साभार: जागरण समाचार
सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर सुनवाई की तारीख आगे बढ़ने के बाद सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मा की वापसी की उम्मीदें धुंधली हो गई है। अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है, जिससे वर्मा को राहत
मिलने के संकेत मिलते हों। मामला लंबा खिंचने से वर्मा के दो साल के सुनिश्चित कार्यकाल में बचा हुआ कार्यकाल लगातार कम होता जा रहा है। सीबीआइ के कुछ अधिकारियों का मानना है कि सतीश बाबू सना के आरोपों की गहराई से जांच के बिना शीर्ष अदालत के लिए आलोक वर्मा को क्लीन चिट देकर निदेशक का पदभार सौंपना आसान नहीं होगा। यदि सुप्रीम कोर्ट आरोपों की जांच का आदेश देता है, तो वर्मा के 31 जनवरी तक बाकी कार्यकाल के लिए वापसी संभव नहीं होगा। सतीश बाबू सना ने सीबीआइ को दिये सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दिये बयान में टीडीपी के एक सांसद के मार्फत आलोक वर्मा से मदद मिलने का दावा किया था।
सीबीआइ के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने आलोक वर्मा पर सतीश सना से दो करोड़ रुपये की रिश्वत लेने की कैबिनेट से शिकायत की थी। वहीं इसी सतीश बाबू सना में सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दिये बयान में राकेश अस्थाना को 2.90 करोड़ रुपये की रिश्वत देने का दावा किया था। इसी 164 के बयान के आधार पर राकेश अस्थाना के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई थी। दरअसल 23 अक्टूबर की रात को वर्मा को पदभार से मुक्त कर दिया गया था, जिसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। उस समय उम्मीद की जा रही थी कि सुप्रीम कोर्ट आलोक वर्मा को तत्काल निदेशक का पदभार देने का फैसला सुना देगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पहले तो इस पर सीवीसी की जांच बैठा दी गई। बाद में उस जांच रिपोर्ट पर आलोक वर्मा से जवाब मांगा गया। अब पांच दिसंबर को इसकी सुनवाई होगी। जबकि आलोक वर्मा का कार्यकाल 31 जनवरी को समाप्त हो जाएगा।