Friday, November 11, 2016

जानिए एसवाईएल मुद्दे पर विवाद का पूरा इतिहास

सुप्रीम कोर्ट ने एसवाईएल नहर के पानी के मामले में हरियाणा के हक़ में फैसला दिया है। जानिए कितना पुराना है ये मामले और कितना गहरा है विवाद का इतिहास: 
यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
  • वर्ष 1955 में केंद्र सरकार ने राज्यों की सहमति से रावी-ब्यास नदी के पानी को राजस्थान, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में बांटने की बात तय की।
  • वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता हुआ जिसमें रावी, ब्यास और सतलुज के पानी पर सिर्फ भारत का अधिकार माना गया। सिंधु, ङोलम और चिनाब नदी का पानी पाकिस्तान को मिला।
  • वर्ष 1966 में पंजाब का बंटवारा कर हरियाणा बनाया गया। तभी से दोनों राज्यों के बीच पानी को लेकर विवाद शुरू हो गया।
  • 1976 में केंद्र सरकार ने पंजाब के 7.2 एमएएफ यानी (मिलियन एकड़ फीट) पानी में से 3.5 एमएएफ हिस्सा हरियाणा को देने की अधिसूचना जारी की।
  • पंजाब से हरियाणा के हिस्से का पानी लाने के लिए सतलुज नदी से यमुना को जोड़ने वाली एक नहर की योजना बनाई गई जिसे एसवाईएल यानी सतलुज यमुना लिंक नहर कहते हैं।
  • 1981 में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ मिलकर एक समझौते पर दस्तखत किए थे।
  • 8 अप्रैल 1982 को इंदिरा गांधी ने पटियाला जिले के कपूरी गांव में एसवाईएल की खोदाई की शुरुआत की थी।
  • एसवाईएल की लंबाई 214 किलोमीटर है जिसमें से पंजाब में 122 और हरियाणा में 92 किमी हिस्से का निर्माण होना था।
  • नहर के निर्माण का 90 फीसद काम पूरा हो गया। जो काम बचा वह पंजाब के हिस्से का है। हिंसा की कई घटनाओं के बाद 1990 में पंजाब ने नहर का निर्माण रोक दिया था।
  • एसवाईएल नहर हरियाणा के किसानों के लिए जीवन रेखा है, लेकिन पंजाब को भी अपने किसानों और घटते जलस्तर की चिंता थी।
  • विरोध और राजनीति के बीच सन 1996 में मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। उच्चतम न्यायालय ने 2002 और 2004 में पंजाब को दो बार निर्देश दिए कि वह अपने हिस्से में नहर के काम को पूरा करे।
  • वर्ष 2004 में पंजाब विधानसभा के एक फैसले ने आग में घी डालने का काम किया। 12 जुलाई को पंजाब विधानसभा ने बिल पास कर पानी को लेकर हुए सभी समझौतों को रद कर दिया।
  • पंजाब विधानसभा के बिल के खिलाफ तत्कालीन केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट तक चली गई थी। कई वषों तक बातचीत, विवाद और कोर्ट में सुनवाई चलती रही।
  • 15 मार्च 2016 को पंजाब सरकार ने नहर के लिए किसानों से ली गई पांच हजार एकड़ जमीन को वापस लेने के लिए डि-नोटिफिकेशन का बिल पास कर दिया।
  • बिल पास होने के बाद से ही पंजाब में एसवाईएल को पाटने का काम शुरू हो गया और जिसमें तमाम पार्टियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
  • नए घटनाक्रम पर हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नहर के लिए तत्काल रिसीवर नियुक्त करने की अपील की जो नहर की जमीन और कागजात को अपने कब्जे में ले।
  • सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने यथास्थिति बनाए रखने का फैसला दिया। लेकिन पंजाब विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर दिया जिसमें कहा गया कि एसवाईएल नहर को बनने नहीं दिया जाएगा।

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साभारजागरण समाचार 
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