साभार: जागरण समाचार
गुरु नानक देवजी के 550वें प्रकाशोत्सव वर्ष पर सिखों की लंबे वक्त से चली आर रही मांग को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने महत्वपूर्ण फैसला लिया है। केंद्र ने गुरदासपुर स्थित डेरा बाबा नाक से लेकर अंतरराष्ट्रीय सीमा
तक करतारपुर कॉरिडोर बनाने का फैसला लिया है। बता दें कि यह प्रोजेक्ट सारी आधुनिक सुविधाओं से लैस होगा और इसका खर्च भी केंद्र उठाएगा। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को इस बात की जानकारी दी। करतापुर कॉरिडोर गुरुद्वारा दरबार साहिब जाने वाले श्रद्धालुओं को सालभर आसान और आरामदायक सफर करने में सहायता करेगा। इतना ही नहीं भारत पाकिस्तान की सरकार से भी उनकी सीमा में उपयुक्त सुविधाओं से लैस एक ऐसा ही कॉरिडोर बनाने का आग्रह करेगा। गौरतलब है कि करतापुर साहिब कॉरिडोर को लेकर काफी समय से मामला गरमाया है। सिख संगठन इसे लेकर कई बार केंद्र और राज्य सरकार से गुहार लगा चुके हैं। 
कैप्टन अमरिंदर ने लिखा था सुषमा को पत्र: हाल ही में, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी फिर एक बार श्री करतारपुर साहिब मार्ग खुलवाने के लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिखा था। उन्होंने लिखा कि श्री करतारपुर साहिब सिखों की आस्था से जुड़ा है, इसलिए इस मार्ग को खोलने के लिए पाकिस्तान से बात की जाए।
यह है श्री करतापुर साहिब गुरुद्वारे का महत्व: श्री करतापुर साहिब गुरुद्वारे को पहला गुरुद्वारा माना जाता है जिसकी नींव श्री गुरु नानक देव जी ने रखी थी। उन्होंने यहां से लंगर प्रथा की शुरुआत की थी। यह स्थल पाकिस्तान में भारतीय सीमा से करीब चार किलोमीटर दूर है और अभी पंजाब के गुरदासपुर में डेरा बाबा नानक बार्डर आउटपोस्ट से दूरबीन से भारतीय श्रद्धालु इस गुरुद्वारे के दर्शन करते हैं। श्री गुरुनानक देव जी का 550 वां प्रकाश पर्व 2019 में वहां मनाया जाना है और इस अवसर पर सिख समुदाय इस कॉरिडोर को खोलने की मांग जोर शोर से कर रहा है।
गुरु नानक देव ने करतारपुर में गुजारे 15 साल, यहीं ली अंतिम सांस: सिखों के पहले गुरु श्री नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 15 साल करतारपुर की धरती पर ही गुजारे थे। यहां खुद खेती करके उन्होंने समाज को 'किरत करो, वंड छको और नाम जपो' का संदेश दिया था। यहीं उन्होंने अपना शरीर भी छोड़ा था। यह गुरुद्वारा पटियाला स्टेट के महाराजा भूपेंद्र सिंह ने 1947 में बनवाया था। अभी यह गुरुद्वारा निर्माणाधीन ही था कि भारत पाक विभाजन हो गया।