुर्शीद, आपके मित्र ने कहा है कि अगर समान कानून की बात हुई तो सभी पर्सनल लॉ खत्म हो जाएंगे। 
सलमान खुर्शीद: फिर भी यह मामला मुस्लिमों की आस्था से जुड़ा है। 
जस्टिस जोसेफ: आस्था का विषय क्या है, यह कोर्ट तय करेगा। ऐसा कोई कानून है, जिसे ईश्वर बुरा मानता हो। आपके धर्म ग्रंथ तक तीन तलाक को पाप मानते हैं। इसे आस्था का रंग नहीं दे सकते। आस्था क्या है और क्या नहीं? यह कोर्ट तय करेगा। 
आरिफ (याचिकाकर्ताओं के वकील): इस्लाम में पैगंबर के बाद राजशाही प्रणाली शुरू हो गई। उनके बाद जो कुछ लिखा गया, उसमें काफी बदलाव है। 
जस्टिस जोसेफ: इस मामले में अल्लाह का क्या कहना है? 
आरिफ: कुरान और पैगम्बर के सिद्धांत मानने चाहिए। इनका तीन तलाक पर भरोसा नहीं था। उनके इंतकाल के सालों के बाद हजरत हनीफी आए। उन्होंने तीन तलाक को सही बताया। पर्सनल लॉ बोर्ड हनीफी की मान्यताओं पर आधारित है। इसे पर्सनल लॉ बोर्ड नहीं, हनीफी पर्सनल बोर्ड कहें तो उचित होगा। 
पर्सनल लॉ बोर्ड सिर्फ हनीफी की मान्यताएं मानताहै। इसके अलावा हनबली, शफी और मलिकी भी हैं। इनकी मान्यताएं दरकिनार कर दी गई हैं। 1939 का कानून भी हनीफी एक्ट ही है। ऐसे कानून पर कैसे भरोसा करेंगे जो कहता है कि पति तलाक दे दे तो आप 96 साल तक दूसरा विवाह नहीं कर सकतीं। यह कानून पंजाब की महिलाओं पर लागू हुआ था। इसकी वजह से वहां बहुत सी मुस्लिम महिलाओं ने धर्म बदल लिया था। 
कपिल सिब्बल: तीन तलाक को लेकर अगर कोई कानून नहीं है तो सरकार कानून लाए। लेकिन इसमें कोर्ट दखल दे। केंद्र सरकार सोशल रिफॉर्म के लिए कानून बनाए। तीन तलाक की प्रथा 1400 साल से है। सभी मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के समर्थन में हैं। 
इस पर कोर्ट में मौजूद सभी मुस्लिम महिलाएं एक साथ चिल्ला उठीं- नहीं, हम तीन तलाक का समर्थन नहीं करती हैं। 
जस्टिस जोसेफ: इस पर कोई विवाद नहीं कि तीन तलाक पाप है। जो पाप है वह जायज कैसे हो सकता है? तीन तलाक एक प्रथा है। यह कानून नहीं हो सकता। अभी हम कुछ नहीं कह सकते, क्योंकि यह मामला खतरनाक मोड़ पर है। 
कपिल सिब्बल: कोर्ट के सुझाव पर हम आधुनिक निकाहनामा बना रहे हैं। कोर्ट कानूनी दखल दे। 
फरहा फैज: काजियों और मौलवियों को कौन जज रोकेगा? उनकी निगरानी कौन करेगा? देशभर के मौलवी और काजी अपनी दुकानें बचाने के लिए तीन तलाक का विरोध कर रहे हैं। यह बंद हुआ तो मौलवियों की दुकानें बंद हो जाएंगी। उनके पास तलाक के अलावा बेचने को कुछ नहीं है। 
यह दलील सुनने के बाद कोर्ट ने सुनवाई पूरी होने की घोषणा करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया। 
तीन तलाक मामले के अंत में अधिवक्ता फरहा फैज ने तीन तलाक के विरोध में अपनी दलीलें देते हुए कहा कि अगर कोर्ट ने तीन तलाक को बंद कर दिया तो देश के सभी मौलवियों की दुकानें बंद हो जाएंगे, क्योंकि मौलवियों के पास तलाक को बेचने के अलावा कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि तलाक का नया कानून कुरान के अनुसार बनना चाहिए कि पर्सनल लॉ, सियासी लोगों और आधे पढ़े-लिखे लोगों के अनुसार। सुबह साढ़े 10 बजे से शुरू होकर सुनवाई दोपहर 2 बजे तक चली। इस दौरान जजों और पक्षकारों के बीच जमकर संवाद भी हुआ।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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