साभार: जागरण समाचार
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना को देश की सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने संसद को भंग करने के राष्ट्रपति के फैसले को मंगलवार को पलटने के साथ ही पांच जनवरी को मध्यावधि चुनाव कराने की
तैयारियों को भी रोकने को कहा है। अपदस्थ प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी और चुनाव आयोग के सदस्य रत्नजीवन हुले ने संसद भंग करने और पांच जनवरी को चुनाव कराने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को चुनौती दी थी। प्रधान न्यायाधीश नलिन परेरा की अगुआई वाली तीन सदस्यीय वाली पीठ ने यह फैसला सुनाया है। पीठ ने निर्धारित अवधि से दो साल पहले संसद भंग करने के राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ दायर 13 याचिकाओं और सिरिसेन का समर्थन करने वाली पांच याचिकाओं की सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है। विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति सिरिसेना के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं पर 4, 5, 6 दिसंबर को सुनवाई करेगा। 26 अक्टूबर को प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को पद से हटाकर पूर्व राजनीतिक दिग्गज महिंदा राजपक्षे को नियुक्त करने के बाद से श्रीलंका संवैधानिक संकट से घिरा है।
अटार्नी जनरल ने सिरिसेना के फैसले का बचाव किया: सुनवाई के दौरान सिरिसेन की तरफ से पेश हुए अटार्नी जनरल जयंत जयसूर्या ने राष्ट्रपति के फैसले का बचाव किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति की शक्तियां संविधान में पूरी तरह स्पष्ट हैं। संसद भंग करने का उनका फैसला पूरी तरह संवैधानिक है। उन्होंने फैसले के विरोध में दायर सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि ऐसा करने का राष्ट्रपति को संविधान में अधिकार दिया गया है।
विक्रमसिंघे ने खुशी जताई: सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपदस्थ प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने खुशी जताते हुए ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा, 'जनता को पहली जीत मिली है। अभी और बढ़ना है और देश में लोगों को एक बार फिर से संप्रभुता की बहाली करनी है।'यह भी पढ़ें
कभी साथ-साथ थे सिरिसेना और विक्रमसिंघे: एक दशक तक श्रीलंका की सत्ता पर काबिज रहने वाले राजपक्षे (72) जनवरी 2015 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में सिरिसेना से हार गए थे। इस चुनाव में विक्रमसिंघे की यूएनपी पार्टी सिरिसेना के साथ थी। चुनाव बाद सिरिसेन जहां राष्ट्रपति बने वहीं विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री की कमान दी गई। बाद में सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों को लेकर दोनों में मतभेद उभरे तो सिरिसेना ने विक्रमसिंघे को हटाकर राजपक्षे को प्रधानमंत्री बना दिया था।