Thursday, August 3, 2017

Life: धारणाओं के आधार पर टिप्पणी नहीं की जा सकती

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
मैं इसे बूथवाला फ्लाइट कहता हूं, क्योंकि रात 12 बजे यह उतरती है और कई कारणों से एयरपोर्ट से बाहर आने में ही 30 मिनट से ज्यादा लग जाते हैं। मुंबई के व्यस्त होते जा रहे टी-2 एयरपोर्ट पर अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को
ज्यादा सुविधाएं देने के लिए घरेलू यात्रियों की ओर कम ध्यान रहता है, इसलिए उन्हें इंतजार करना पड़ता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। करीब 12.30 बजे मैं अपने ड्राइवर का इंतजार एयरपोर्ट के बस स्टैंड के पास कर रहा था। शालीन वस्त्रों में एक महिला वहां बस का इंतजार कर रही थी। गुजर रहे टैक्सी ड्राइवरों ने हम दोनों से चलने के बारे में पूछा, लेकिन हमने इनकार कर दिया। उन तीन मिनटों में जब तक मेरी कार आई तब तक वह आत्मविश्वास से भरी लग रही थी और सभी गुजरती हुई कारों को देख रही थी लेकिन, जैसे ही मेरी कार आई वह नर्वस लगने लगी। उन कुछ सेकंड में ही उसने अपने मोबाइल को कई बार ट्राई किया। फिर अचानक वह मेरी खड़ी कार की ओर आने लगीं। जब मैं बैठा और ड्राइवर ने कार चालू की और आगे बढ़ा तो उसी समय महिला ने सड़क पार की। मेरे ड्राइवर को अचानक ब्रेक लगाकर जोर से हॉर्न बजाना पड़ा। उसने माफी मांगी और तेजी से चलने लगी। मुझे लगा कि वह मेरी कार की हैड लाइट का लाभ लेना चाहती थी, जबकि सड़क खाली थी और फुटपाथ पर भी कोई नहीं था। मेरे ड्राइवर ने कहा ये महिलाएं हमेशा ऐसी ही होती हैं। सड़क के बीच में चलती हैं। सड़क और फुटपाथ को छोड़कर। मैंने उससे कार रुकवाई, स्ट्रीट लाइट की ओर देखा और उससे कहा कि हैडलाइट चालू रखे। मैंने उसे दिखाया कि स्ट्रीट लाइट मंद हो गई है। मेंटेनेंस की कमी के कारण नहीं, बल्कि मुंबई में हो रही लगातार बारिश के कारण पेड़ कुछ तेजी से बड़े हो गए हैं। स्ट्रीट लाइट की रोशनी पर पेड़ छा गए हैं। 
हम करीब एक-डेढ़ मिनट वहां रुके रहे, ताकि महिला सड़क के किनारे तक पहुंच जाए वहां से वह एक बाइक की ओर बढ़ गई और तुरंत इस पर सवार हो गई। उस दूरी से भी उसने कार की हैडलाइट की ओर देखा, मुझे लगा कि यह कार की हैडलाइट चालू रखने के लिए धन्यवाद कहने का उसका तरीका था। फिर वह दूर चली गई। मेरे ड्राइवर ने फिर एक अनचाहा सवाल किया कि जब उसे बाइक से जाना था तो बस स्टॉप पर क्यों इंतजार कर रही थी। वैसे भी वो नॉन बाइकर सेक्शन है और बाइक से लेने आने वाले क्षेत्र से काफी दूर भी है? मैंने कहा, 'क्योंकि महिलाएं जब अकेली होती हैं तो किसी के इंतजार में सड़क पर अकेली नहीं खड़ी रह सकतीं। इस पागल दुनिया को उन्हें यह दिखाना पड़ता है कि वे किसी उद्‌देश्य से वहां इंतजार कर रही हैं। बस स्टॉप पर खड़े रहने का मतलब है कि वहां वह बस का इंतजार कर रही है। नहीं तो लोग उसे अलग नज़र से देखने लगेंगे। क्या तुमने कभी किसी मां को बच्चों को स्कूल बस से लेने के लिए इंतजार करते देखा है? मैंने ही जवाब दिया कि वे हमेशा नज़दीक की किसी दुकान पर खड़ी रहती हैं ताकि गुजरने वालों को लगे कि वो कुछ खरीदने आई हैं। जबकि पिता हमेशा फुटपाथ या सड़क पर इंतजार करते हैं और सबकुछ देखते रहते हैं। 
जब हम बाहर निकल रहे थे तो पुलिसकर्मी ने हमें रोका और यह पूछकर चकित कर दिया कि हम सड़क के बीच इतनी देर क्यों रुके थे। जब मैंने उसे स्थिति समझाई कि महिला अकेली थी और पेड़ों के कारण स्ट्रीट लाइट मंद हो गई है तो उसने हमारी चेकिंग तक नहीं की और एक मुस्कान के साथ जाने दिया। क्योंकि शायद पहले कभी उसे किसी ने ऐसा अजीब लेकिन, मानवीय जवाब नहीं दिया था। निश्चित रूप से उसने महिला को बाइक पर जाते हुए देख लिया था। 
फंडा यह है कि सड़कपर महिलाएं अपने कारणों से अलग व्यवहार करती हैं। अपनी धारणाओं के आधार पर उन पर कमेंट करना मूर्खता है। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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