Wednesday, November 14, 2018

विपक्ष को झटका: राफेल की कीमत बताने की अभी जरूरत नहीं - SC

साभार: जागरण समाचार 
विपक्ष को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि राफेल की कीमत के बारे में याचिकाकर्ताओं को अभी कोई जानकारी न दी जाए। जब तक सुप्रीम कोर्ट इजाजत न दे, तब तक इस पर चर्चा भी नहीं होनी चाहिए।
दरअसल, सुनवाई के दौरान एजी ने कहा, 'यह मामला इतना गोपनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया सीलबंद लिफाफा मैंने भी नहीं देखा है।' 
Image result for supreme courtबता दें कि सुप्रीम कोर्ट में राफेल विमान सौदे में गड़बड़ियों का आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर अहम सुनवाई हो रही है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने सौदे को लेकर केंद्र पर कई कई सारे आरोप लगाए। याचिकाकर्ता वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार द्वारा दाखिल की गई रिपोर्ट से यह पता चलता है कि मई 2015 के बाद निर्णय लेने में कई गंभीर घोटाले किए गए हैं। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि पांच जजों की बेंच इसपर सुनवाई करे।
प्रशांत भूषण की दलील
उधर, वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील देते हुए कोर्ट से कहा कि केवल तीन परिस्थितियों में ही अंतर-सरकारी रास्तों का इस्तेमाल किया जा सकता है। भूषण ने यह भी कहा कि फ्रांसीसी सरकार की ओर से डील के सबंध में कोई सॉवरेन गारंटी नहीं थी। बता दें कि प्रशांत भूषण पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी की ओर से दलील दे रहे हैं, जो राफेल डील के याचिकाकर्ताओं में से एक हैं। 
अरुण शौरी ने भी सरकार को घेरा
सुप्रीम कोर्ट में अरुण शौरी ने कहा कि ऑफसेट की बातों को बाद में बदला गया, दासौ ने रिलायंस को चुना। उन्होंने आरोप लगाया कि दासौ भी इस समय आर्थिक तंगी से जूझ रहा है, यही कारण है कि उन्होंने सरकार की हर बात मानी और रिलायंस के साथ करार किया। इस डील से दासौ को भी फायदा हुआ। शौरी ने आरोप लगाया कि राफेल डील का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना रक्षा मंत्री और रक्षा मंत्रालय की सलाह के किया है।
वहीं, आप नेता संजय सिंह के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 36 राफेल विमानों की कीमतों का खुलासा संसद में दो बार किया जा चुका है, इसलिए सरकार के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता कि कीमतों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है ।
सीजेआइ बोले- एयरफोर्स के अधिकारी को बुलाएं
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा है कि वह रक्षा मंत्रालय का पक्ष नहीं सुनना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि कोई एयरफोर्स का अधिकारी आए और अपनी जरूरतों को बताया है। अटॉर्नी जनरल ने CJI को कहा कि कुछ ही मिनटों में एयरफोर्स का अधिकारी आ रहा है। दरअसल, सीजेआइ ने पूछा कोर्ट मे कोई इंडियन एयर फोर्स का ऑफिसर मौजूद है क्या? जिसके जवाब में केंद्र ने कहा नहीं, रक्षा मंत्रालय के अधिकारी हैं। कोर्ट ने कहा मंत्रालय नहीं एयरफोर्स का अधिकारी चाहिए, क्योंकि खरीद एयरफोर्स के लिए हुई है।
बता दें कि राफेल मामले में दो वकील एमएल शर्मा और विनीत ढांडा के अलावा एक गैर सरकारी संस्था ने जनहित याचिकाएं दाखिल कर सौदे पर सवाल उठाए हैं। इन आरोपों के बीच केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की कीमत का ब्योरा सोमवार को सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंप दिया। सरकार ने 14 पन्नों के हलफनामे में कहा है कि राफेल विमान खरीद में रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया गया। इस हलफनामे का शीर्षक ‘36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का आदेश देने के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में उठाए गए कदमों का विवरण’ है।
एनडीए सरकार पर राफेल सौदे को लेकर विपक्षियों ने आरोप लगाया है कि हर विमान को करीब 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है, जबकि यूपीए सरकार जब 126 राफेल विमानों की खरीद के लिए बातचीत कर रही थी तो उसने इसे 526 करोड़ रुपये में अंतिम रूप दिया था। सुप्रीम कोर्ट में दो वकीलों एमएल शर्मा और विनीत ढांडा के अलावा एक गैर सरकारी संस्था ने जनहित याचिकाएं दाखिल कर सौदे पर सवाल उठाए हैं।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने गत 31 अक्टूबर को सरकार को सील बंद लिफाफे में राफेल की कीमत और उससे मिले फायदे का ब्योरा देने का निर्देश दिया था। साथ ही कहा था कि सौदे की निर्णय प्रक्रिया व इंडियन आफसेट पार्टनर चुनने की जितनी प्रक्रिया सार्वजनिक की जा सकती हो उसका ब्योरा याचिकाकर्ताओं को दे। सरकार ने आदेश का अनुपालन करते हुए ब्योरा दे दिया है।
सरकार ने सौदे की निर्णय प्रक्रिया का जो ब्योरा पक्षकारों को दिया है जिसमें कहा गया है कि राफेल में रक्षा खरीद सौदे की तय प्रक्रिया का पालन किया गया है। 36 राफेल विमानों को खरीदने का सौदा करने से पहले डिफेंस एक्यूजिशन काउंसिल (डीएसी) की मंजूरी ली गई थी। इतना ही नहीं करार से पहले फ्रांस के साथ सौदेबाजी के लिए इंडियन नेगोसिएशन टीम (आइएनटी) गठित की गई थी, जिसने करीब एक साल तक सौदे की बातचीत की और खरीद सौदे पर हस्ताक्षर से पहले कैबिनेट कमेटी आन सिक्योरिटी (सीसीए) व काम्पीटेंट फाइनेंशियल अथॉरिटी (सीएफए) की मंजूरी ली गई थी।
इस बीच राफेल सौदे पर कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी के भ्रष्‍टाचार के आरोप से जुड़े सवाल पर दासौ एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने कहा है, 'मैं झूठ नहीं बोलता। मैंने पहले जो बयान दिया वो सच है और उस पर मैं कायम हूं। मेरी झूठ बोलने की छवि नहीं है। सीईओ के रूप में मेरी स्थिति में, आप झूठ नहीं बोल सकते हैं।' एरिक ट्रैपियर ने कहा कि दसॉ ने ऑफसेट्स के लिए 30 कंपनियों के साथ करार कर लिया है। उन्होंने इन आरोपों को खारिज किया कि भारतीय पक्ष ने उन पर ऑफसेट वर्क रिलायंस को देने के लिए कहा था। उन्‍होंने कहा, 'हम रिलायंस में कोई रकम नहीं लगा रहे हैं, रकम संयुक्त उपक्रम (JV यानी दासौ-रिलायंस) में जा रहा है। जहां तक सौदे के औद्योगिक हिस्से का सवाल है, दासौ के इंजीनियर और कामगार ही आगे रहते हैं। अम्बानी को हमने खुद चुना था। हमारे पास रिलायंस के अलावा भी 30 पार्टनर पहले से हैं। भारतीय वायुसेना सौदे का समर्थन कर रही है, क्योंकि उन्हें अपनी रक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाए रखने के लिए लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है।