Saturday, August 26, 2017

Management: 'उसकी सेना' करे 'उसके' लोगों धरती की देखभाल

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)

स्टोरी 1: 2017 की बात है। योगेश मलखारे की पत्नी रमा को पुणे के वायसीएम अस्पताल में भर्ती किया गया था। जहां उन्हें किफायती इलाज मिला लेकिन, भोजन घर से लाना पड़ता था। दूसरे दिन रमा ने पति से कहा कि वे घर से दो लोगों के लिए भोजन लेकर आएं, क्योंकि उनके पास के बिस्तर पर महिला ने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया था। वह अपने पति को सात महीने पहले खो चुकी है। पिता इस युवा मां को इतना भोजन कराने में भी सक्षम नहीं हैं कि वह दूध पिलाने लायक हो सके। इस दृश्य ने इस दंपती के दिमाग पर अमिट छाप छोड़ी। जब तक रमा अस्पताल में भर्ती रहीं योगेश जरूरतमंदों के लिए भोजन लाते रहे। यह सिलसिला उन्होंने बाद में भी बंद नहीं किया। वे उन लोगों की मदद करते रहे, जो मां और मां बनने वाले अपनों के पोषण में सक्षम नहीं थे। वित्तीय रूप से बहुत अच्छी हालत होने के बावजूद परिवार ने यह काम 2012 तक जारी रखा। तब सरकार ने राजीव गांधी जीवनदायी आरोग्य योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में भोजन उपलब्ध कराना शुरू किया था। लेकिन योगेश और रमा की यात्रा इससे कहीं आगे बढ़ गई थी। योगेश एक दिन मानसिक रूप से अस्थिर व्यक्ति 45 वर्षीय वेंकटेश नायडू से मिले, जो सड़क पर भीख मांग रहे थे। उन्होंने उसे यरवडा मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया। बाद में उन्होंने उसकी जानकारी निकाली तो पता चला कि वह व्यक्ति तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली के एक गांव के रहने वाले हैं और पिछले आठ साल से पुणे की सड़कों पर भीख मांग रहे हैं। नायडू अमीर व्यक्ति थे और उनके परिवार के पास 160 एकड़ जमीन थी। उन्होंने नायडू को अपने परिवार से मिलवाने की कोशिश की। 
नायडू के परिवार की खुशी को योगेश कभी भूल नहीं सके। इसके बाद से खोए लोगों को घर पहुंचाना उनका नियमित काम बन गया जैसा कि पहले युवा माताओं को भोजन कराना था। पुणे के पिंपरी के 36 साल के योगेश 2016 से एक एनजीओ चला रहे हैं- स्माइल प्लस सोशल फाउंडेशन। इसके माध्यम से वे 300 लोगों का सफलतापूर्वक पुनर्वास कर चुके हैं। इसमें से 33 लोगों को वे अपने परिवारों से मिला चुके हैं। इस अच्छी सेवा को करते हुए उन्होंने कभी कानून को हाथ में नहीं लिया। हर मामले में पूरे नियमों का पालन किया। मानसिक रूप से बीमार लोगों को पहले जांच के लिए अस्पताल ले जाया जाता। फिर उनका यरवडा अस्पताल में पुनर्वास किया जाता। अनाथों को बालग्रह ले जाया जाता। यही बाल कल्याण समिति के नियम हैं, जबकि बड़ी उम्र के लोगों को वृद्धाश्रम ले जाकर सरकारी नियमों के तहत नामांकन किया जाता। फिर वे खोज का अभियान शुरू करते और फिर अपने स्तर पर उनके पुनर्वास की कोशिश करते जो उन्हें मानसिक शांति देता। 


स्टोरी 2: योगेश एक तरफ लोगों के देखभाल के काम में लगे थे तो दूसरी तरफ मुंबई के नज़दीक ठाणे म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन ने अपने तरीके से धरती की देखभाल का जिम्मा लिया है। उन्होंने गणेश उत्सव के लिए साइकिल शेयरिंग सुविधा शुरू की है। शुरुआत में 500 साइकिल 50 बड़े स्टैंड पर पार्क की गई है, जिन्हें 10 रुपए प्रति घंटे के किराये पर लिया जा सकता है। यूज़र को न्यूनतम 250 रुपए का स्मार्ट कार्ड खरीदना होगा। जीपीएस लगी साइकिल से म्यूनिसिपल क्षेत्र की सीमा में कहीं भी ले जा सकते हैं। साइकिल और इसे इस्तेमाल करने वाले को होने वाले किसी भी नुकसान की भरपाई इंश्योरेंस ग्रुप से की जाएगी। प्रदूषण कम करना और हर प्राणी के लिए जीवन की गुणवत्ता सुधारना इसके पीछे का लक्ष्य है, जबकि मुख्य उद्‌देश्य तो धरती को कार्बन उत्सर्जन से बचाना है। 
फंडा यह है कि हम सभी अपने निर्माता के प्रतिनिधि हैं, इसलिए अबवक्त है कि हम अन्य लोगों धरती की देखभाल करन का संकल्प लें। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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