साभार: जागरण समाचार
विनीत टंडन (म्यूजिक मोटिवेशनल स्पीकर)
आप एक दिन में कितनी बार अपने वाट्सएप मैसेज चेक करते हैं? सिर्फ यह देखने और चेक करने के लिए कि आपके जानने वाले लोगों की जिंदगी में क्या हो रहा है? कितनी बार अपने इंस्टाग्राम या फेसबुक फीड को रिफ्रेश
करते हैं?
एक अनुमान के अनुसार, रोजाना वाट्सएप पर 55 खरब से अधिक वाट्सएप टेक्स्ट मैसेज और 4.5 खरब फोटो शेयर किए जाते हैं। यह सोशल/डिजिटल कनेक्टेडनेस हमारी जिंदगी को इतना जकड़ चुका है कि सूचना के बोझ तले हमेशा हमारा दम घुटता रहता है और हमें मालूम भी नहीं होता कि यह हमें कितना नुकसान पहुंचा रहा है। इसी कारण हम लगातार लाइक करते रहते हैं, डिजिटल सूचना की बाइट्स को शेयर और स्कैन करते रहते हैं।
इसका नतीजा यह है कि स्क्रीन की थकावट, समझने में अस्पष्टता, सूचना का जरूरत से ज्यादा बोझ और व्यवहार के स्वरूप में अन्य बदलाव हमारी पीढ़ी के समग्र सुख पर बुरा असर डाल रहा है। द न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित शोध के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैनफ्रांसिस्को ने पाया है कि चूहों को एक नया अनुभव सीखने के बाद जैसे एक भूलभुलैया में छानबीन करना, दीर्घस्थायी याददाश्त का सृजन करने के उद्देश्य से उसके बाद दोबारा स्वास्थ्यलाभ करने की जरूरत होती है। इसी तरह शोधकर्ताओं का तर्क है कि जो लोग ईमेल चेक करने, गेम्स खेलने, अपने ट्विटर एकाउंट को अपडेट करने के लिए डिजिटल डिवाइसेज के साथ अत्यधिक व्यस्त रहते हैं, वे शायद खुद को सीखने की इजाजत नहीं दे रहे हैं, जो वे शायद कर सकते हैं। सोशल/डिजिटल डिवाइसेज से अपडेट होना अच्छी बात है, लेकिन इसकी लत होना निश्चित तौर पर एक बहुत बड़ी चुनौती है और हमें इससे दूर होने के तरीकों की पहचान करने की जरूरत है। यहां कुछ तरीके बताए गए हैं, जिनके जरिए आप जरूरत से ज्यादा कनेक्टेडनेस के साथ जुड़ी अपनी चुनौतियों पर काबू पा सकते हैं।
डिजिटल परहेज जरूरी: जब आप विमान द्वारा एक जगह से किसी दूसरी जगह जाते हैं, तो हम कुछ देर के लिए सभी नेटवर्को को डिस्कनेक्ट कर देते हैं, क्योंकि हमें ऐसा करने का निर्देश दिया जाता है। वहां हमारा ध्यान आकर्षित करने वाला कोई पुश नोटिफिकेशन या नया मैसेज बिल्कुल नहीं होता है। हम पूरी तरह अपने से होते हैं और दुनिया खत्म नहीं होती है। इसी तरह, अपने मोबाइल डिवाइसेज में एयरोप्लेन मोड (कोई नेटवर्क नहीं मोड) स्विच ऑन कीजिए और नियमपूर्वक उन सभी नेटवर्को को लॉग-ऑफ कीजिए, जिनके साथ आप कनेक्टेड हैं। मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए यह डिजिटल परहेज होना जरूरी है।
ठीक जैसे आप कुछ महीनों में अपनी अलमारी या किताबों की शेल्फ को दोबारा सलीके से लगाते हैं, ठीक वैसे ही उन सभी विचारों को पुन: व्यवस्थित करने और एक कागज पर लिखने की कोशिश कीजिए, जो आपके सिर में अव्यवस्थित रूप से टंगे हुए हैं। जैसे ही आप इन सभी अव्यवस्थित विचारों को कागजी रूप देंगे, वैसे ही यह संभावना पैदा हो जाएगी कि आपका दिमाग आपके बेहतर नियंत्रण में है। उस सूची को देखिए और उन अव्यवस्थित विचारों की एक सार्थक कार्यसूची में प्राथमिकता निर्धारित कीजिए। उन सभी विचारों या चीजों को हटाइए, जिन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं।
करते हैं?
एक अनुमान के अनुसार, रोजाना वाट्सएप पर 55 खरब से अधिक वाट्सएप टेक्स्ट मैसेज और 4.5 खरब फोटो शेयर किए जाते हैं। यह सोशल/डिजिटल कनेक्टेडनेस हमारी जिंदगी को इतना जकड़ चुका है कि सूचना के बोझ तले हमेशा हमारा दम घुटता रहता है और हमें मालूम भी नहीं होता कि यह हमें कितना नुकसान पहुंचा रहा है। इसी कारण हम लगातार लाइक करते रहते हैं, डिजिटल सूचना की बाइट्स को शेयर और स्कैन करते रहते हैं।
इसका नतीजा यह है कि स्क्रीन की थकावट, समझने में अस्पष्टता, सूचना का जरूरत से ज्यादा बोझ और व्यवहार के स्वरूप में अन्य बदलाव हमारी पीढ़ी के समग्र सुख पर बुरा असर डाल रहा है। द न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित शोध के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैनफ्रांसिस्को ने पाया है कि चूहों को एक नया अनुभव सीखने के बाद जैसे एक भूलभुलैया में छानबीन करना, दीर्घस्थायी याददाश्त का सृजन करने के उद्देश्य से उसके बाद दोबारा स्वास्थ्यलाभ करने की जरूरत होती है। इसी तरह शोधकर्ताओं का तर्क है कि जो लोग ईमेल चेक करने, गेम्स खेलने, अपने ट्विटर एकाउंट को अपडेट करने के लिए डिजिटल डिवाइसेज के साथ अत्यधिक व्यस्त रहते हैं, वे शायद खुद को सीखने की इजाजत नहीं दे रहे हैं, जो वे शायद कर सकते हैं। सोशल/डिजिटल डिवाइसेज से अपडेट होना अच्छी बात है, लेकिन इसकी लत होना निश्चित तौर पर एक बहुत बड़ी चुनौती है और हमें इससे दूर होने के तरीकों की पहचान करने की जरूरत है। यहां कुछ तरीके बताए गए हैं, जिनके जरिए आप जरूरत से ज्यादा कनेक्टेडनेस के साथ जुड़ी अपनी चुनौतियों पर काबू पा सकते हैं।
डिजिटल परहेज जरूरी: जब आप विमान द्वारा एक जगह से किसी दूसरी जगह जाते हैं, तो हम कुछ देर के लिए सभी नेटवर्को को डिस्कनेक्ट कर देते हैं, क्योंकि हमें ऐसा करने का निर्देश दिया जाता है। वहां हमारा ध्यान आकर्षित करने वाला कोई पुश नोटिफिकेशन या नया मैसेज बिल्कुल नहीं होता है। हम पूरी तरह अपने से होते हैं और दुनिया खत्म नहीं होती है। इसी तरह, अपने मोबाइल डिवाइसेज में एयरोप्लेन मोड (कोई नेटवर्क नहीं मोड) स्विच ऑन कीजिए और नियमपूर्वक उन सभी नेटवर्को को लॉग-ऑफ कीजिए, जिनके साथ आप कनेक्टेड हैं। मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए यह डिजिटल परहेज होना जरूरी है।
ठीक जैसे आप कुछ महीनों में अपनी अलमारी या किताबों की शेल्फ को दोबारा सलीके से लगाते हैं, ठीक वैसे ही उन सभी विचारों को पुन: व्यवस्थित करने और एक कागज पर लिखने की कोशिश कीजिए, जो आपके सिर में अव्यवस्थित रूप से टंगे हुए हैं। जैसे ही आप इन सभी अव्यवस्थित विचारों को कागजी रूप देंगे, वैसे ही यह संभावना पैदा हो जाएगी कि आपका दिमाग आपके बेहतर नियंत्रण में है। उस सूची को देखिए और उन अव्यवस्थित विचारों की एक सार्थक कार्यसूची में प्राथमिकता निर्धारित कीजिए। उन सभी विचारों या चीजों को हटाइए, जिन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं।