Thursday, November 3, 2016

पूरब हो या पश्चिम, आला दिमाग हर जगह होते हैं: बात सिर्फ पहचानने की है

स्टोरी 1: किसीभी स्कूली बच्चे की तरह उसे भी बहुत दूर पैदल चलकर स्कूल जाना पसंद नहीं था। किसी अन्य बच्चे की तरह वह भी नई साइकल पर मोहित थी। जिस पर सवार होकर वह नियमित स्कूल जा सके। अन्य बच्चों की ही तरह वह भी तेज गर्मी और जोरदार बारिश में साइकल में पैडल मारते-मारते बोर हो गई। ऐसे
मौसम के लिए ही तो हमारा उष्णकटिबंधीय देश जाना ही जाता है। लेकिन उसमें और दूसरे बच्चों में यह फर्क है कि अन्य की तरह उसने अपनी साइकल यूं ही नहीं छोड़ दी और एक इनोवेटिव साइकल के साथ सामने आई। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। साइकल अपने-आप हवा से चलने लगती है। बिना पैडल के यह एयर बाइक 60 किलोमीटर 10 किलो कम्प्रेज्ड एयर सिलेंडर के सहारे चल सकती है। यह सिलेंडर साइकल के केरियर पर लगा है। मिलिए 14 साल की लड़की तेजस्विनी प्रियदर्शनी से। वह राउरकेला के सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में कक्षा 11वीं की छात्रा है। उसके इनोवेशन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि दुनिया भर के लीडर्स कोयला, ऑइल, गैस, पेट्रोल और डीजल के उपयोग में कटौती के लिए प्रयास कर रहे हैं। 
तेजस्विनी को पहली बार इसका विचार तब आया, जब वो साइकल रिपेयर की दुकान पर गई थी। उसने देखा कि कैसे मैकेनिक साधारण-सी एयर गन का इस्तेमाल कर साइकल के टायरों की गांठें सुलझाते हैं। उसने सोचा कि अगर एयर गन यह काम कर सकती है तो इससे साइकल भी चल सकती है। उसने अपना आइडिया अपने पिता नटवर गोच्चायट के साथ साझा किया, जिन्होंने बेटी को प्रेरित किया और जरूरी सामान दिलवाया। आखिर में वह सफल हुई और अब तेजस्विनी को सिर्फ नॉब खोलनी होती है और सिलेंडर से होकर हवा पैडल के पास लगी एयर गन तक जाती है और गिअर को छह अलग-अलग ब्लेड्स की सहायता से रोटेट करने लगती है। इस तरह साइकल चलने लगती है। साइकल में एक स्टार्टिंग नॉब है और साथ ही एक सेफ्टी वॉल्व भी है जो अतिरिक्त एयर रिलीज करती है। 
स्टोरी 2: हममें से कई लोग जानते हैं कि रघुराजपुर, ओडिशा का हेरिटेज क्राफ्ट विलेज है और कई चीजों के लिए पहचाना जाता है, जिसमें सबसे खास है पट्टचित्र पेंटर्स। यह ईसा पूर्व 5वीं सदी की कला है। इसके अलावा गोटिपुआ डांस ट्रुप्स भी है, जो भारतीय क्लासिकल डांस का आरंभिक रूप है। हम यह भी जानते हैं कि पूरा गांव तुषार पेंटिंग्स, ताड़ पत्रों पर चित्रकला, पत्थरों और लकड़ी पर नक्काशी, लकड़ी और कागज से कलाकृतियां मुखौटे बनाने के शिल्प के लिए पहचाना जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह गांव गाय के गोबर से खिलोने बनाने के लिए भी जाना जाता है। पिछले दो दिनों से 10 अंतरराष्ट्रीय कलाकार यहां हैं। कनाडा के एक सेरेमिक आर्टिस्ट शिरले रिमेर 78 साल के साशीमानी महाराना से चकित रह गए। इस कलाकार की कलाकृतियों को देखकर यह सिरेमिक आर्टिस्ट भी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं सका। इनके लिए गोबर से खिलोने बनाना खोज की तरह रहा। साशीमानी कुछ आखिरी जीवित कलाकारों में हैं, जो राज्य में इस कला को जीवित रखे हैं। वे विदेशी छात्रों से प्रभावित हुए जो यह कला अगली पीढ़ी तक ले जाने के लिए तैयार हैं, लेकिन हमारे देश में तो यह खत्म होने की कगार पर है। रघुराजपुर इंटरनेशनल आर्ट और क्राफ्ट एक्सचेंज ने यह आयोजन किया है। पांच हफ्ते का यह कार्यक्रम दो दिन पहले ही शुरू हुआ है। इसमें अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया, चिली, जापान, आयरलैंड और युक्रेन से कलाकार आए हैं। 
फंडा यह है कि आला दिमाग हर जगह होते हैं। जरूरी है इन्हें पहचान कर प्रेरित करना, ताकि धरती अधिक उपयोगी और सुंदर बन सके। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.